निगंठ नाथ पुत्त के निधन का समाचार बुद्ध को चुंद ने ला कर दिया और बताया कि उनके अनुयायियों ने आपस में लड़ाई-झगडा शुरू कर दिया हैं। इस पर बुद्ध ने चुंद को संबोधित करते हुए कहा -
चुंद, अब संसार में कितने उपदेशक हैं जो इतनी अग्रगनी और प्रसिद्धि की स्थिति तक पहुंचे हैं, जहाँ तक तथागत पहुंचे हैं। मुझे कोई ऐसा उपदेशक दिखाई नहीं देता। हे चुंद, आज संसार में कई धार्मिक संघ हैं। लेकिन मुझे कोई ऐसा संघ दिखाई नहीं देता जिसने भिक्खु-संघ जितनी अग्रगनी प्रसिद्धि वाली स्थिति प्राप्त की हो। यदि कोई व्यक्ति किसी धर्म को हर प्रकार से सफल, पूर्ण, त्रुटिर-हित और सुस्थापित बताना चाहेगा तो वस्तुत: वह इसी धर्म का नाम लेगा।
बुद्ध ने अपने धर्म को हर प्रकार से पूर्ण समझे जाने के लिए निश्चित कारण बताएं। उन्होंने कहा कि अपने समकालीन उपदेशकों के विपरीत अपने अनुयायियों से यही कहना चाहता हूँ कि वे संसार के आदि और परलोक सम्बन्धी विचारों से दूर रहे और केवल अपनी आतंरिक स्थितियों में परिवर्तन लाने की विधियों पर ध्यान दें।
हे चुंद, मैं मानसिक मद को अंकुश में रखने का उपदेश देता हूँ। इस मन को भृष्ट करने वाली प्रवृतियां इसी जीवन में उत्पन्न होती हैं। मैं यह नहीं बताता कि दूसरे जीवन में मन को पथ-भ्रष्ट करने वली वृतियों का दमन किस प्रकार किया जाए। मेरा तो केवल यही प्रयास है कि इस जीवन में उन पर किस प्रकार अंकुश लगाया जाए(पृ 401)।
चुंद, अब संसार में कितने उपदेशक हैं जो इतनी अग्रगनी और प्रसिद्धि की स्थिति तक पहुंचे हैं, जहाँ तक तथागत पहुंचे हैं। मुझे कोई ऐसा उपदेशक दिखाई नहीं देता। हे चुंद, आज संसार में कई धार्मिक संघ हैं। लेकिन मुझे कोई ऐसा संघ दिखाई नहीं देता जिसने भिक्खु-संघ जितनी अग्रगनी प्रसिद्धि वाली स्थिति प्राप्त की हो। यदि कोई व्यक्ति किसी धर्म को हर प्रकार से सफल, पूर्ण, त्रुटिर-हित और सुस्थापित बताना चाहेगा तो वस्तुत: वह इसी धर्म का नाम लेगा।
बुद्ध ने अपने धर्म को हर प्रकार से पूर्ण समझे जाने के लिए निश्चित कारण बताएं। उन्होंने कहा कि अपने समकालीन उपदेशकों के विपरीत अपने अनुयायियों से यही कहना चाहता हूँ कि वे संसार के आदि और परलोक सम्बन्धी विचारों से दूर रहे और केवल अपनी आतंरिक स्थितियों में परिवर्तन लाने की विधियों पर ध्यान दें।
हे चुंद, मैं मानसिक मद को अंकुश में रखने का उपदेश देता हूँ। इस मन को भृष्ट करने वाली प्रवृतियां इसी जीवन में उत्पन्न होती हैं। मैं यह नहीं बताता कि दूसरे जीवन में मन को पथ-भ्रष्ट करने वली वृतियों का दमन किस प्रकार किया जाए। मेरा तो केवल यही प्रयास है कि इस जीवन में उन पर किस प्रकार अंकुश लगाया जाए(पृ 401)।
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