Monday, November 12, 2018

राम

राम,
तुम्हारे आस्था पुरुष
हो सकते हैं
मगर, हमारे कैसे ?
हम, उनकी
किस बात पर आस्था करें ?

क्या इस पर कि
एक ब्राह्मण के कहने पर
उन्होंने शम्बूक शुद्र का
सिर कलम किया ?
या इसलिए कि
एक धोबी के कहने पर
अपनी पत्नी सीता को
घर से निकाल दिया ?

'पूजिए विप्र
सील गुण हिना'
तुम्हारे लिए
सही हो सकता है
क्योंकि तुम
ब्राह्मण को घर बुलाते हो,
उससे पूजा करवाते हो

मगर,
हम क्यों पूजे ?
हमें तो उसे
छूने से परहेज है
हमारे हाथ का पानी
पीने से परहेज है ?

जहाँ विभेद
और घृणा हो
उस 'मानस' को
हम क्यों पढ़े
जो पशु से हमें
बदतर समझता हो
हम उसकी पूजा
क्यों करे ?

तमाम सदिच्छा के
बावजूद, तुम्हारे
'रामराज्य' की थीम
भ्रामक लगती है
चातुर्वर्ण और
ऊंच-नीच की खाई को
और चौड़ी करने की
साजिश लगती है ?
अ  ला उके  @amritlalukey@blogspot.com

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