मिलिंद पण्ह
मिलिंद पण्ह, साहित्य और दर्शन की दृष्टि से यह बड़ा महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस में नागसेन के साथ हुए मिलिंद के अनेक संलापों का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में 1. पूर्व योग, 2. लक्षण प्रश्न, 3. विमतिच्छेदन-प्रश्न, 4. मेंडक-प्रश्न, 5. अनुमान प्रश्न तथा 6. उपमा-कथा प्रश्न आदि छह परिच्छेद हैं(पालि साहित्य का इतिहास: राहुल सांकृत्यायन, पृ 183)।
यद्यपि, पालि मिलिंद पण्ह में छह परिच्छेद हैं, किन्तु उनमे से पहले के तीन ही पुराने मालूम होते हैं। चीनी भाषा में भी इन्हीं तीन परिच्छेदों का अनुवाद मिलता है(दर्शन दिग्दर्शन : राहुल सांकृत्यायन पृ 550 )।
मिनांडर-
पंजाब से लेकर यमुना तक यवनों(ग्रीकों) ने ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में राज्य किया था। दिमित्रि(189-197 ई पू ) मौर्य साम्राज्य के नष्ट होने पर भारत विजय के प्रयास में निकला था। पतंजलि के महाभाष्य में 'यवनों के साकेत को घेरने' का स्पष्ट उल्लेख है। दिमित्रि का एक सेनापति मिनांदर था। बख्त्रिया पर मेसोपोटामिया के यवनराज अत्रिया के सेनापति उरितिद के आक्रमण की बात सुनकर दिमित्रि को वहां से लौटना पड़ा। पर वह अपने दामाद और सेनापति मिनांडर को पंजाब में छोड़ गया। मिनांडर ने पंजाब में रहकर राज्य करना शुरू किया। उसने 'सागल' (स्यालकोट) को अपनी राजधानी बनाया। यही मिनांडर, 'मिलिंद' के नाम से प्रसिद्द हुआ(पालि साहित्य का इतिहास: राहुल सांकृत्यायन पृ 183 )।
मिनांडर स्वयं विद्या-व्यसनी पुरुष था। उसकी मृत्यु के बाद उसकी हड्डियों के लिए लोगों में लड़ाई छिड़ गई थी। लोगों ने उसकी हड्डियों पर बड़े-बड़े स्तूप बनवाए। भिक्खु नागसेन की विद्वता को सुनकर एक दिन उसके दर्शन हेतु वह चल पड़ा(वही)।
साहित्यिक चोरी
यह सम्पूर्ण ग्रन्थ ही किसी बुद्धिहीन लेखक द्वारा ति-पिटक ग्रंथों से की गई साहित्यिक चोरी की वारदात लगती है। ग्रन्थ के प्रारंभ में ही, पूरण कस्सप, मक्खलि गोसाल, अजित केस कम्बल, पकुध कच्चान, संजय वेलट्ठि पुत्त, निगंठनाथ पुत्त आदि छह दार्शनिकों को राजा मिलिंद के समकालीन बताया गया है। किन्तु बुद्धा एंड हिज धम्मा' में हम इन दार्शनिकों को बुद्ध के समकालीन देखते हैं(प्रथम कांड: भाग- 6 : बुद्धा एंड हिज धम्मा )। इसी प्रकार, दीघनिकाय के सामञ्ञफल सुत्त में हम इन दार्शनिकों को मगधराज अजातसत्तु के समकालीन देखते हैं।
किन्तु हमारे आधुनिक विद्वान 'मिलिंद पन्ह' के प्रमाण को बहुत गंभीरता पूर्वक नहीं लेते। बी एम बरुआ( प्रि-बुद्धिस्ट इंडियन फ़िलासफ़ी ) का कहना है कि मिलिंद पन्ह में राजा मिलिंद(ई पू 125-95) की जिस भेंट का उल्लेख है वह स्पष्टतया किसी बाद के बौद्ध लेखक द्वारा बड़े भोंडे तरीके से की गई साहित्यिक चोरी है। जी पी मल्लशेखर(डिक्सनरी ऑफ़ पालि प्रापर नेम्स ) का कहना है कि यह सारा वर्णन या तो सामाञ्ञफल सुत्त से की गई साहित्यिक चोरी है या फिर जिन दार्शनिकों का उल्लेख हुआ है, वे उन्हीं विचारधाराओं को मानने वालों में से थे(देवीप्रसाद चटोपाध्याय : लोकायत पृ 406)।
मिलिंद पण्ह, साहित्य और दर्शन की दृष्टि से यह बड़ा महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस में नागसेन के साथ हुए मिलिंद के अनेक संलापों का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में 1. पूर्व योग, 2. लक्षण प्रश्न, 3. विमतिच्छेदन-प्रश्न, 4. मेंडक-प्रश्न, 5. अनुमान प्रश्न तथा 6. उपमा-कथा प्रश्न आदि छह परिच्छेद हैं(पालि साहित्य का इतिहास: राहुल सांकृत्यायन, पृ 183)।
यद्यपि, पालि मिलिंद पण्ह में छह परिच्छेद हैं, किन्तु उनमे से पहले के तीन ही पुराने मालूम होते हैं। चीनी भाषा में भी इन्हीं तीन परिच्छेदों का अनुवाद मिलता है(दर्शन दिग्दर्शन : राहुल सांकृत्यायन पृ 550 )।
मिनांडर-
पंजाब से लेकर यमुना तक यवनों(ग्रीकों) ने ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में राज्य किया था। दिमित्रि(189-197 ई पू ) मौर्य साम्राज्य के नष्ट होने पर भारत विजय के प्रयास में निकला था। पतंजलि के महाभाष्य में 'यवनों के साकेत को घेरने' का स्पष्ट उल्लेख है। दिमित्रि का एक सेनापति मिनांदर था। बख्त्रिया पर मेसोपोटामिया के यवनराज अत्रिया के सेनापति उरितिद के आक्रमण की बात सुनकर दिमित्रि को वहां से लौटना पड़ा। पर वह अपने दामाद और सेनापति मिनांडर को पंजाब में छोड़ गया। मिनांडर ने पंजाब में रहकर राज्य करना शुरू किया। उसने 'सागल' (स्यालकोट) को अपनी राजधानी बनाया। यही मिनांडर, 'मिलिंद' के नाम से प्रसिद्द हुआ(पालि साहित्य का इतिहास: राहुल सांकृत्यायन पृ 183 )।
मिनांडर स्वयं विद्या-व्यसनी पुरुष था। उसकी मृत्यु के बाद उसकी हड्डियों के लिए लोगों में लड़ाई छिड़ गई थी। लोगों ने उसकी हड्डियों पर बड़े-बड़े स्तूप बनवाए। भिक्खु नागसेन की विद्वता को सुनकर एक दिन उसके दर्शन हेतु वह चल पड़ा(वही)।
साहित्यिक चोरी
यह सम्पूर्ण ग्रन्थ ही किसी बुद्धिहीन लेखक द्वारा ति-पिटक ग्रंथों से की गई साहित्यिक चोरी की वारदात लगती है। ग्रन्थ के प्रारंभ में ही, पूरण कस्सप, मक्खलि गोसाल, अजित केस कम्बल, पकुध कच्चान, संजय वेलट्ठि पुत्त, निगंठनाथ पुत्त आदि छह दार्शनिकों को राजा मिलिंद के समकालीन बताया गया है। किन्तु बुद्धा एंड हिज धम्मा' में हम इन दार्शनिकों को बुद्ध के समकालीन देखते हैं(प्रथम कांड: भाग- 6 : बुद्धा एंड हिज धम्मा )। इसी प्रकार, दीघनिकाय के सामञ्ञफल सुत्त में हम इन दार्शनिकों को मगधराज अजातसत्तु के समकालीन देखते हैं।
किन्तु हमारे आधुनिक विद्वान 'मिलिंद पन्ह' के प्रमाण को बहुत गंभीरता पूर्वक नहीं लेते। बी एम बरुआ( प्रि-बुद्धिस्ट इंडियन फ़िलासफ़ी ) का कहना है कि मिलिंद पन्ह में राजा मिलिंद(ई पू 125-95) की जिस भेंट का उल्लेख है वह स्पष्टतया किसी बाद के बौद्ध लेखक द्वारा बड़े भोंडे तरीके से की गई साहित्यिक चोरी है। जी पी मल्लशेखर(डिक्सनरी ऑफ़ पालि प्रापर नेम्स ) का कहना है कि यह सारा वर्णन या तो सामाञ्ञफल सुत्त से की गई साहित्यिक चोरी है या फिर जिन दार्शनिकों का उल्लेख हुआ है, वे उन्हीं विचारधाराओं को मानने वालों में से थे(देवीप्रसाद चटोपाध्याय : लोकायत पृ 406)।
No comments:
Post a Comment