कल, मैं एक बुद्ध विहार के लोकार्पण समारोह में गया। समारोह का प्रारंभ रैली से हुआ। जन-दर्शनार्थ बुद्ध की मूर्ति को लिए वाहन बाबासाहब डॉ अम्बेडकर के फोटों/नारों से लैस आगे-आगे चल रहा था। हम दोनों पति-पत्नी रैली में चल रहे थे । करीब तीन कि. मी. चल कर वापिस पुन: बुद्धविहार आए। रैली में जो खास बात मैंने नोट की , वह थी- महिलाओं की संख्या। सुखुवार हो चुकी महिलाओं की संख्या से मेरा मन समाज की चेतना देख, जैसे नाच रहा था।
करीब 2 बजे पत्नी को चलने का इशारा किया। दरअसल, भूख जोरों से लग रही थी। वहां भोजन का इंतजाम तो था किन्तु अभी शायद देरी थी। पत्नी, अन्य परिचित महिलाओं के साथ मंचीय कार्य-क्रम जो अब प्रारंभ होने को था, देखने उत्सुक थी। मेरे इशारे को उसने झटक दिया। मुझे लगा, ये महिलाएं 'राम-कथा' वाली महिलाएं नहीं है।
करीब 2 बजे पत्नी को चलने का इशारा किया। दरअसल, भूख जोरों से लग रही थी। वहां भोजन का इंतजाम तो था किन्तु अभी शायद देरी थी। पत्नी, अन्य परिचित महिलाओं के साथ मंचीय कार्य-क्रम जो अब प्रारंभ होने को था, देखने उत्सुक थी। मेरे इशारे को उसने झटक दिया। मुझे लगा, ये महिलाएं 'राम-कथा' वाली महिलाएं नहीं है।
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