अवकुज्ज सुत्त
भिक्खुओ! संसार में तीन तरह के लोग होते हैं।
तयोमे भिक्खवे, पुरिसा संतो संविज्जमाना लोकस्मिंं ।
कौन-से तीन तरह के ?
कतमे तयो ?
औंधे घड़े जैसे प्रज्ञा वाला, तराजू के पल्ले जैसे प्रज्ञा वाला और सीधे घड़े जैसे प्रज्ञा वाला ।
अवकुज्ज पञ्ञो पुरिसो, उच्छंग पञ्ञो पुरिसो, पुथु पञ्ञो पुरिसो ।
भिक्खुओ! औंधे घड़े जैसा आदमी कैसा होता है ?
कतमो च भिक्खवे, अवकुज्ज पञ्ञो पुग्गलो ?
यहाँ,भिक्खुओं, कोई-कोई आदमी विहार जाता है,
इध, भिक्खवे, एकच्चो पुरिसो आरामं गन्ता होति,
धम्म सवण करने के लिए भिक्खुओं के पास आता है।
भिक्खूनं सन्तिके धम्म सवणाय।
तस्स भिक्खू धम्मंं देसेन्ति,
भिक्खु उसको धम्म का उपदेश देते हैं,
आदि कल्याणं, मज्झ कल्याणं, परियोसान-कल्याणं सात्थं सव्यंजनं
आरम्भ में कल्याण कारी, मध्य में कल्याणकारी, अंत में कल्याणकारी अर्थ सहित, व्यंजन सहित
केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं विसुद्धचरियं पकासेन्ति।
सम्पूर्ण रूप से पूर्ण, परिशुद्ध, विशुद्धचर्या के लिए प्रकाशित करते हैं।
वह आसन पर बैठा हुआ उस उपदेश को
सो तस्मिंं आसने निसिन्नो तस्सा कथाय
न आरंभ में ग्रहण करता है, न मध्य में ग्रहण करता है, न अंत में ग्रहण करता है।
नेव आदिं मनसि करोति, न मज्झं मनसि करोति न परियोसानं मनसि करोति।
उस आसन से उठने पर भी उस उपदेश को
वुट्ठितो अपि तम्हा आसना तस्सा कथाय
न आरंभ में ग्रहण करता है, न मध्य में ग्रहण करता है, न अंत में ग्रहण करता है।
नेव आदिं मनसि करोति, न मज्झं मनसि करोति न परियोसानं मनसि करोति।
भिक्खुओ, जैसे उलटे घड़े में डाला हुआ पानी गिर पड़ता है, ठहरता नहीं।
सेय्याथापि भिक्खवे, कुम्भो निक्कुज्जो तत्र उदकं आसि त्तंं विवट्ठति, नो संठाति।
भिक्खुओ, ऐसा आदमी औंधे घड़े जैसी प्रज्ञा वाला आदमी कहलाता है।
एवमेवं भिक्खवे, अयं वुच्चति अवकुज्ज पञ्ञो पुग्गलो।
कतमो च भिक्खवे उच्छंग पञ्ञो पुग्गलो ?
भिक्खुओ, तराजू के पल्ले जैसा आदमी कैसा होता है ?
इध, भिक्खवे, एकच्चो पुग्गलो आरामं गन्ता होति,
यहाँ,भिक्खुओं, कोई-कोई आदमी विहार जाता है,
धम्म सवण करने के लिए भिक्खुओं के पास आता है।
भिक्खूनं सन्तिके धम्म सवणाय।
तस्स भिक्खू धम्मंं देसेन्ति।
भिक्खु उसको धम्म का उपदेश देते हैं
आदि कल्याणं, मज्झ कल्याणं--------विसुद्धचरियं पकासेन्ति।
आरम्भ में कल्याणकारी, मध्य में कल्याणकारी--------विशुद्धचर्या के लिए प्रकाशित करते हैं
वह आसन पर बैठा हुआ उस उपदेश को
सो तस्मिंं आसने निसिन्नो तस्सा कथाय
आरंभ में ग्रहण करता है, मध्य में ग्रहण करता है, अंत में ग्रहण करता है।
आदिंं मनसि करोति, मज्झं मनसि करोति, परियोसानं मनसि करोति।
उस आसन से उठने पर उस उपदेश को
वुट्ठितो अपि तम्हा आसना तस्सा कथाय
न आरंभ में ग्रहण करता है, न मध्य में और न अंत में।
नेव आदिं मनसि करोति, न मज्झं मनसि करोति न परियोसानं मनसि करोति।
जैसे भिक्खुओ, किसी आदमी के पल्ले में नाना प्रकार की खाद्य-वस्तुएं हों-
सेय्याथापि भिक्खवे, पुरिसस्स उच्छंगे नाना खज्ज कानि(खाद्य वस्तुएं)-
तिल हों, चावल हों, लड्डू हों, बेर हों
तिला तंडुला मोदका बदरा
उसके आसन से उठते ही असावधानी से वे बिखर जाए।
तम्हा आसना वुट्ठन्तो
सति सम्मोसा पकिरेय्य।
भिक्खुओ, ऐसा आदमी तराजू के पल्ले जैसे प्रज्ञा वाला आदमी कहलाता है।
एवमेवं भिक्खवे, अयं वुच्चति उच्छंग पञ्ञो पुग्गलो।
कतमो च भिक्खवे पुथु पञ्ञो पुग्गलो ?
भिक्खुओ, बहुल प्रज्ञा वाला आदमी कैसा होता है ?
इध, भिक्खवे, एकच्चो पुग्गलो आरामं गन्ता होति,
यहाँ,भिक्खुओं, कोई-कोई आदमी विहार जाता है,
भिक्खूनं सन्तिके धम्म सवणाय।
धम्म सवण करने के लिए भिक्खुओं के पास आता है।
उसे भिक्खु उपदेश करते हैं
तस्स भिक्खू धम्मंं देसेन्ति
आदि कल्याणं, मज्झ कल्याणं--------विसुद्धचरियं पकासेन्ति।
आरम्भ में कल्याणकारी, मध्य में कल्याणकारी--------विशुद्धचर्या के लिए प्रकाशित करते हैं
वह आसन पर बैठा हुआ उस उपदेश को
सो तस्मिंं आसने निसिन्नो तस्सा कथाय
आरंभ में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है, अंत में भी ग्रहण करता है।
आदिंं अपि मनसि करोति, मज्झं अपि मनसि करोति, परियोसानं अपि मनसि करोति।
उस आसन से उठने पर उस उपदेश को
वुट्ठितो अपि तम्हा आसना तस्सा कथाय
आरंभ में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है, अंत में भी ग्रहण करता है ।
आदिं अपि मनसि करोति, मज्झं अपि मनसि करोति, परियोसानं अपि मनसि करोति।
जैसे भिक्खुओ, जैसे सीधे घड़े में डाला हुआ पानी उसमें ठहरता है, गिरता नहीं
सेय्याथापि भिक्खवे, कुम्भो उक्कुज्जो तत्र उदकं आसित्तं संठाति नो विवट्ठति
एवमेवं खो भिक्खवे, अयं वुच्चति पुथु पञ्ञो पुग्गलो।
इमे खो भिक्खवे, तयो पुग्गला संतो संविज्जमाना लोकस्मिं।
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विवट्ठति - पीछे हटता है/दूसरी ओर जाता है/ नष्ट कर देता है।