जलियांवाला कांड; पंजाब में 'ऊंच'-बनाम 'नीच' जातिय संघर्ष की सोची-समझी साजिश-
पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर गुरनाम सिंह जी ने जलियांवाला बाग के विषय में ठोस सबूतों के साथ दावा किया है कि जालियाँवाला बाग नरसंहार का कारण भारतीयों और अंग्रेजों के बीच की लड़ाई नहीं थी, बल्कि पंजाब में चल रहे 'ऊंच'-बनाम 'नीच' जातिय संघर्ष की परिणति थी. दरअसल, वहां उन अछूत सिखों की एक सभा सभा चल रही थीं, जिन्हें स्वर्ण-मंदिर में घुसने नहीं दिया गया था। प्रोफेसर गुरनाम सिंह जी के भाषण का वीडियो भी यू ट्यूब में उपलब्ध है. पुष्टि हेतु आप उसे भी देख सकते हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर गुरनाम सिंह जी ने जलियांवाला बाग के विषय में ठोस सबूतों के साथ दावा किया है कि जालियाँवाला बाग नरसंहार का कारण भारतीयों और अंग्रेजों के बीच की लड़ाई नहीं थी, बल्कि पंजाब में चल रहे 'ऊंच'-बनाम 'नीच' जातिय संघर्ष की परिणति थी. दरअसल, वहां उन अछूत सिखों की एक सभा सभा चल रही थीं, जिन्हें स्वर्ण-मंदिर में घुसने नहीं दिया गया था। प्रोफेसर गुरनाम सिंह जी के भाषण का वीडियो भी यू ट्यूब में उपलब्ध है. पुष्टि हेतु आप उसे भी देख सकते हैं।
प्रो. गुरुनाम सिंह के अनुसार प्रथम विश्वयुद्ध 1918 में भाग लेने के बाद 1919 में जो सिख सकुशल बच आये थे, वे गुरु का शुक्रिया अदा करने दरबार साहिब अमृतसर गये थे. मगर अछूत सिखों को स्वर्ण मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। उनको न केवल जातिवाद के चलते अंदर जाने नही दिया गया, बल्कि उन का अपमान भी किया गया, उन को गालियां दी गई। इन सब बातों का विरोध करने के लिये वह लोग ईकठ्ठा हुए, जालियाँवाला बाग में उनकी मीटिंग रखी गई क्योंकि दोनों ही स्थान आमने सामने हैं इसलिए वही उचित स्थान चुना गया था।
उस सभा में जो गोलियां चली वो जत्थेदार अरुर सिंह के कहने पर जनरल डायर ने चलवाई थी, जो कि उन दिनों स्वर्णमंदिर के मैनेजर था। उसी ने इस पटकथा को लिखा और बदला। जब गोली चली अफरातफरी मची और हजारों लोग मारे गये तब बाकि सिखों ने जनरल डायर को दरबार साहिब ले गए और वहां जाकर जनरल डायर का सम्मान किया गया. उसको सरोपा (Robe of Honour) भेट किया गया। स्मरण रहे, इस घटना को जगदेव सिंह जस्सोवाल (Former Congress MLA, Died Dec. 2014) ने पार्लियामेंट में एक डिबेट के दौरान नोट करवाई हुई है। इतनी बड़ी इन्फर्मेशन लोगों को पता नहीं है।
जालियाँवाला बाग हत्याकांड अछूत लोगों पर हुआ था और उन पर गोली ऊँची जाति के लोगों के कहने पर चलाई गई और उस की रुपरेखा बदल दी गई। अब ऐसा क्यों किया गया पहले वह समझें। ब्रिटिश सेना में ज्यादात्तर सिपाही निम्न वर्ग के ही थे। चमार रेजिमेंट और विश्व युद्ध मे लड़े इन लड़ाकुओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा ही लिया था। ऐसे में यदि निम्न जाति के बहादूरी की यह बात सार्वजनिक हो जाती तो भारत के ऊंची जातियों को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता। साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई भी कमजोर पड़ जाती। इसलिए इस लड़ाई को भारतीय बनाम अंग्रेज बनाया गया और जनरल डायर को सीधे इंग्लैंड भेजा गया।
इससे निम्न तबकों में अंग्रेजों के खिलाफ रोष पैदा हो गया और असली अपराधी बच निकले। हमारे देश के इतिहास को जितना जातिवादी लोगों ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, शायद ही दुनियां के किसी और देश में किया गया हो। दरसल यह सब एक सोची-समझी साजिश के तहत किया गया। जिस जलियाँवाला काण्ड को हम यह कह कर पढ़ते हैं कि वहां पर देशभक्तों की देश की आजादी के लिए मीटिंग हो रही थी, दरअसल वहां पर देशभक्तों की तो ठीक है; पर स्वर्ण-मंदिर से जलील किए गए "अछूतों की मीटिंग" हो रही थी, जो अपने उच्च जातिय भेदभाव के मुद्दों पर विचार करने के लिए इकट्ठे हुए थे।
सोचिये! जालियांवाला हत्याकांड के मुजरिम जनरल ड़ायर को स्वघोषित उच्च जाति के बड़े-बड़े महान क्रांतिकारीयों ने क्यों नहीं मारा? या फिर यदि यह भारतीय बनाम अंग्रेज ही होता तो कोई नेता, संगठन बड़ा क्रांतिकारी उसकी अगुवाई कर रहा होता? उसका नाम आपको क्यों नहीं पता? जब जलियांवाला बाग नरसंहार के बदले की बात आई तब भी एक दलित व्यक्ति सरदार उधमसिंह ने ही उसे लंदन में घुसकर मारा क्यों? इसलिए इतिहास जरूरी नहीं कि वही सही हो जो आपने पढ़ा हो(डी. के. राणा की वाल से)।
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