पालि में अभिलेख साहित्य
पालि साहित्य के अभिलेख साहित्य की काल-सीमा 300 ई. पू से 1500 ईस्वी है। इस में प्रमुख रूप से अशोक के शिलालेख, साँची और भारहुत के अभिलेख , सारनाथ के कनिष्क कालीन अभिलेख, मोंगन(बर्मा) के 2 स्वर्ण पत्र लेख, बोबोगी पेगोडा(बर्मा) के खंडित शिलालेख, प्रोम के स्वर्ण पत्र, पेगन के 1442 ईस्वी के अभिलेख तथा कल्याणी अभिलेख का समावेश किया जाता है।
अशोक के शिला लेखों में उपदिष्ट धर्म को केवल बौद्ध धर्म का कहना उचित नहीं है। वह धर्म सम्पूर्ण भारतीय धर्मों का समन्वित रूप था। यद्यपि अशोक में जो परिवर्तन हुआ, वह निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण हुआ था।
इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि ति-पिटक अशोक के समय एक निश्चित रूप धारण कर चुका था। साँची और भारहुत के अभिलेखों में उल्लिखित सुत्तन्तिकपेटकी, धम्मकथिक, पञ्चनेकायिक, भाणक जैसे शब्द यह बतलाते हैं कि 300-200 ई. पू. पिटक, सुत्त, पञ्चनिकाय आदि में बुद्ध वचनों का वर्गीकरण प्रसिद्द था और उनका संगायन करने वाले भिक्खु भी पाए जाते थे। भारहुत और साँची को पाषाण-वेष्ठनियों पर अंकित चित्र जातक की प्राचीनता व्यक्त करते हैं। सारनाथ के कनिष्क कालीन अभिलेख धम्मचक्कपवत्तन सुत्त के एतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।
बर्मा के अभिलेख बौद्ध धर्म एवं पालि-साहित्य के विकास को जानने के लिए परम उपयोगी है। मोंगम (बर्मा) के 2 स्वर्ण-पत्र लेखों में पहला 5-6 वीं ईस्वी में बर्मा में बौद्ध धर्म की प्रगति पर प्रकाश डालता है, वही द्वितीय लेख में ति-रतन वंदना अंकित है। बोबोगी के खंडित पाषाण लेख में अभिधम्म पिटक के ही एक ग्रन्थ का उद्धरण है, जो बर्मा में अभिधम्म पिटक के प्रति व्याप्त सम्मान को व्यक्त करता है। इसी प्रकार प्रोम के स्वर्ण-पत्र लेख में विनय और अभिधम्मपिटक के कुछ उद्धरण हैं।
पेगन के 1442 के अभिलेख में भिक्खु संघ के लिए बौद्ध उपासक वांग टिन और उसकी पत्नी द्वारा दिए दान का उल्लेख है। अन्य वस्तुओं के साथ उन 295 ग्रंथों का भी उल्लेख हैं, जिनका दान भिक्खु-संघ को दिया गया था।
अभिलेख में उल्लिखित 295 ग्रंथों की यह सूची बर्मा में 1500 ईस्वी तक पालि साहित्य की प्रगति को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है। राजा धम्मचेति के कल्याणी अभिलेख में, जिनका समय 1467 ईस्वी है, उन ग्रंथों का उल्लेख है, जिनकी सहायता से भिक्खुओं की उपसम्पदा विधि एवं विहार-सीमा के विषय में महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया था। इन ग्रंथों में पातिमोक्ख, खुद्दक सिक्खा, विमति विनोदनी, विनय पालि , सारत्थ दीपनी, कंखा वितरणी, विनय संगहप्पकरण , सीमा लंकारप्पकरण अदि उल्लेखनीय है(स्रोत- पालि साहित्य का इतिहास; कोमल चंद्र जैन) ।
पालि साहित्य के अभिलेख साहित्य की काल-सीमा 300 ई. पू से 1500 ईस्वी है। इस में प्रमुख रूप से अशोक के शिलालेख, साँची और भारहुत के अभिलेख , सारनाथ के कनिष्क कालीन अभिलेख, मोंगन(बर्मा) के 2 स्वर्ण पत्र लेख, बोबोगी पेगोडा(बर्मा) के खंडित शिलालेख, प्रोम के स्वर्ण पत्र, पेगन के 1442 ईस्वी के अभिलेख तथा कल्याणी अभिलेख का समावेश किया जाता है।
अशोक के शिला लेखों में उपदिष्ट धर्म को केवल बौद्ध धर्म का कहना उचित नहीं है। वह धर्म सम्पूर्ण भारतीय धर्मों का समन्वित रूप था। यद्यपि अशोक में जो परिवर्तन हुआ, वह निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण हुआ था।
इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि ति-पिटक अशोक के समय एक निश्चित रूप धारण कर चुका था। साँची और भारहुत के अभिलेखों में उल्लिखित सुत्तन्तिकपेटकी, धम्मकथिक, पञ्चनेकायिक, भाणक जैसे शब्द यह बतलाते हैं कि 300-200 ई. पू. पिटक, सुत्त, पञ्चनिकाय आदि में बुद्ध वचनों का वर्गीकरण प्रसिद्द था और उनका संगायन करने वाले भिक्खु भी पाए जाते थे। भारहुत और साँची को पाषाण-वेष्ठनियों पर अंकित चित्र जातक की प्राचीनता व्यक्त करते हैं। सारनाथ के कनिष्क कालीन अभिलेख धम्मचक्कपवत्तन सुत्त के एतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।
बर्मा के अभिलेख बौद्ध धर्म एवं पालि-साहित्य के विकास को जानने के लिए परम उपयोगी है। मोंगम (बर्मा) के 2 स्वर्ण-पत्र लेखों में पहला 5-6 वीं ईस्वी में बर्मा में बौद्ध धर्म की प्रगति पर प्रकाश डालता है, वही द्वितीय लेख में ति-रतन वंदना अंकित है। बोबोगी के खंडित पाषाण लेख में अभिधम्म पिटक के ही एक ग्रन्थ का उद्धरण है, जो बर्मा में अभिधम्म पिटक के प्रति व्याप्त सम्मान को व्यक्त करता है। इसी प्रकार प्रोम के स्वर्ण-पत्र लेख में विनय और अभिधम्मपिटक के कुछ उद्धरण हैं।
पेगन के 1442 के अभिलेख में भिक्खु संघ के लिए बौद्ध उपासक वांग टिन और उसकी पत्नी द्वारा दिए दान का उल्लेख है। अन्य वस्तुओं के साथ उन 295 ग्रंथों का भी उल्लेख हैं, जिनका दान भिक्खु-संघ को दिया गया था।
अभिलेख में उल्लिखित 295 ग्रंथों की यह सूची बर्मा में 1500 ईस्वी तक पालि साहित्य की प्रगति को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है। राजा धम्मचेति के कल्याणी अभिलेख में, जिनका समय 1467 ईस्वी है, उन ग्रंथों का उल्लेख है, जिनकी सहायता से भिक्खुओं की उपसम्पदा विधि एवं विहार-सीमा के विषय में महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया था। इन ग्रंथों में पातिमोक्ख, खुद्दक सिक्खा, विमति विनोदनी, विनय पालि , सारत्थ दीपनी, कंखा वितरणी, विनय संगहप्पकरण , सीमा लंकारप्पकरण अदि उल्लेखनीय है(स्रोत- पालि साहित्य का इतिहास; कोमल चंद्र जैन) ।
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