कानूनी मान्यता प्राप्त बौद्ध धम्म गुरु, पूर्व महापौर नागपुर १९७६~७७ स्मृति शेष बाबू रामरतनजी जानोरकर का १५ वा स्मृति दिन
जन्म :~ ८ अगस्त १९३१
निर्वाण:~ १९ जुन २००५
धम्म दिक्षा ग्रहण :~ १४ आक्टो.१९५६ दलितों के मशीहा डाँ. बाबा साहब भिमरावजी आम्बेडकर के हस्ते
धम्म दिक्षा दान:~ १७ मार्च १९५७ से आगे भी .
डाँ. बाबा साहब आम्बेडकर जी ने १४ आक्टो १९५६ को नागपुर मे धम्म दिक्षा आयोजित किया , उस आयोजन समिति के सचिव दलितों के लाडले नेता अँड्व्होकेट बाबू हरीदासजी आवळे के सहयोगी एवं प्रसिद्ध पुस्तिका मै भंगी हूँ के लेखक एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता मा . स्मृति शेष मा. भगवानदास जी दिल्ली के परम् मित्र एवं संबंधी स्मृति शेष बाबू रामरतनजी जानोरकर ने अपनी युवा अवस्था में ही स्वयं को आम्बेडकरी आंदोलन मे झोंक दिया .
इनका जन्म ८ अगस्त १९३१ को नागपुर की ठक्करनगर पाचपावली में हुआ . मुलत: इनके दादीजी जियालाल राजापुर तह. कर्वी , जिल्हा बांदा, यु.पी के थे. वे काम~धंदे की तलाश मे नागपुर आये थे. बाबू जानोरकरजी ने शेड्युलकास्ट फेडरेशन , भारतीय बौद्ध महा सभा सफाई मजदूर संघटन, बीडी मजदूर संघटन, मेहतर विविध उद्धेसिय सहकारी संस्था का निर्माण, शैक्षणिक क्षेत्र, एवं रिपब्लिकन पार्टी के विभिन्न राष्ट्रीय पदो को सुशोभित किया. १४ आक्टो १९५६ की दिक्षा कार्यक्रम की संयोजन समिती के सहासचिव की हैसियत से काम किया था . बौद्ध धम्म के प्रचार~ प्रसार हेतू भारत भ्रमण किया १७मार्च १९५७ को लष्करीबाग मे आयोजित दिक्षा कार्यक्रम में हजारों दलितों को बौद्ध धम्म की दिक्षा दी. और बौद्ध बनाया. उसमें दलितों के नेता डाँ. डी.पी.मेष्राम , दे.वा.भगत , वाशुदेवजी डोंगरे आ.कान्त माटे आदि सम्मिलित थे.
१७ जनवरी १९६२ को हुवे विधान सभा के चुनाव में पराजित उम्मेदवार ने विजित उम्मीदवार के खिलाफ केस उच्च न्यायालय खंड पीठ नागपुर मे अपील की जिसमें न्यायाधीश महोदय ने निर्णय दिया कि, १४आक्टो १९५६ को डाँ. बाबा साहब आम्बेडकर जी ने तथा १७ मार्च १९५७ को बाबू सरामरतनजी जानोरकर द्वारा दी गयी धम्म् दिक्षा कार्यक्रम, धम्म् दिक्षा ना हो कर राजकीय सभा थी. इस निर्णय से १४आक्टो १९५६ को बाबा साहब द्वारा दी गयी धम्म दिक्षा , एवं १७मार्च १९५७ को बाबू रामरतन जानोरकरजी द्वारा धम्म् दीक्षित लोग बौद्ध ना होकर पूर्व श्रम के महार ही कहलाए गये .
इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का निर्णय बाबू हरिदास आवळेजी ने लिया . इस काम की पूर्ण जवाबदारी बाबू रामरतन जानोरकरजी को दी. उन्होने अपनी जबाबदारी कुशलता पुर्वक निभाई, इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि १४ आक्टो १९५६ को बाबा साहब द्वारा एवं १७मार्च १९५७ को बाबू रामरतनजी जानोरकर द्वारा दी गयी दिक्षा राजकीय सभा ना होकर दिक्षा कार्यक्रम ही था.
.. इस निर्णय से.दीक्षित दलित बौद्ध . कहलाए
जन्म :~ ८ अगस्त १९३१
निर्वाण:~ १९ जुन २००५
धम्म दिक्षा ग्रहण :~ १४ आक्टो.१९५६ दलितों के मशीहा डाँ. बाबा साहब भिमरावजी आम्बेडकर के हस्ते
धम्म दिक्षा दान:~ १७ मार्च १९५७ से आगे भी .
डाँ. बाबा साहब आम्बेडकर जी ने १४ आक्टो १९५६ को नागपुर मे धम्म दिक्षा आयोजित किया , उस आयोजन समिति के सचिव दलितों के लाडले नेता अँड्व्होकेट बाबू हरीदासजी आवळे के सहयोगी एवं प्रसिद्ध पुस्तिका मै भंगी हूँ के लेखक एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता मा . स्मृति शेष मा. भगवानदास जी दिल्ली के परम् मित्र एवं संबंधी स्मृति शेष बाबू रामरतनजी जानोरकर ने अपनी युवा अवस्था में ही स्वयं को आम्बेडकरी आंदोलन मे झोंक दिया .
इनका जन्म ८ अगस्त १९३१ को नागपुर की ठक्करनगर पाचपावली में हुआ . मुलत: इनके दादीजी जियालाल राजापुर तह. कर्वी , जिल्हा बांदा, यु.पी के थे. वे काम~धंदे की तलाश मे नागपुर आये थे. बाबू जानोरकरजी ने शेड्युलकास्ट फेडरेशन , भारतीय बौद्ध महा सभा सफाई मजदूर संघटन, बीडी मजदूर संघटन, मेहतर विविध उद्धेसिय सहकारी संस्था का निर्माण, शैक्षणिक क्षेत्र, एवं रिपब्लिकन पार्टी के विभिन्न राष्ट्रीय पदो को सुशोभित किया. १४ आक्टो १९५६ की दिक्षा कार्यक्रम की संयोजन समिती के सहासचिव की हैसियत से काम किया था . बौद्ध धम्म के प्रचार~ प्रसार हेतू भारत भ्रमण किया १७मार्च १९५७ को लष्करीबाग मे आयोजित दिक्षा कार्यक्रम में हजारों दलितों को बौद्ध धम्म की दिक्षा दी. और बौद्ध बनाया. उसमें दलितों के नेता डाँ. डी.पी.मेष्राम , दे.वा.भगत , वाशुदेवजी डोंगरे आ.कान्त माटे आदि सम्मिलित थे.
१७ जनवरी १९६२ को हुवे विधान सभा के चुनाव में पराजित उम्मेदवार ने विजित उम्मीदवार के खिलाफ केस उच्च न्यायालय खंड पीठ नागपुर मे अपील की जिसमें न्यायाधीश महोदय ने निर्णय दिया कि, १४आक्टो १९५६ को डाँ. बाबा साहब आम्बेडकर जी ने तथा १७ मार्च १९५७ को बाबू सरामरतनजी जानोरकर द्वारा दी गयी धम्म् दिक्षा कार्यक्रम, धम्म् दिक्षा ना हो कर राजकीय सभा थी. इस निर्णय से १४आक्टो १९५६ को बाबा साहब द्वारा दी गयी धम्म दिक्षा , एवं १७मार्च १९५७ को बाबू रामरतन जानोरकरजी द्वारा धम्म् दीक्षित लोग बौद्ध ना होकर पूर्व श्रम के महार ही कहलाए गये .
इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का निर्णय बाबू हरिदास आवळेजी ने लिया . इस काम की पूर्ण जवाबदारी बाबू रामरतन जानोरकरजी को दी. उन्होने अपनी जबाबदारी कुशलता पुर्वक निभाई, इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि १४ आक्टो १९५६ को बाबा साहब द्वारा एवं १७मार्च १९५७ को बाबू रामरतनजी जानोरकर द्वारा दी गयी दिक्षा राजकीय सभा ना होकर दिक्षा कार्यक्रम ही था.
.. इस निर्णय से.दीक्षित दलित बौद्ध . कहलाए
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