Wednesday, November 11, 2020

रथो किं ?

रथो किं ?

मिलिन्द-नागसेन संवादो

‘‘किं नु खो महाराज! 

‘‘महाराज! क्या

त्वं पादेन आगतोसि, 

आप पैदल चल कर यहां आए हैं

उदाहु(अथवा) वाहनेन।’’ 

 या किसी सवारी से ?’’

‘‘अहं भंते! न पादेन,

 ‘‘मैं भन्ते! पैदल नहीं, 

 रथेन आगतो अम्हि।

रथ से आया हूं।’’

‘‘सचे(यदि) त्वं महाराज! 

रथेन आगतोसि, 

रथं(रथ को) मे(मुझे) आरोचेहि(बताएं)। 

किं नु खो महाराज! 

ईसा(अक्ष) रथो?’’

‘‘न हि भन्ते’’।

‘‘चक्कानि रथो?’’

‘‘न हि भन्ते!’’

‘‘रथपंजर रथो?’’

‘‘न हि भन्ते!’’

‘‘रथ-दण्डको रथो?’’

‘‘न हि भन्ते।’’

‘‘तं(आपको) अहं महाराज,

पूच्छन्तो-पूच्छन्तो किलमंतो(थक गया)

न पस्सामि(देखता हूँ) रथं, 

को(क्या) पन अथ रथो?’’ 

‘‘अलिकं(झूठे हैं) त्वं महाराज, 

भाससि(बोलते हैं) मुसावादं, 

न अत्थि(है) रथो।’’

‘‘त्वं सि महाराज, 

सकल जम्बुदीपे अग्गराजा। 

कस्स(किससे) पन त्वं भायित्वा(डर कर) 

मुसावादं भाससि?’’

‘‘न अहं भन्ते नागसेन, 

मुसा भणामि।(बोलता हूँ )’’

‘‘भन्ते नागसेन, 

ईसं च (अक्ष और) 

पटिच्च(अवयव) अंग-सम्भारा(अंगादि सामग्री से) 

रथो सञ्ञा (संज्ञा) होति।’’ 

‘‘साधु खो त्वं महाराज, 

रथं जानासि(जान लिया )।’’

‘‘एवमेव(इसी प्रकार) खो महाराज, 

मय्हं(मुझको) अपि(भी) 

केसे च(बाल और) ‘नागसेनो’ 

सञ्ञा(संज्ञा) समञ्ञा(पद/नाम)  

पञ्ञाति वोहारो(व्यवहार से ज्ञात होता है) 

नामं(नाम) पवत्तति(प्रवृत होता है)।’’

‘‘अच्छरियं(आश्चर्य है), भन्ते नागसेन, 

अब्भुतं(अद्भुत है), भन्ते नागसेन।’’

‘‘अतिचित्तानि(अतीव चित्रांकन से), 

पन्हं(प्रश्न को) पटिभानानि( ठीक समझ ) 

विसज्जितानि(सुलझा दिया)।’’ 


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