गंवार ब्राह्मणों की दीक्षा
उस समय राजगृह के समीप ही गृद्धकुट पर्वत के पीछे एक गांव था, जिसमें कोई 70 ब्राहमण परिवार थे। वहां जाकर भगवान एक वृक्ष के नीचे विराजमान हुए। ब्राह्मण भगवान को देख उनके पास जाकर खड़े हो गए।
तब भगवान ने पूछा- "तुम कब से यहां रहते हो और तुम्हारा पेशा क्या है?"
"हम पीछली तीस पीढ़ियों से यहां रहते हैं और पशुपालन हमारा पेशा है।"
"तुम्हारा धार्मिक विश्वास क्या है?"
"हम रितु भेद के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करते हैं।"
तब भगवान ने कहा- "यह क्षेम कर मार्ग नहीं है। इससे तुम्हारा कुछ लाभ नहीं हो सकता।"
स्रोत- भदन्त धम्मकीर्तिः भगवान बुद्ध का इतिहास और धम्मदर्शन, पृ. 80
उक्त प्रसंग से निम्न तत्थ विचारणीय हैं-
1. स्कूली पाठ्य-पुस्तकों में 'गरीब ब्राह्मण' ही पढ़ाया जाता है. किन्तु बौद्ध ग्रंथों से पता चलता है कि 'गंवार ब्राहमण' होते हैं. प्रश्न है, वे 'गंवार ब्राह्मण' पाठ्य-पुस्तकों से कैसे गायब हैं ?
2. ब्राह्मणों का पेशा देवताओं की पूजा-पाठ के साथ पशु पालन करना रहा है. प्रश्न है, यज्ञादि में गाय-बच्छडों की बलि देने वाले आज 'गऊभक्त' कैसे हो गए ?
3. देवताओं की पूजा को बुद्ध लाभकारी नहीं मानते थे.
4. बुद्ध का व्यक्तित्व ब्राह्मणों को प्रभावित करता था.
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