#तथाकथित "वैदिक युग" #क्या था ?
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दोस्तों इतिहासकारों के अनुसार हिन्दूओं का तथाकथित "वैदिक युग" ईसा पूर्व 1,500 से 1,000ईसा पूर्व तक माना जाता है .लेकिन क्या उसी युग में लिखने हेतु आधुनिक "#देवनागर लिपि" का विकास हो गया था?चूँकि सभी वेद एवं पुराण आदि "देवनागरी लिपि" में ही मिलते हैं.
इसी विषय पर एक विद्वान् लेखक श्री ईश्वर चंद्र राही ने अपनी पुस्तक "लेखन कला का इतिहास", पर ही बतलाया है कि-
"#ब्राह्मी (यानी अशोक के #धम्म लिपि )के ऐसे 4.अभिलेख प्राप्त हुए हैं. जिनके विषय में विद्वान अभी तक एक मत नहीं हो पाए हैं.प्रश्न है कि क्या यह प्राचीन लेख "#अशोक काल" (ईसा पूर्व 273-232 )के पूर्व के हैं या उसके "शासन काल" के हैं.इस प्रश्न का उत्तर केवल तर्क से दिया जा सकता है क्योंकि कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है. विद्वानों के विवादास्पद मतों को देना केवल विषय को लम्बा करना होगा.इतना कहना पर्याप्त होगा कि प्रो. दिनेश चंद्र सरकार इनको #तीसरी शताब्दी के और गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा इसे ईसा पूर्व की 5वीं #शताब्दी के मानते हैं.
"#पहला एक आंशिक लेख जो एक स्तम्भ के टुकड़े पर अंकित था और जो "अजमेर" के #बड़ली ग्राम से प्राप्त हुआ था; परन्तु अब अजमेर के "संग्रहालय" में सुरक्षित है.
उसके अंकित शब्द हैं "#वीर (1)य #भगव (त), दूसरी पक्ति में "चतुर. #सीति व (स )."महावीर" के #निर्वाण का 84 वां वर्ष होना चाहिए, जो ईसा पूर्व की 443वी वर्ष होती है,अर्थात लेख ईसा पूर्व 443.का है.दूसरे व् तीसरे अभीलेख जो #बोगरा जिले (आधुनिक बंगला देश)से तथा "सोहगढ" जिला #गोरखपुर से प्राप्त हुए है."
#चौथा अभी लेख नेपाल की तराई में "कपिलवस्तु" के निकट "#पिप्रारावा" ग्राम से प्राप्त हुआ. संन 1899.के मार्च के माह में बाबू पुराण चंद्र मुखर्जी ने उत्खनन कार्य किया. 18.फुट ईंटों के चबूतरे को खोदने के पश्चात एक बड़े पत्थर की पेटी, जिसकी लम्बाई 4 फुट 4.इंच, तथा चौड़ाई 2फुट सवा 8 इंच के तथा ऊंचाई 2.फुट सवा 2इंच थी दिखाई पड़ा जिसमे से 5 कलश प्राप्त हुए.(निचे चित्र देखें).इनमें "महात्मा बुद्ध" की #अस्थियों की #राख थी.उनमें से एक कलश पर जिसका व्यास 4इंच तथा ऊंचाई 6इंच थी, गोलाई में एक छोटा सा #अभिलेख अंकित था.(फलक संख्या 39 ).उसकी भाषा "#पाली -प्राकृत" मिश्रित थी.
#अंकित शब्द :-
"#सुकिती -भतिनं स -भगिनिकनं स -पूत -दलानं इय सलिल -निधने बुध स भगवते साकियानं."
#हिंदी अनुवाद :-
"#शाक्यों ने अपने भाइयों, बहनों तथा पुत्रों और स्त्रियों के साथ भगवान् शाक्य मुनि #बुद्ध का यह #शरीर निधन (स्तूप)कीर्ति के लिए #स्थापित किया."
#अर्थात इस ऐतिहासिक दस्तावेज से यही अनुमान होता है कि ईसा पूर्व 543तक लिखने हेतु "देवनागरी लिपि" का विकास ही नहीं हुआ था.विद्वान् लेखक के अनुसार ही बतलाया है कि-
"#देवनागरी का #जन्म :-
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#देवनागरी की प्रथम स्पष्ट #झलक 8.वीं शताब्दी के "राजा दन्तिदुर्ग" द्वितीय (इसको #दन्तिवर्मन के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है)के दान पत्रों में #दृष्टिगोचर हुई. इस राजा ने 747-753 तक राज्य किया था.यह मनखेड "राष्ट्रकूट वंश" का संस्थापक था.इसने 753में अपने 3ताम्र-#दान पात्र-अंकित करवाए जो "सभनगढ" के पहाड़ी दुर्ग से प्राप्त हुए हैं.यह दुर्ग-किला #बेलगांव से 24 मिल की दुर #कोल्हापुर जनपद में स्थित है.इस "दक्षिणी देवनागरी" को "नन्दिनागरी" के नाम से सम्बोधित करते थे.ननन्दि नगर #बैंगलोर से 36मिल उत्तर की ओर स्थित है.इस देवनागरी का ननन्दि नगर में अधिक प्रयोग रहा हो इस कारण "#ननन्दिनागरी" कहलाने लगे हो.""
पृष्ट 102-07 एवं 186. लेखन कला का इतिहास, लेखक श्री.ईश्वर चंद्र राही.
अब आप लोगों की ही चिंतनधारा पर ही यह बात आधारित है कि तथाकथित प्राचीन वेदों की रचना "देवनागरी लिपि" में जी किस काल-खंड में हुई होगी?
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