बुद्ध ने हमेशा स्वयं को सामान्य-जन ही बताया-
उप्पादा वा, भिक्खवे, तथागतानं अनुप्पादा; ठिताव सा धातु धम्मट्ठिता, धम्मनियामता- सब्बे संखारा अनिच्चा।
भिक्खुओ! चाहे तथागत उत्पन्न हो या न उत्पन्न हो; यह धम्म(प्रकृति )-स्थिति, नियम यथावत रहता है- सभी संस्कार अनित्य है।
उप्पादा वा, भिक्खवे, तथागतानं अनुप्पादा; ठिताव सा धातु धम्मट्ठिता, धम्मनियामता- सब्बे संखारा दुक्खा।
भिक्खुओ! चाहे तथागत उत्पन्न हो या न उत्पन्न हो; यह धम्म-स्थिति, नियम यथावत रहता है- सभी संस्कार दुक्खमय है।
उप्पादा वा, भिक्खवे, तथागतानं अनुप्पादा; ठिताव सा धातु धम्मट्ठिता, धम्मनियामता- सब्बे धम्मा अनत्ता।
भिक्खुओ! चाहे तथागत उत्पन्न हो या न उत्पन्न हो; यह धम्म-स्थिति, नियम यथावत रहता है- सभी धर्म अनात्म है(उप्पाद सुत्त
तिक निपात अंगुत्तर निकाय)।
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