सारणीय सुत्त
भिक्खुओ! ये तीन बातें भिक्खु को जोवन भर याद रहती है। कौन-सी तीन बातें?
तीणिमानि भिक्खवे! भिक्खुस्स यावजीवं सारणीयानि होन्ति। कतमानि तीणि?
भिक्खुओ! जिस जगह भिक्खु बाल-दाढ़ी मुडवा, कासाय-वस्त्र पहन कर घर से बेघर हो प्रव्रजित होता है, भिक्खुओ! यह पहली बात है, जो भिक्खु को जीवन भर याद रहती है।
यस्मिं भिक्खवे! ठाने भिक्खु केसमस्सुं ओहारेत्वा कासायानि वत्थानि आच्छादेत्वा अगारस्मा अनगारियं पब्बजितो होति। इदं भिक्खवे, पठमं भिक्खुस्स यावजीवं सारणीयं होति।
फिर भिक्खुओ! जिस स्थान पर भिक्खु को यह दुक्ख है, इसका यथार्थ ज्ञान होता है, यह दुक्ख समुदय है, इसका यर्थाथ ज्ञान होता है, यह दुक्ख-निरोध है, इसका यथार्थ ज्ञान होता है, यह निरोध-गामिनी प्रतिपदा है, इसका यर्थाथ ज्ञान हो जाता है। भिक्खुओ! यह दूसरी बात है, जो भिक्खु को जीवन भर याद रहती है।
पुनं च परं भिक्खवे! यस्मिं ठाने भिक्खु ‘इदं दुक्खं‘ति यथाभूतं पजानाति, अयं दुक्खं समुदयो‘ति यथाभूतं पजानाति, अयं दुक्ख-निरोधो यथाभूतं पजानाति, अयं दुक्ख-निरोध पटिगामिनी यथाभूतं पजानाति। इदं भिक्खवे! दुतियं भिक्खुस्स यावजीवं सारणीयं होति।
फिर भिक्खुओ! जिस स्थान पर भिक्खु आसवों का क्षय करके अनासव-चित्त विमुक्ति तथा प्रज्ञा-विमुक्ति को इसी सरीर में स्वयं जानकर, साक्षात्कार कर प्राप्त कर विहार करता है, भिक्खुओ! यह तीसरी बात है जो भिक्खु को जन्म भर याद रहती है।
पुनं च परं भिक्खवे! यस्मिं ठाने भिक्खु आसवानं खया, अनासवानं चेतोविमुत्तिं च पञ्ञाविमुत्तिं दिट्ठेव धम्मे सयं अभिञ्ञा, सच्छिकत्वा उपसम्पज्ज विहरति। इदं भिक्खवे! ततियं भिक्खुस्स यावजीवं सारणीयं होति। इमानि खो तीणिमानि भिक्खवे! भिक्खुस्स यावजीवं सारणीयानि होन्ति (सारणीय सुत्तंः तिकनिपातः अंगुत्तरनिकाय, पृ 123/383)।
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