कुशल कर्मों का अभ्यास करो-
भिक्खुओ! कुशल कर्मों का अभ्यास करो।
कुसलं भिक्खवे! भावेथ।
भिक्खुओ! कुशल कर्मों का अभ्यास हो सकता है।
सक्का भिक्खवे! कुसलं भावेतुं।
भिक्खुओ! यदि कुशल कर्मों का अभ्यास न किया जा सकता, तो मैं ऐसा नहीं कहता।
नो च इदं भिक्खवे! सक्का अभविस्स कुसलं भावेतुं, नाहं एवं वदेय्य।
लेकिन, क्योंकि कुशल कर्मों का अथ्यास हो सकता है, इसलिए मैं कहता हूं कि भिक्खुओ! कुशल कर्मों का अभ्यास करो।
यस्मा खो च भिक्खवे। सक्का कुसलं भावेतु, तस्माहं एवं वदामि- कुसलं भिक्खवे! भावेथ।
भिक्खुओ! यदि कुशल कर्मों का अभ्यास करने से अहित और दुक्ख होता, तो मैं ऐसा नहीं कहता।
कुसलं च हिदं भिक्खवे! भावितं अहिताय दुक्खाय संवत्तेय्य, नाहं एवं वदेय्य।
लेकिन, क्योंकि कुशल कर्मों का अभ्यास हित और सुख के लिए होता है, इसलिए मैं कहता हूं कि भिक्खुओ! कुशल कर्मों का अभ्यास करो।
यस्मा च खो भिक्खवे! कुसलं भावितं हिताय सुखाय संवत्तति, तस्माहं एवं वदामि- कुसलं भिक्खवे! भावेथ‘ ’’ति(अधिकरणवग्गोः दुकनिपातः अंगुत्तर निकाय पृ. 81/324)। ।
No comments:
Post a Comment