तृतीय धार्मिक क्रान्ति : तृतीय क्रान्ति बौद्ध प्राबल्य को पुन: रोकने के लिये राजा किन्नर, सिद्ध, गोपादित्य, सन्धि मति के काल में हुई थी । बौद्ध विहारों को भस्म करने का भी उल्लेख इस समय मिलता हैं । (राजतरंगिणी १ : २००) राजा सिद्ध ने शैव मत को पुनः स्थापित किया था । (राजतरंगिणी १ : २७६) गोपादित्य ने वर्णाश्रम धर्म परिपालन हेतु ठोस कदम उठाया था। तथापि अहिंसा व्रत का परिपालन किया गया। बलिप्रथा का सक्रिय विरोध होता रहा। (राजतरंगिणी १: ३४४) सन्धिमत के समय शैव भक्ति का पूर्णरूपेण काश्मीर मण्डल में प्रचार हो गया। (राजतरंगिणी २ : १३२)
कल्हण ने विष्णु का सर्वप्रथम उल्लेख प्राग्ज्योतिष के सन्दर्भ तथा राजा मेघवाहन के विवाह-सम्बन्ध में किया हैं । (राजतरंगिणी २ : १४७) विष्णु पूजा का प्रवेश बाहरी प्रभाव के कारण काश्मीर में हो सका था। मेघवाहन की रानी अमृतप्रभा थी। बंगाल तथा आसाम में वैष्णव मत का प्रभाव था । एतदर्थ विष्णु का प्रवेश काश्मीर में रानी अमृत प्रभा तथा रानी रणा रम्भा के कारण हुआ । परन्तु वह शिवपूजा तथा उपासना के समान सर्वमान्य नही हो सका ।
चतुर्थ धार्मिक क्रान्ति : चतुर्थ धार्मिक क्रान्ति राजा मेघवाहन के समय में हुई थी । इस काल में बौध्द मत का प्रचार पुनः हुआ। इस समय बौद्ध और शैव दोनों मत बहुत समीप आने लगे । मेघवाहन ने शैव उपासना का विरोध नही किया। उसका एकमात्र उद्देश्य था जगत में भगवान् बुद्ध के उपदेशानुसार धम्मराज्य स्थापित करना।
मेघवाहन अपने उत्तम आचरण तथा कर्मों से बोधिसत्वो के कार्यों से भी आगे बढ गया था। उसने भिक्षुओं तथा उपासको (गृहस्थों) के लिए नन्दवन विहार स्थापित किया । भगवान् बुद्ध जेतवन, आम्रवन तथा वेणुवन आदि विहारो में निवास करते थे । प्रतीत होता हैं उसी का अनुकरण कर मेघवाहन ने नन्दवन विहार स्थापित किया था । (राजतरंगिणी ३ : १२) उसके समय में अहिंसा (मैत्री एवं प्रेम) मर्यादा का पटह घोष किया गया था। उसकी रानी अमृत प्रभा के पिता का गुरु स्तुन्या था । वह लोट अर्थात् लद्दाख दिश से आया था। उसने लो स्तुन्या स्तूप स्थापित किया । ( राजतरंगिणी- ३ .१०)
राजा ने विश्व के इतिहास का एक अभिनव अभियान आरम्भ किया । उसने दिग्विजय कर विश्व में प्राणि हिंसा निषेध करने का निश्वय किया। (राजतरंगिणी- ३ : २७) दक्षिण समुद्र तट पर मेघवाहन का शिविर पड़ा था। एक शवर चणिकायतन में नरबलि करने के लिये सन्नद्ध था। उस समय राजा ने स्वयं अपना शरीर अर्पित कर बलि से शवर को विरत किया था । (राजतरंगिणी- ३ : ५७) उसने ब्राह्मण बालक कि रक्षा के लिये स्वयं अपना शरीर बलि के लिए अर्पित कर प्राणि रक्षा का स्तुत्य प्रयास किया था। (राजतरंगिणी- ३ : ८८) राजा ने राक्षसो से भी अहिंसा बल लेकर उन्हें हिंसा कर्म से 'विरत किया था। (राजतरंगिणी- ३ : ७८-७९ ) राजा ने अपने राज्य तथा भारतवर्ष में महाघोष कराया कि कोई भी प्राणी क्यों न हो वे सब अवध्य हैं । (राजतरंगिणी- ३ : ८८)
मेघवाहन ने सर्व प्रथम काश्मीर में बुद्ध प्रतिमा अपनी पत्नी भिन्नो के विहार में स्थापित किया था। (राजतरंगिणी- ३ : ४६४) मेघवाहन का जन्म गांधार में हुआ था। गान्धार प्रदेश में महायान बौद्धों का प्राबल्य था। कनिष्क के कारण अफगानिस्तान, तुर्किस्तान तक बौद्ध धर्म पहुँच गया था । गान्धार शैली का स्थापत्य विकसित हो चुका था । मेघवाहन गान्धार मे रहने के कारण उनसे प्रभावित था, अतएव मेघवाहन ने भगवान् बुद्ध की प्रतिमा काश्मीर में स्थापित की । इस प्रकार उसने प्रतिमा स्थापन की परम्परा चलायी । वह सम्राट् अशोक, हर्षवर्धन तथा कनिष्क के पश्चात् चौथा महान भारतीय सत्व था जिसने बौद्ध धर्म के प्रचार हैतु सक्रिय पग उठाया था। Dev Bhivsane...
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