पालि भाषा भारत की एक प्राचीन भाषा है। पालि जिसकी लिपि, धम्मलिपि है, के वर्णाक्षर और सिन्धू संस्कृति के संकेताक्षरों में बहुत साम्यता है। पालि भाषा का मूल नाम मागधी है। यह मगध राज्य और इसके आस-पास के क्षेत्र में बोली जाती थी। बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा में दिए थे, इसलिए पालि को ‘बुद्धवचन’ भी कहा जाता है। बुद्धवचन की भाषा होने के कारण पालि भाषा का प्रचार तेजी से हुआ। मगध साम्राज्य ने भी इसी भाषा को अपनी राजभाषा बनाया। परिणामस्वरूप पालि, एशिया महाद्वीप की सीमाओं को लांघ गई। पालि अशोक काल की यह राजभाषा थी। अशोक ने अपने साम्राज्य में आम जनता के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश पालि में ही लिखवाये थे, जो शिला, स्तम्भ, और गुफालेख के रूप में हमें मिलते हैं। अशोक के अधिकांश शिलालेख धम्मलिपि में हैं।
बोली मनुष्य विकास के क्रम में आपसी संवाद के लिए प्रयुक्त संकेतों का विकसित रूप है। प्रारम्भ में प्राकृत अर्थात क्षेत्रिय बोली का विकास होता है, तदन्तर वह व्याकरण की क्रमबद्ध संरचना को पार कर भाषा का रूप लेती है। संसार की प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण होता है। पालि भाषा का भी अपना व्याकरण है। पालि भाषा में व्याकरण की कई परम्पराएं हैं। उस में कच्चान व्याकरण और मोग्गल्लान व्याकरण दो परम्पराएं प्रमुख है। बुद्ध के प्रधान शिष्य महाकच्चान ने पालि भाषा का व्याकरण तैयार किया था; किन्तु वह नहीं मिलता है। आजकल कच्चान, मोग्गल्लान- इन्हीं दो व्याकरणों का अधिक प्रचार है। मोग्गल्लान व्याकरण आज से लगभग 750 वर्ष पूर्व सिंहलद्वीप में प्रथम पराक्रमबाहु के समय लिखा गया था।
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