गहरा षडयंत्र-
(1). बाल गंगाधर तिलक ने अपने द्वारा लिखित सन् 1895 के "संविधान " में और उनकी पत्रिका -केसरी और मराठा पत्रिका के लेख में लिखा है कि, "शूद्र वर्ण (पिछड़ा वर्ग) और अछूतों को " भारत की नागरिकता " नही दी जा सकती क्योंकि वर्ण व्यवस्था के अनुसार 'शुद्र वर्ण' का एकमात्र कर्तव्य तीनों उच्च वर्णों {ब्राह्मण, छत्रिय (ठाकुर), वैश्य (बनिया)} की सेवा करना है और धर्म शास्त्रों के अनुसार वे किसी भी "अधिकार" को धारण करने के अधिकारी नही हैं।
(2). मोहन दास कर्मचंद गांधी ने 1925 में लिखी अपनी पुस्तक "भारत का वर्णाश्रम धर्म और जाती व्यवस्था" में साफ साफ लिखा है कि, " शूद्र वर्ण (पिछड़ा वर्ग) और दलितों को "भारत की नागरिकता" की मांग करनी ही नही चाहिए क्योकि इससे "वर्णाश्रम धर्म" नष्ट हो जायेगा।"
(3). राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दूसरे सरसंघ संचालक -गुरु गोलवरकर अपनी पुस्तक "बंच ऑफ़ थॉट्स" में लिखते हैं कि "शूद्र वर्ण को देश की नागरिकता किसी भी हालत में नही दी जानी चाहिये क्योंकि वेदों के अनुसार हमारे पूर्वजों ने शूद्रों के पूर्वजों को हराकर शूद्रों को उच्च तीनों वर्णों की सेवा का काम सौंपा हैं।"
(4). सन् 1932 में गोलमेज कांफ्रेंस (लन्दन, इंग्लैंड) में आयोजित की गयी थी जिसमें कांग्रेस, महात्मा गांधी और हिन्दू महासभा की ओर से मदन मोहन मालवीय ने प्रतिनिधित्व किया था, जिसमें इन दोनों ने "शूद्र वर्ण" की "नागरिकता "और "वयस्क मताधिकार" का जबरदस्त विरोध किया था। लेकिन बाबा साहेब डा.भीमराव अम्बेडकर ,भास्कर राव जाधव (कुनबी) और प्रो. जयकर (माली ) के अकाट्य तर्कों और मजबूत आधार के कारण शूद्र वर्ण (पिछड़ा वर्ग) और दलित समाज को ये अधिकार अंग्रेजी सरकार को देने पड़े थे।
(5). आरएसएस की राजनैतिक शाखा "बीजेपी" सरकार का CAA, NRC और NPR का मामला इसी परिप्रेक्ष्य में देखना होगा।
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