कान्हेरी पर्वत का नाम वहाँ के शिलालेखों में 'कन्हासित पर्वत 'लिखा मिलता है। कान्हेरी को 'कन्हागिरी 'अथवा कृष्णागिरी भी कहा जाता है। यहाँ 107 विहार और 7 चैत्यगृह हैं।ईसा पूर्व की दूसरी सदी से ग्यारहवीं सदी तक यानि तेरह सौ वर्षों तक यहाँ बीच बीच में लेणी (गुफाएँ) निर्माण का कार्य होता रहा है।
38 नंबर की लेणी में और आसपास लगभग 600 फुट लंबी गैलरी में ईंटों से निर्मित, लेकिन अब ध्वस्त अवस्था में अनेक स्तूप हैं। लुटेरों ने इन स्तूपों को नुकसान पहुँचाकर यहाँ की वस्तुएं चुरा ली हैं,ऐसा दिखाई पड़ता है।
23 नंबर की गुफ़ा में चार हाथ और ग्यारह सिरवाली अवलोकितेश्वर की एक प्रतिमा है। भारत में ऐसी मूर्ति दूसरी जगह अन्यत्र दिखाई नहीं देती। लेकिन ऐसी प्रतिमाएँ और चित्र नेपाल, तिब्बत, कंबोडिया और जापान में देखे जा सकते हैं।
84 नंबर की लेणी के पास, नदी के उत्तर दिशा में धातु गलाने की एक भट्टी रही होगी, ऐसा कहा जा सकता है।
साभार : Dhammachakra धम्मचक्र : राजेंद्र गायकवाड़
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