छत्तीसगढ़ को कौशल प्रदेश भी कहा जाता रहा है.. इसे काल्पनिक वैदिक साहित्य रामायण के कौशल्या से संबंध स्थापित करने का भूल न करें..। बौद्धिक नगरी साकेत आज अयोध्या के नाम से जाना जाता है वहां के प्राप्त अवशेष अपने आप में छद्म कथाओं का पोल खोलता है..।
भारत दो प्रमुख साम्राज्य मगध और कौशल प्रदेश के नाम से विख्यात रहा है। कौशल प्रदेश का नाम व पहचान अपनी कृषि और कला के क्षेत्र में कुशलता अथवा प्रवीणता का परिचायक रहा है। जल जंगल और जमीन की आधुनिकतम उपयोगिता से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ दक्षिण कौशल के नाम पर विख्यात रहा है। जिसका राजधानी महानदी के तट पर बसा सिरपुर के नाम से जाना जाता है बौद्धिक विकास का महानतम केंद्र रहा है। जिसका नमूना आज धरती के आगोश में दबी खंडहरों से पता चलता है कि यह प्राचीन बौद्धिक शिक्षा केंद्र कितना विशाल रहा है। यह सभ्यता और संस्कृति बस्तर से लेकर महानदी और हसदेव नदी के तटपर पत्थरों में खुदे अनेकों शिलालेख से पता चलता है। यद्यपि ये इन शिलालेखों की लिपि पाली या प्राकृत भाषा दृष्टिपात होती है जो देवनागरी अथवा संस्कृत भाषा से हजारों साल पुरानी प्रतीत होती है।
कुछ लोग कौशल शब्द से यहां कौशल्या की जन्मभूमि बता कर रामवनगमन पथ की तलाश में भटकते फिर रहे हैं उन्हें सद्बुद्धि मिले।
छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र ऋग्वेद काल से भी प्राचीन लगता है .. जहां एक तरफ असुरगुजा (गढ़) राजा शबर, तो दूसरी ओर बारासुर जैसे राजा बलि के वंशजों का केंद्र रहा है जिन्होंने आर्यपुत्रों को भारत भूमि के प्रवेश पर डटकर मुकाबला किया है.. जिसके अनेकों प्रमाण यहां की प्राचीन श्रमण संस्कृति के रुप में आज भी मौजूद है। यहां की विभिन्न प्रकार के लोहा, हीरा, सोना, चांदी, तांबा, पीतल, कांसा, एल्युमिनियम आदि धातुओं के कलाकृतियों में महारत होने के अलावा मिट्टी, लकड़ी, बांस, चमड़ा, व अन्य प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ वनोपज से संबंधित सूती व कोसा कपड़ों की बारीकियों के जानकार कला कौशलता में विश्व विख्यात रहा है सिरपुर इसका जीता जागता प्रमाण है जहाँ ईंटों और पत्थरों की अनुपम कलाकृति का नमूना देखने को मिलता है। पूरा छत्तीसगढ़ एक समय बौद्धिक ज्ञान का केंद्र रहा है जिसके अनेकों जगह खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है। इससे पता चलता है के अनेक आतताइयों से लड़ते मुकाबला करते हुए इसी कृषि और कला के धनी होने के कारण आज भी अपना अस्तित्व व अस्मिता दोनों को को बचाए रखने में सफल हैं।
यद्यपि छत्तीसगढ़ भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत सुरक्षित क्षेत्र माना जाता है यही कारण वैदिक आतताइयों के दुष्प्रभाव से अब तक बचे रहे। हयहयवंशी साम्राज्य को स्वर्णिम युग कहा जाता रहा है जिसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है। ऐतिहासिक सहस्त्रबाहू उर्फ कीर्तवीर्यार्जुन का उल्लेख महिष्मती साम्राज्य की संप्रभुता को दर्शाता है जिसका उल्लेख ऐतिहासिक पुष्यमित्र और पौराणिक परशुराम घोलमेल भी वैदिक साहित्यों में मिलता है। आज भी यहां के हैहैवंशी लोग कीर्तवीर्यार्जुन सहस्त्रबाहू को अपना ईष्ट मानते हैं।
सिरपुर महोत्सव दिनांक 12 से 14 मार्च को मनाया जा रहा है निश्चित ही यह गौरवशाली इतिहास की खोज में मील का पत्थर साबित होगा।
बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ..
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