बौद्ध धर्म; एक आर्येतर सांस्कृतिक संघर्ष-
पिछले इतिहासकार भारत की आर्येतर जातियों को प्रायः बर्बर ओर असभ्य मानते थे, अतयव यह कल्पना करते थे कि वैदिक तथा परवर्ती भरतीय सभ्यता के अभ्युन्नत तत्व मूलतः आर्यों की देन होंगे। परन्तु अब हरप्पा संस्कृति के पता लगने पर न केवल यह दृष्टि भ्रान्त ठहरति है, प्रत्युत यह प्रतीत होता है कि भारत में आर्यों के आक्रमण को एक सभ्य प्रदेश में बर्बर जाति का प्रवेश समझना चाहिए।
यद्यपि आर्यों ने अपनी पूर्व वर्तिनी आर्येतर सभ्यता को ध्वस्त कर अपनी विशिष्ट भाषा, धर्म ओर समाज को भारत में प्रतिष्ठित किया तथापि यह निर्विवाद है कि सांस्कृतिक विध्वंस निरन्वय विनाश नहीं था और सिन्धु-संस्कृति के अनेक तत्व परवर्ती आर्य सभ्यता में अंगीकृत हुए।
आर्य तथा आर्येतर सांस्कृतिक परम्पराओं का समन्वय भारतीय समाज के निर्माण की आधार-शिला सिद्ध हुई। इसका प्रभाव एक ओर उत्तर वैदिक कालिन समाज-रचना में स्पष्ट देखा जा सकता है, दूसरी ओर उस बौद्धिक और आध्यात्मिक आन्दोलन में जिसका चरम परिणाम बौद्ध धर्म का अभ्युदय था (डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डेयः बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ. 1)।
पिछले इतिहासकार भारत की आर्येतर जातियों को प्रायः बर्बर ओर असभ्य मानते थे, अतयव यह कल्पना करते थे कि वैदिक तथा परवर्ती भरतीय सभ्यता के अभ्युन्नत तत्व मूलतः आर्यों की देन होंगे। परन्तु अब हरप्पा संस्कृति के पता लगने पर न केवल यह दृष्टि भ्रान्त ठहरति है, प्रत्युत यह प्रतीत होता है कि भारत में आर्यों के आक्रमण को एक सभ्य प्रदेश में बर्बर जाति का प्रवेश समझना चाहिए।
यद्यपि आर्यों ने अपनी पूर्व वर्तिनी आर्येतर सभ्यता को ध्वस्त कर अपनी विशिष्ट भाषा, धर्म ओर समाज को भारत में प्रतिष्ठित किया तथापि यह निर्विवाद है कि सांस्कृतिक विध्वंस निरन्वय विनाश नहीं था और सिन्धु-संस्कृति के अनेक तत्व परवर्ती आर्य सभ्यता में अंगीकृत हुए।
आर्य तथा आर्येतर सांस्कृतिक परम्पराओं का समन्वय भारतीय समाज के निर्माण की आधार-शिला सिद्ध हुई। इसका प्रभाव एक ओर उत्तर वैदिक कालिन समाज-रचना में स्पष्ट देखा जा सकता है, दूसरी ओर उस बौद्धिक और आध्यात्मिक आन्दोलन में जिसका चरम परिणाम बौद्ध धर्म का अभ्युदय था (डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डेयः बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ. 1)।
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