रोमिला थापर का इतिहास ज्ञान-
राजकमल प्रकाशन दिल्ली, से प्रकाशित 'इतिहास की पुनर्व्याख्या' नामक लेख संकलन के अपने पाहिले ही लेख- 'हम में से आर्य कौन है ?' के पृ. 20 पर वैदिकोत्तर भाषा सम्बन्धी बदलाव की चर्चा करते हुए कहती है- पाणिनि का व्याकरण, जो सामान्यत: ईसा पूर्व 15 वीं शताब्दी के अंतिम भाग में लिखा गया बतलाया जाता है, इस परिवर्तन का दूसरा संकेत है।
1. गोल्डस्टक्कर और सर आर. जी. भण्डारकरः (सम अस्पेक्ट्स आफ एन्सियन्ट इन्डियन कल्चर, 1940) का मत है कि पाणिनि -कृत ‘अष्टाधायी’ की रचना 700 ई. पू. के लगभग हुई। किन्तु मेक्डाॅनल का विचार है कि पाणिनि का काल 350 ई. पू. के लगभग माना जाता है. इस विषय में प्रमाण तो बहुत ही संदिग्ध है। सम्भवत: उसका काल 500 ईसा पूर्व के पूर्व या उसके शीघ्र बाद का है (बी. डी. महाजन: प्राचीन भारत का इतिहास: सूत्रों का युग, पृ. 115)।
2. पाणिनि यास्क (संभवतः 500 ई. पू. के लगभग ) से काफी बाद में हुए हैं। पाणिनि ने यास्क का उल्लेख किया है। दूसरी ओर पाणिनि अपने भाष्यकार पतंजलि से बहुत प्राचीन है, जिसका समय संभवतः 200 ई. पू. है। अतः पाणिनि का समय 300 ई. पू. से पहले रखना अत्यन्त कठिन है(संस्कृत व्याकरण प्रवेशिकाः डा. आर्थर ए. मैकडानल )।
3. वैय्याकरणों के कई वर्षों तक परिश्रम करते रहने के बाद लगभग ईसा पूर्व 400 में (बुद्ध से प्राय: 350 वर्ष बाद ) पाणिनि ने इस शास्त्र को सर्वांग पूर्ण बनाया(भिक्षु जगदीश काश्यप: पालि और वैदिक भाषा : पालि महा व्याकरण )।
राजकमल प्रकाशन दिल्ली, से प्रकाशित 'इतिहास की पुनर्व्याख्या' नामक लेख संकलन के अपने पाहिले ही लेख- 'हम में से आर्य कौन है ?' के पृ. 20 पर वैदिकोत्तर भाषा सम्बन्धी बदलाव की चर्चा करते हुए कहती है- पाणिनि का व्याकरण, जो सामान्यत: ईसा पूर्व 15 वीं शताब्दी के अंतिम भाग में लिखा गया बतलाया जाता है, इस परिवर्तन का दूसरा संकेत है।
1. गोल्डस्टक्कर और सर आर. जी. भण्डारकरः (सम अस्पेक्ट्स आफ एन्सियन्ट इन्डियन कल्चर, 1940) का मत है कि पाणिनि -कृत ‘अष्टाधायी’ की रचना 700 ई. पू. के लगभग हुई। किन्तु मेक्डाॅनल का विचार है कि पाणिनि का काल 350 ई. पू. के लगभग माना जाता है. इस विषय में प्रमाण तो बहुत ही संदिग्ध है। सम्भवत: उसका काल 500 ईसा पूर्व के पूर्व या उसके शीघ्र बाद का है (बी. डी. महाजन: प्राचीन भारत का इतिहास: सूत्रों का युग, पृ. 115)।
2. पाणिनि यास्क (संभवतः 500 ई. पू. के लगभग ) से काफी बाद में हुए हैं। पाणिनि ने यास्क का उल्लेख किया है। दूसरी ओर पाणिनि अपने भाष्यकार पतंजलि से बहुत प्राचीन है, जिसका समय संभवतः 200 ई. पू. है। अतः पाणिनि का समय 300 ई. पू. से पहले रखना अत्यन्त कठिन है(संस्कृत व्याकरण प्रवेशिकाः डा. आर्थर ए. मैकडानल )।
3. वैय्याकरणों के कई वर्षों तक परिश्रम करते रहने के बाद लगभग ईसा पूर्व 400 में (बुद्ध से प्राय: 350 वर्ष बाद ) पाणिनि ने इस शास्त्र को सर्वांग पूर्ण बनाया(भिक्षु जगदीश काश्यप: पालि और वैदिक भाषा : पालि महा व्याकरण )।
No comments:
Post a Comment