जब देश ,संगठन और समाज में कोई गद्दारी करता है तो उसे सवर्ण हो या बहुजन बेधड़क जयचन्द कह देते हैं। लेकिन जयचंद्र को सवर्णो ने गद्दार क्यों कहा इसका इतिहास सवर्णों को ज्ञात है बहुजनों को नहीं। बहुजन तो सवर्णों की नकल करते हैं। 12वी शताब्दी में दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान नामक एक राजपूत राजा था। उसी समय कन्नौज में जयचंद्र नामक बौद्ध राजा का शासन था। वह बौद्ध धर्म के समानता वादी नियमों का पालन करता था। एक बार महोबा के राजा परिमाल देव ने अपने साले महिपाल ( माहिल ) की चुगली के कारण बौद्ध सेनानायक आल्हा ऊदल को महोबा से बाहर चले जाने का आदेश दिया। भरी बरसात में चवरवीर आल्हा ऊदल और उनके परिवार को कन्नौज के राजा जयचंद्र ने शरण दिया। उनको सम्मान सहित अपना सेनापति बनाया। यह बात राजपूत राजाओं और ब्राह्मणवादियों को बहुत बुरी लगी। पृथ्वीराज चौहान का ब्राह्मण सरदार चामुंडराय बौद्ध धर्म से घृणा करता था। उसी समय पृथ्वीराज चौहान ने चामुंडराय के साथ एक बड़ी सेना लेकर दिल्ली के ही अशोक स्तम्भ को नष्ट करने का कार्य शुरू किया। यह अशोक स्तम्भ विशाल और मजबूत दीवारों के बीच था। यह बात जयचन्द को मालूम हुई तो उसने आल्हा ऊदल और अपने भतीजे लाखन सिंह को अशोक स्तम्भ की रक्षा करने के लिए भेजा। भयानक युद्ध हुआ। इसमें आल्हा का पूरा खानदान मारा गया। पृथ्वीराज चौहान के भी बहुत से बहादुर सरदार मारे गए। ऊदल जब पृथ्वीराज चौहान को धरती में पटककर उसकी गर्दन काटने वाला था तब चामुंडराय ने पीछे से आकर ऊदल की हत्या कर दिया। यह देखकर आल्हा ने चामुंडराय को मौत के घाट उतार दिया। पृथ्वीराज चौहान को पकड़कर उसकी आँखें निकाल लिया।उसी समय आल्हा ऊदल के गुरु अमरनाथ के गुरु गोरखनाथ ने आल्हा के हाथों पृथ्वीराज चौहान को मरने से बचा लिया। फिर गोरखनाथ आल्हा को युद्ध क्षेत्र से बाहर ले गए।आल्हा ने अपने खानदान की मृत्यु होने पर दुखी होकर सन्यास ले लिया। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का दामाद ब्रह्मा जीत भी मारा गया।जो आल्हा ऊदल की तरफ से लड़ रहा।उसकी मौत पर उसकी पत्नी याने पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला ने अपने पति की चिता में जलकर अपने प्राण त्याग दिया। दिल्ली में आज भी उसकी याद में बेला सती रोड स्थित है। जिस अशोक स्तम्भ को पृथ्वीराज चौहान ने नष्ट किया था उसकेअवशेष काफी समय तक कुतुबमीनार के परिसर में रखे हुए थे। पृथ्वीराज चौहान की जान बच गई। उसने फिर से राजपूतों की सेना तैयार किया। और कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता का हरण कर लिया । इस तरह पृथ्वीराज चौहान ने पहले अशोक स्तम्भ को नष्ट किया। आल्हा ऊदल के खानदान को नष्ट किया। बाद में जयचंद्र की बेटी संयोगिता का हरण करके जयचंद को अपमानित किया। इसी कारण जब 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का दूसरा युद्ध हुआ तो जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का साथ नहीं दिया। और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। वह मारा गया। इसी कारण जयचंद्र को ब्राह्मणवादियों ने गद्दार कहा। इसके विपरीत मुगल बादशाह बाबर को भारत में आक्रमण करने का निमंत्रण देने वाले राणा सांगा( संग्रामसिंह) को गद्दार नहीं कहा गया। इसी प्रकार अकबर को अपनी बहिन जोधाबाई देने वाले राजा मानसिंह को गद्दार नहीं कहा गया। मानसिंह ने अकबर की आज्ञा पर राणा प्रताप को हराया था। इसी अकबर के दरबार में तानसेन नामक ब्राह्मण गायक था। जो अकबर का मनोरंजन करता था।इसे गद्दार नहीं कहा गया। इसी तानसेन के नाम पर आज भी सरकार द्वारा ग्वालियर में भव्य संगीत समारोह होता है।अकबर के दरबार में बीरबल नामक सवर्ण चाटूकार भी था।जिसे सवर्णों ने बहुत बुद्धिमान कहा है। जबकि इसको गद्दार कहा जाना था। साथियों इतिहास को बहुत तोड़मरोड़ कर लिखा गया है। हमारे बहुजन समाज के विद्वानों को जयचन्द को गद्दार नहीं कहना चाहिए। क्योंकि वह बौद्ध धर्म का रक्षक राजा था
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