बहुत दिनों से यह गुत्थी मैं सुलझा रहा था कि आखिर कबीर, नानक और पलटूदास जैसे क्रांतिमना की कथाएँ जगन्नाथ से क्यों जुड़ी हैं?
दरअसल बुद्ध का ही एक नाम जगन्नाथ था। अपना हाथ जगन्नाथ वस्तुतः अप्प दीपो भव का ही रूपांतरण है वरना उस जगन्नाथ को तो हाथ ही नहीं है।
इंद्रभूति ने एक किताब लिखी है - ज्ञानसिद्धि। इस पुस्तक में इंद्रभूति ने बुद्ध स्वरूप जगन्नाथ की आराधना की है। इसका मतलब यही हुआ कि उन दिनों गौतम बुद्ध का एक संबोधन " जगन्नाथ " था।
कबीरपंथी ग्रंथ लक्ष्मणबोध में लिखा है कि कलियुग में बुद्ध की स्थापना जगन्नाथ के नाम से होगी। दोहा पढ़िए।
अब कलियुग बैठेगा सोई ।
बौद्ध थापना हमरो होई ।।
जगरनाथ मम नाम है सोई।
हमरी थापना यही विधि होई।।
( संदर्भ: सिद्ध साहित्य, डाॅ. धर्मवीर भारती, पृ. 330 - 31)
ज्ञानसिद्धि, लक्ष्मणबोध आदि पुस्तकों में बताया गया है कि गौतम बुद्ध का एक संबोधन जगन्नाथ था। बैंकटेश प्रेस के आल्हाकाव्य की सुमिरनी में भी जगन्नाथ को बुद्ध के रूप में स्मरण किया गया है।
आल्हाकाव्य की सुमिरनी पढ़िए।
फिरि मैं सुमिरूँ जगन्नाथ को,
कलियुग बौध रूप अवतार।
विंध्यवासिनी को मैं सुमिरूँ,
जो निकली हैं फोरि पहार।
कबीर कविताओं को लिखते नहीं थे, बोलते थे। कबीर की कविताओं का संग्रह उनके शिष्य धरमदास ने किया है।
धरमदास ने लिखा है कि मैं पुरी घूम आया हूँ। इतना ही नहीं, धरमदास ने जगन्नाथ से कबीर का संबंध जोड़कर महिमागान भी किया है।
कबीर - कथा में भी यह उल्लेख है - सति कबीर है वपु जगनाथा।
नानक तो 24 दिन पुरी में थे। वे पुरी के राजा प्रताप रुद्रदेव के शासनकाल के 13 वें वर्ष में पुरी गए थे।
और पलटूदास के बारे में कहा जाता है कि - जगरनाथ की गोद में पलटू सूते जाई।
अवधपुरी में जरि मुए, दुष्टन दिया जराई।
जगरनाथ की गोद में, पलटू सूते जाई।।
कवि पलटू को अयोध्या में जिंदा जलाए जाने की यह कविता डाॅ. रामकुमार वर्मा की प्रसिद्ध पुस्तक " हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास " से ली गई है।
कविता का अर्थ है कि दुष्टों ने अयोध्या में कवि पलटू को जलाकर मार डाला और वे जगरनाथ की गोद में मृत्यु को प्राप्त हुए।
सवाल यह है कि आखिर यह जगन्नाथ की गोद अर्थात जगन्नाथ धाम कहाँ था? उत्तर स्पष्ट है कि यह जगन्नाथ धाम अयोध्या में था। पलटू को अयोध्या में जलाया गया और वे अयोध्या में ही मरे। भला किसी आदमी को जलाया जाएगा अयोध्या में और वह जाकर उड़ीसा की जगन्नाथ पुरी में मरेगा?
कुछेक आलोचकों ने जगन्नाथ का अर्थ उड़ीसा के जगन्नाथ से कर डाला है, जो कि गलत है। अयोध्या में ही जगन्नाथ थे। जगन्नाथ अर्थात बुद्ध और पलटू अयोध्या में मौजूद बुद्ध विहार में मरे।
आधुनिक काल में अयोध्या का भूगोल बदल गया है। इसीलिए मध्यकाल की इस कविता का अर्थ करने में कठिनाई हो रही है।
यह कविता तब की है, जब अयोध्या में जगन्नाथ स्थल अर्थात बौद्ध स्थल था। अयोध्या में पलटू जलाकर मारे गए तो वहीं मरे अर्थात अयोध्या में मरे। जगन्नाथ की गोद वहीं थी।
यह कहना गलत है कि वे उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में मरे। हजार किलोमीटर जाकर कोई नहीं मरेगा।
शायद इसीलिए धर्मवीर भारती ने अपनी पुस्तक सिद्ध साहित्य में लिखा है कि पुरी के जगन्नाथ बौद्ध देवता थे। धर्म- पूजा- विधान और गोविंद- विजय आदि पुस्तकों में इस बात का उल्लेख मिलता है।
कबीर की दो समाधियों का जिक्र मिलता है-- एक पुरी ( जगन्नाथ ) और दूसरी रतनपुर ( अवध ) में। इन दो समाधियों का उल्लेख अबुल फजल ने " आईन - ए - अकबरी " में किया है। टैवर्नियर ने इसकी पुष्टि की है।
कबीर की समाधि मगहर में हो, चाहे पुरी में, हर हाल में वह बौद्ध - स्थल था। जरूरी नहीं है कि वह जगन्नाथ की पुरी उड़ीसा में स्थित हो, वह अयोध्या में , मगहर में या जगन्नाथ की पुरी कई स्थलों पर हो सकती है।
आज यह गुत्थी सुलझ गई कि कबीर, नानक और पलटूदास जैसे क्रांतिमना की कथाएँ जगन्नाथ ( पुरी ) से क्यों जुड़ी हैं?
- प्रो डॉ Rajendra Prasad Singh
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