1. बुद्ध के समय दो विचारधाराएं प्रचलित थी। एक समण-संस्कृति और दूसरी ब्राह्मण संस्कृति।
2. बुद्ध 'समण-संस्कृति' के संवाहक थे। परिव्राजक और समण एक ही विचारधारा के अनुयायी थे।
3. समण-संस्कृति समता में विश्वास करती थी और ब्राह्मण-संस्कृति असमानता में। ब्राह्मण-संस्कृति ब्राह्मणों को श्रेष्ठ घोषित करती थी और, अभी भी करती है।
4 . उनके संघर्ष का कारण ब्राह्मणों के वेद थे जो उन्होंने वर्तमान की तरह ही साम-दाम-दंड -भेद से लोगों पर लाद दिए थे। यज्ञादि कर्मकांडों से उन्होंने समाज में पुरोहिताई के पेशे पर एकाधिकार कर लिया था।
5. समण वेद और यज्ञादि विरोधी थी।
6. बौद्धिक स्वतंत्रता के समर्थक बुद्ध के विचारों से प्रभावित होकर कई प्रतिष्ठित ब्राह्मण अपने संस्थानों को त्याग कर उनके शिष्य हो गए थे।
7. भिक्खु-संघ में ऐसे समण-ब्राह्मण कई थे, बल्कि अधिसंख्य थे और वे कई शीर्ष-पदों पर विराजमान थे। चाहे विनय सम्बन्धी नियम हो या तत्कालिक सामाजिक प्रश्न, उनके मत की सम्मति मायने रखती थी।
8. और यही कारण है कि बुद्ध को अपने उपदेशों में हम 'समण-ब्राह्मण' की सम्मति को उदरित करते हुए देखते हैं।
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सहायक ग्रन्थ-
1. बुद्ध और उनका युग: बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास: गोविन्दचन्द्र पाण्डेय
2. बौद्ध संस्कृति : राहुल सांस्कृत्यायन
३. भारतीय संस्कृति और अहिंसा: धर्मानद कोसंबी
बुद्ध से लगभग एक सदी पहले एक अनाम यगकर्ता झुण्ड बाहर से भारत आया था. वह खुद को कुछ नही कहते थे. यहाँ आकर उन्होंने वेद की रचना की इसलिए वैदिक कहलाये. यहाँ उन्होंने देखा कि समणब्राह्मण की बहुत इज्जत है जिसे शोर्ट में ब्राह्मण कहा जाता था. तब उनका पुरोहित वर्ग खुद को ब्राह्मण कहलवाने की जदोजहद करने लगे.
बुद्ध काल तक कोई वैदिक ब्राह्मण संस्कृति नहीं पनपी थी, कोई जाति कोई छुआछूत नहीं थी. खुद वैदिक-ब्राह्मण वैसे ही दोयम दर्जे के शहरी थे जैसे आज नेपाली हमारे घरों दफ्तरों में नोकर होते हैं या जैसे UP बिहार के भईये पंजाब में होते हैं या 50 साल पहले भारतीय विदेश में होते थे. वैदिक-ब्राह्मण समाज की ओरतें हमारे यहाँ दासी बन कर झाड़ू पोचा करती थीं और उन्हें पता ही नहीं होता था कि कौन भारतीय उन के बच्चे का बाप है. (अम्बठ सुत्त) आप तत्कालीन भारत में दो "संस्कृति" की बात कर रहे हो? बाबा साहिब की बात सुनिए कि भारत का असली इतिहास बौद्ध ग्रन्थों में मिलेगा.
जो बुद्ध ने कहा उसे मानिये: कोई बात तब तक सही मत मानो जब तक ...... राहुल संकृत्यायन की मैं कद्र करता हूँ पर मरते दम तक उस का पाण्डे उस में से नही मरा था. उसकी हर किताब "आर्य" को महान बताने में लिखी गई. भिक्कू रहने के बावजूद उसने बकवास की कि तान्त्रिकवाद बुद्धधर्म का भाग है. जब कि उसी के अनुवादित विनय पिटक का पहला नियम ही यही कहता है कि जो भिक्कू ऐसी बात भी करे उसे permanently संघ से निकल दिया जाये. सो महोदय हमे अपना इतिहास खुद तलाशना पड़ेगा.
आपने कौसाम्बी महोदय का ref दिया है जबकि वह An Intro To The Study of Indian History में वह लिखते हैं कि तकशिला में पढ़ कर चाण्डाल भी (समण) ब्राह्मण बन जाते थे. बुद्ध ने जब वैदिकब्राह्मण से समणब्राह्मण की स्वीकृति की बात कही तो उन्हीं समणब्राह्मण की बात कि थी जो समाज में विचरते थे. अगर भिक्कू-संघ में समणब्राह्मण जैसा कोई अलग ग्रुप था तो मेरे अल्प ज्ञान में नहीं है. अगर ऐसा कोई ग्रुप संघ में होता तो बुद्ध उसी समय एसुकारी के सामने उस ग्रुप को बुला लेते और वहीं फैसला करवा देते. और अपने अंतिम समय में पूरे संघ कि बजाये सिर्फ उस ग्रुप को विनय के नियम बदलने या निर्धारण करने का अधिकार दे कर जाते.
1. बुद्ध काल तक कोई वैदिक ब्राह्मण संस्कृति नहीं पनपी थी, कोई जाति कोई छुआछूत नहीं थी.
सर, क्षमा करें, उक्त कथन का ति-पिटकधीन प्रसंगों तथा बाबासाहब अम्बेडकर के तत्संबंधित चिंतन/विचारों से मेल नहीं बैठता। बौद्ध-ग्रंथों में, स्वयं बुद्ध को विविध स्थलों पर हम 'वैदिक ब्राह्मण संस्कृति' और वर्ण/जाति सम्बन्धी उनकी स्थापनाओं पर कड़ा प्रहार करते देखते हैं।
2. राहुल सांस्कृत्यायन हों या भदंत आनंद कौसल्यायन; निस्संदेह इन इतिहास-पुरुषों ने बौद्ध धर्म की अपरिमित सेवा की। किन्तु, काश कि वे अपने 'जनेऊ' के बाहर भी निकल पाते ? राहुल जी, चाहते तो पुनर्जन्म की थ्यौरी को नकार सकते थे(आनंद कौसल्यायन: वेद से मार्क्स तक) किन्तु शायद वे आरआरएस की तरह दूरगामी सोच वाले थे !
3. कोसंबी के कथन- तकशिला में पढ़ कर चाण्डाल भी (समण)ब्राह्मण बन जाते थे - से आपके पूर्व कथन- 'कमाल कि बात यह है कि चण्डाल भी सम्मणब्राह्मण बनते थे' से कोई साम्य प्रतीत नहीं होता।
4 'समण-ब्राह्मण' आपक रिसर्च वर्क है, आपके रिसर्च से अभिभूत हो मैंने बलात अपना कमेन्ट किया था। कमेन्ट से आशय अपना ज्ञान-वर्धन ही था.
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स्रोत-
बुद्धा एंड हिज धम्मा: तृतीय कांड: पांचवा भाग(ग)
वर्ण/जातिवाद के विरुद्ध बुद्ध-
आस्सलायन सुत्त (मज्झिम निकाय: 93)
वासेट्ठ सुत्त (सुत्त निपात)
एसुकारी सुतन्त (मज्झिम निकाय 2.5. 6)
अग्गी भारद्वाज सुत्त (सुत्त निपात)
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