Friday, August 21, 2020

‘पूर्व-जन्म के कर्म’ और डाॅ. अम्बेडकर

 ‘पूर्व-जन्म के कर्म’ और डाॅ. अम्बेडकर

6.‘‘भन्ते नागसेन, को पटिसन्दहति?’’ राजा आह।

‘‘भन्ते नागसेन, कौन पुनर्मिलन करता है?’’

‘‘नामरूपं महाराज, पटिसन्दहति।’’ थेरो आह।

‘‘महाराज! नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’

‘‘किं इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति?’’

‘‘क्या यही नाम और रूप पुनर्मिलन करता है?’’


‘‘न खो महाराज, इमं येव नामरूपं न पटिसन्दहति।’’

‘‘ नहीं महाराज, यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता।’’ 


‘‘इमिना पन, महाराज, नामरूपेन कम्मं करोति सोभनं वा पापकं वा, तेन कम्मेन अ××ा नामरूपं पटिसन्दहति।’’

‘‘ किन्तु महाराज, इस नाम और रूप से कर्म करता है; पुण्य या पाप,  उस कर्म से दूसरा नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’


‘‘यदि भन्ते, न इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति, ननु सो मुत्तो भविस्सति पापकेहि कम्मेहि।’’

‘‘यदि भन्ते! यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता, तो निश्चय ही वह पाप-कर्मोंसे मुक्त होगा ?’’

‘‘यदि न पटिसन्दहेय्य, मुत्तो भवेय्य पापकेहि कम्मेही। यस्मा च खो महाराज, पटिसन्दहति, तस्मा न मुत्तो पापकेहि कम्मेहि।’’

‘‘यदि पुनर्मिलन न हो, तो मुक्त हो पाप कर्मों से। जब तक पुनर्मिलन होता है, तब तक पाप-कर्मों से मुक्ति नहीं।’’


मिलिन्द-पन्ह के उक्त ‘कर्म’ के ब्राह्मणी-सिद्धांत को बाबासाहेब डाॅ. भीमराॅव आम्बेडकर ने अपने कालजयी ग्रंथ ‘बुद्धा एॅण्ड धम्मा’ में यह कहते हुए नकार दिया है कि ‘‘बुद्ध के कर्म का सिद्धांत का संबंध मात्रा ‘कर्म’ से था और वह भी वर्तमान जन्म के कर्म से।’’(देखें- दूसरा भागः चतुर्थ काण्ड, कर्मः 2/3, पृ. 269)


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