तुम्हारी आस्था
सुणाथ वासिट्ठा
सुनो वशिष्ठॉ,
दोणाचरिया
द्रोणाचार्यॉ
तुम्हे पि सुणाथ
तुम लोग भी सुनो !
मयं सब्बे
हम सब
जिगुच्छाम
घृणा करते हैं,
तुम्हाकं अतीतम्हा
तुम्हारे अतीत से
एवं खेळाम
और थूकते हैं
तुम्हाकं मानितासु
तुम्हारी आस्थाओं पर
कवितांश- मलखान सिंह
अनुवादक- अ. ला. ऊके
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