Tuesday, October 6, 2020

भिक्षुणी-संघ की स्थापना-

 भिक्षुणी-संघ की स्थापना  

भिक्षुणी-संघ की स्थापना का जो उल्लेख ‘चुल्लवग्ग’ में  आया है, वह इस प्रकार है- 

तब बुध्द कपिलवस्तु के निग्रोधाराम में रहते थे। महाप्रजापति गौतमी बुध्द के पास जाकर बोली- भदन्त! आप स्त्रियों को धम्म में प्रव्रजित होने की आज्ञा दीजिए। बुध्द ने प्रार्थना तीन बार अस्वीकार की। बुध्द इसके बाद वैशाली चले गए। महाप्रजापति गौतमी भी सिर मुंडवा कर कई शाक्य स्त्रियों के साथ बुध्द के पीछे-पीछे वैशाली चली गई। 

महाप्रजापति गौतमी को प्रव्रजित होने को उद्दत देखकर आनन्द ने बुध्द से प्रार्थना की कि वे स्त्रियों को प्रव्रजित होने की अनुमति दे। किन्तु बुध्द ने तीसरी बार भी आनन्द की प्रार्थना अस्वीकार कर दी। तब आनन्द ने बुध्द से पूछा कि क्या स्त्रियों को धम्म के मार्ग पर चलते हुए निर्वाण प्राप्त करना संभव नहीं है ?  बुध्द ने कहा कि हाॅं, संभव है। इस पर आनन्द ने कहा कि तब भगवान को महाप्रतापति गौतमी और अन्य स्त्रियों को प्रव्रजित होने की अनुमति दे देनी चाहिए। 

आनन्द द्वारा निवेदन करने पर कि स्त्रियों को प्रव्रजित और उपसम्पदा न देने का कोई ठोस आधार नहीं है, बुध्द ने अपनी स्वीकृति दी- यदि महाप्रजापति गौतमी इन आठ गुरु-धर्माें को स्वीकार करें तो उनकी पब्बज्जा और उपसम्पदा होगी। वे आठ नियम इस प्रकार हैं- 

1. भिक्षुणी संघ में चाहे जितने वर्षों तक रही हो, तो भी उसे चाहिए कि वह छोटे-बड़े सभी भिक्षुओं को सत्कार-पूर्वक अभिवादन करें। 

2. जिस गांव में भिक्षु न हो, वहां भिक्षुणी न रहे। 

3. प्रति आधेमास उपोसथ किस दिन है और धर्मोपदेश सुनने के लिए कब आना है, यह दो बातें भिक्षुणी भिक्षु-संघ से पूछ ले।  

4. वर्षावास कर चुकने पर भिखुणी को दोनों संघों में देखे, सुने, जाने तीनों स्थानों से प्रवारणा करनी चाहिए। 

5. भिक्षुणी को दोनों संघों में पक्ष-मानता करनी चाहिए। 

6. जिस श्रामणेरी ने 2 वर्ष तक अध्ययन किया हो, उसे दोनों संघ उपसम्पदा दें। 

7. किसी भी कारण से भिक्षुणी, भिक्षु को गाली-गलौज न दे। 

8. आज से भिक्षुणियों का भिक्षुओं को कुछ कहने का रास्ता बंद हुआ लेकिन, भिक्षुओं का भिक्षुणियों को कहने का रास्ता खुला है।

यद्यपि यह प्रसंग अंगुत्तरनिकाय’ में आया है  तथापि जान पड़ता है कि ये आठ गुरू-धर्म पीछे से बनाए गए हैं। क्योंकि विनय के नियम बनाने की बुध्द की जो पद्यति थी, उसका इन नियमों के साथ स्पष्ट विरोध है। उदाहरण देते हुए धर्मकीर्तिजी लिखते हैं- 

बुध्द तब वेरंजा गांव के पास रहते थे। उस समय वेरंजा गांव के आस-पास अकाल पड़ने से भिक्षुओं को बड़े कष्ट होने लगे। सारिपुत्त ने बुध्द से प्रार्थना की कि वे भिक्षुओं के लिए आचार विचार के नियम बना दे। बुध्द ने कहा- सारिपुत्त! तुम धेर्य रखो। तथागत जानते हैं कि नियम कब बनाना है। संघ में जब तक पापाचारों का प्रवेश नहीं हुआ है, तब तक तथागत उनके निवारण के नियम नहीं बनाते हैं। 

-उक्त प्रसंग से ज्ञात होता है कि जब कोई भिक्षु कुछ अपराध या गलती करता है और यह बात बुध्द के पास पहुंचती है और प्रचलित नियमों के तहत उसका समाधान नहीं है तब उसके निवारणार्थ बुध्द नए नियम बनाते हैं।

यह आश्चर्य की बात है कि भिक्षुणी-संघ मेे कोई दोष पैदा होने के पहले ही भिक्षुणियों पर ये आठ नियम लाद दिए गए? निःसंदेह भिक्षुणी-संघ पर उक्त आठ गुरू-धर्म लादना, बुध्द की स्त्री-विषयक सोच से मेल नहीं खाता। क्योंकि बुध्द काल में स्त्रियां सम्मानीय थी, जैसे कि मार के साथ सोमा भिक्षुणी संवाद, आम्रपाली प्रसंग आदि से स्पष्ट होता है। प्रतीत होता है कि सारी सत्ता को अपने हाथ में रखने के लिए भिक्षु-संघ ने पीछे से यह नियम बना कर उन्हें ‘विनय’ और ‘अंगुत्तरनिकाय’ में शामिल कर लिया(वही, भगवान् बुध्द; जीवन और दर्शन, पृ. 112)।

भारत में प्रथम, भिक्षुणी-संघ की स्थापना यदि बुध्द ने की होती तो कदाचित् उक्त आठ गुरू-धर्मों की कोई अहमियत होती। किन्तु जैसे कि ‘भद्दा कुंडलकेसा’ प्रसंग से प्रतीत होता है, जैन साध्वियों के संघ अस्तित्व में थे। स्पष्ट है, यह प्रसंग अशोक-काल बाद पालि ग्रंथों में जोड़ा गया जब यवनों और शकों के हमलों आदि से समाज में स्त्रियों का स्थान उत्तरोत्तर गिरता गया।


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