Sunday, March 31, 2019

The Scholar Sage

The Scholar Sage
Despite ill health, Dr Ambedkar was making the best of the situation, He would sit for hours together, writing his table. On a Saturday in March 1956 he asked Rattu to came early the next morning. It seems he was writing the preface and the introduction to the book which he had completed in Feb. 1956.
Rattu came as instructed to his master's residence. But he was surprised to see that Babasaheb was still in writing, seated in the same chair which he had occupied the previous night.  For nearly five minutes he stood by his chair, still his master remained deeply engrossed in his work, In order to attract his attention Rattu then displaced some books on his table. At this, Ambedkar raised his head and said- "You had not gone yet ?"
Sir! I spent the Saturday night at home. And now, it is Sunday morning and so I came to begins work early."
"I thought you were still here and not gone home. I did not know the day had dawned. I kept writing and did not move, " said the scholar sage(Source- Dhannanjay Keer: Dr Ambedkar, Life and Mission). @amritlalukey.blogspot.com.

Friday, March 29, 2019

निर्वाण

निर्वाण
भगवान बुद्ध ने निर्वाण का जो अर्थ किया है, वह उससे सर्वथा भिन्न है जो उनके पूर्वजों ने किया है। बुद्ध के निर्वाण का उद्देश्य हैं, प्राणी का सुख। संसार में रहते प्राणी का सुख।  इसका मूलाधार राग-द्वेष-मोहाग्नि को शांत और संयमित करना है।

सामान्य तौर पर समझा जाता है कि अभाव आदमी को दुक्खी बनाता है।  लेकिन हमेशा यही बात ठीक नहीं होती। आदमी बाहुल्य के बीच में रहता हुआ भी दुक्खी रहता है। दुक्ख लोभ का परिणाम है और लोभ दोनों को होता है। जिनके पास है, उन्हें भी और जिनके पास नहीं है, उन्हें भी। किन्तु यदि लोभ, द्वेष और मोह का मूलोच्छेद हो जाए तो आदमी न अपने दुक्खों से दुक्खी रहेगा और न दूसरों के दुक्खों से दुक्खी रहेगा।

बुद्ध ने कहा-  भिक्खुओ, निर्वाण इसी जीवन में प्राप्त है, भविष्य जीवन में नहीं।  अच्छा लगने वाला है, आकर्षक है।  बुद्धिमान सावक इसे हस्तगत कर सकता है।

निर्वाण के बारे में पूछे जाने पर सारिपुत्र ने  कहा-  भिक्खुओ, लोभ बुरा है, द्वेष बुरा है। इस लोभ और द्वेष से मुक्ति पाने का साधन अष्टांगिक मार्ग है। निर्वाण की और ले जाता है। निर्वाण,  आर्य अष्टांगिक मार्ग के अलावा कुछ नहीं है।

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से निर्वाण का अर्थ है, बुझ जाना। कुछ लोग निर्वाण का अर्थ मानव प्रवृतियों के बुझ जाने से लगाते हैं। यह बिलकुल ही गलत अर्थ है।  बुद्ध ने कई शब्दों को गढ़ा और कई परम्परागत शब्दों को नए तरीके से परिभाषित किया। दरअसल, लोग 'परिनिर्वाण' और 'निर्वाण' में भेद करना भूल जाते हैं।

उदान के अनुसार, जब शरीर बिखर जाता है, तमाम संज्ञाएँ रुक जाती हैं, तमाम वेदनाओं का नाश हो जाता है, जब सभी प्रकार की प्रक्रियाएं बंद हो जाती है और चेतना एकदम जाती रहती है, तब 'परिनिर्वाण' होता है। जबकि 'निर्वाण' का मतलब है, अपनी प्रवृतियों पर इतना काबू रखना कि आदमी धर्म के मार्ग पर चले सके।

एक बार राध स्थवीर तथागत के पास आए। आकर तथागत को अभिवादन कर एक ओर बैठ गए।  इस प्रकार बैठे हुए स्थवीर ने तथागत से निवेदन किया- "भगवान निर्वाण किसलिए ?"
"निर्वाण का मतलब है- राग- द्वेष से मुक्ति।"
"लेकिन भगवान ! निर्वाण का उद्देश्य क्या है ?"
"राध, श्रेष्ठ जीवन ही निर्वाण का उद्देश्य है। -तथागत ने राध स्थवीर को संतुष्ट कर संतृप्त दिया।
(डॉ बी आर अम्बेडकर: भ. बुद्ध और उनका धम्म : खंड-3 भाग -3 )।
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स्रोत- (1). राध संयुत्त (22) : संयुक्त निकाय 43-3-6 : महावग्ग 1-3  (2 ) अंगुत्तर निकाय 3-52  (3 ) धम्म दायाद सुत्तंत 1-1-3 : मज्झिम निकाय 

ध्यान और समाधि

ध्यान और समाधि

ध्यान का अर्थ है, किसी विषय के बारे में गहन चिंतन। पालथी मार ऑंखें बंद कर शून्य में निहारना अथवा शरीर के रग-रग  में बहते खून को अनुभव करना ध्यान नहीं है ! न ही आते-जाते हर एक श्वास को देखना ध्यान है.

सिद्धार्थ गोतम जब ध्यान कर रहे थे, तो वे ऑंखें बंद कर शून्य में निहार नहीं रहे थे और न ही शरीर की रग-रग  में बहते खून को अनुभव कर रहे थे। बल्कि, सांसारिक उन विविध समस्याओं पर विचार कर रहे थे जिनसे मानवता का प्रतिदिन सामना होता है, वे उन समस्याओं के समाधान के लिए जूझ रहे थे। यही उनका चिन्तन था, ध्यान था।

वे लगातार ध्यानस्थ बैठ कर चिंतन करते थे कि जीवन में दुक्ख क्यों है ? विविध ग्रन्थ और मतों में कहे गए सिद्धांत कितने सत्य हैं और कहाँ तक उपयोगी हैं ?  मरने के बाद आदमी का क्या होता है.... ? 

इन प्रश्नों के समाधान को ही समाधि कहते हैं।  समाधि और समाधान पर्यायवाची हैं। समाधि, आँख मूंद कर पालथी मर कर बैठना नहीं है बल्कि सचेत और सतर्क दिमाग से समस्या का समाधान ढूंढना है(डॉ सुरेन्द्र अज्ञात: एशिया का प्रकाश पृ 44)।  

कलेक्टर का फरमान

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गलत रिपोर्टिंग

गलत रिपोर्टिंग
बुद्ध जो उपदेश देते थे, उन्हें कुछ भिक्खु कंठस्थ कर लेते थे। लेखनकला अभी विकसित नहीं हुई थी। जिन भिक्खुओं का कंठस्थ करने का काम था, उन्हें 'भाणक' कहा जाता था। एक से अधिक बार ऐसा हुआ कि बुद्ध ने जो कुछ कहा, उसकी रिपोर्टिंग गलत हुई थी।
उदहारण के तौर पर ऐसे 5 अवसरों का उल्लेख किया जा सकता है। एक उल्लेख तो 'अलगद्दूपम सुत्त' में आया है।  दूसरा 'महाकम्म विभंग सुत्त' में, तीसरा 'कण्णत्थलक सुत्त' में , चौथा महा 'तण्हासंखय सुत्त' में और पांचवा 'जीवक सुत्त' में।

शायद इस तरह के और भी अनेक अवसर आए हो जब तथागत के वचनों की ठीक रिपोर्ट न हुई हो। ऐसे अवसरों  पर भिक्खु भी बुद्ध के पास आते और उनसे पूछते कि ऐसे समय उन्हें क्या करना चाहिए ? बुद्ध ने उन्हें उचित मार्ग-दर्शन करते थे।

किन्तु , डॉ अम्बेडकर में शब्दों में,  एक कसौटी भी है। बुद्ध के बारे में एक बार बड़े विश्वास के साथ कही जा सकती है, वे कुछ नहीं थे, यदि उनका कथन बुद्धिसंगत, तर्कसंगत नहीं होता था। दूसरी बात, उन्होंने कभी ऐसी बेकार की चर्चा में पड़ना नहीं चाहा जिसका आदमी के कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं। तीसरा, बुद्ध ने सभी विषयों को दो वर्गों में विभक्त किया- ऐसे विषय जिनके बारे में वे निश्चित थे और ऐसे विषय जिसके बारे में वे निश्चित नहीं थे। हमें संदेह और मतभेद की स्थिति में इन कसौटियों को ध्यान में रखना चाहिए(डॉ अम्बेडकर : बुद्ध और उनका धम्म : खंड 4: भाग- 2 )।    

बुद्धिज़्म की दो प्रमुख स्थापनाएं

बुद्धिज़्म की दो प्रमुख स्थापनाएं
बुद्ध के धम्म का आत्मा-परमात्मा से कोई लेना-देना नहीं है। मरने के बाद क्या होता है, उनके धम्म का इससे कुछ सरोकार नहीं है। उनके धम्म को कर्म-कांड के क्रिया-कलापों से कुछ लेना-देना नहीं है।

बुद्ध के धम्म का केंद्र-बिंदु है आदमी और समाज में रहते एक आदमी का दूसरे आदमी के प्रति कर्तव्य।

उनकी दूसरी स्थापना है कि जीवन में दुक्ख है और धम्म का उद्देश्य इस दुक्ख को दूर करना है। दुक्ख के अस्तित्व की स्वीकृति और दुक्ख दूर करने का उपाय- यही धम्म की आधारशिला है।

यदि आदमी पवित्रता के पथ पर चले,  शील पर चले तो दुक्ख का एकान्तिक निरोध हो सकता है(डॉ बी. आर. अम्बेडकर :धम्मचक्क पवत्तन: बुद्ध और उनका धम्म : खंड 2 भाग 2 )।

Thursday, March 28, 2019

विभंग सुत्त : अरिय अट्ठङगिक मग्गो

विभंग सुत्त: अरिय अट्ठङगिक मग्गो
"अरियं वो भिक्खवे,  अट्ठङगिक मग्गं देसेस्सामि विभजिस्सामि।  तं सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ, भासिस्सामि"ति। भिक्खुओं, आर्य अष्टांगिक मार्ग का उपदेश करूँगा, विभाजन करूँगा।  उसे सुनो।
"एवं भंते"ति खो ते भिक्खु भगवतो पच्चस्सोसुं।
हाँ भंते, कह कर भिक्खुओं ने भगवान को प्रतित्युत्तर दिया।
भगवा एतद वोच- "कतमो च भिक्खवे,  अट्ठङगिक मग्गो ?  सेय्यथिदं - सम्मा दिट्ठि---पे---सम्मा समाधि।
भिक्खुओं, आर्य अशंगिक मार्ग क्या है ? यही जो सम्यक दृष्टि ------सम्यक समाधि।
 कतमा च भिक्खवे सम्मा दिट्ठि ? यं खो भिक्खवे, दुक्खे जाणं, दुक्ख समुदये जाणं, दुक्ख निरोधे जाणं, दुक्ख निरोध गामिनिया पटिपदाय जाणं- अयं वुच्चति भिक्खवे, सम्मा दिट्ठि।
भिक्खुओ, सम्यक दृष्टि क्या है ?  भिक्खुओ, दुक्ख का ज्ञान, दुक्ख के समुदाय का ज्ञान, दुक्ख के निरोध का ज्ञान , दुक्ख के निरोध-गामी मार्ग का ज्ञान, यही सम्यक दृष्टि है।
कतमो च भिक्खवे, सम्मा संकप्पो ? यो खो भिक्खवे, नेक्खम्म संकप्पो, अव्यापाद संकप्पो, अविहिंसा संकप्पो- अयं वुच्चति भिक्खवे सम्मा संकप्पो।
भिक्खुओ, सम्यक संकल्प क्या है ? भिक्खुओ, जो त्याग का संकल्प है, वैर से अलग रहने का संकल्प है,  हिंसा से अलग रहने का संकल्प है, यही सम्यक संकल्प है।
कतमा च भिक्खवे सम्मा वाचा ?  या खो भिक्खवे, मुसावादा वेरमणि, पिसुणाय वाचाय वेरमणि, फरुसाय वाचाय वेरमणि, सम्फप्पलापा वेरमणि,  अयं वुच्चति भिक्खवे सम्मा वाचा.


विभङ्गसुत्तं
. सावत्थिनिदानं। ‘‘अरियं वो, भिक्खवे, अट्ठङ्गिकं मग्गं देसेस्सामि विभजिस्सामि। तं सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ; भासिस्सामी’’ति। ‘‘एवं, भन्ते’’ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्‍चस्सोसुं। भगवा एतदवोच
‘‘कतमो च, भिक्खवे, अरियो अट्ठङ्गिको मग्गो? सेय्यथिदं सम्मादिट्ठिपे॰सम्मासमाधि।
‘‘कतमा च, भिक्खवे, सम्मादिट्ठि? यं खो, भिक्खवे, दुक्खे ञाणं, दुक्खसमुदये ञाणं , दुक्खनिरोधे ञाणं, दुक्खनिरोधगामिनिया पटिपदाय ञाणं अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्मादिट्ठि।
‘‘कतमो च, भिक्खवे, सम्मासङ्कप्पो? यो खो, भिक्खवे, नेक्खम्मसङ्कप्पो , अब्यापादसङ्कप्पो, अविहिंसासङ्कप्पो अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्मासङ्कप्पो।
‘‘कतमा च, भिक्खवे, सम्मावाचा? या खो, भिक्खवे, मुसावादा वेरमणी, पिसुणाय वाचाय वेरमणी, फरुसाय वाचाय वेरमणी, सम्फप्पलापा वेरमणी अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्मावाचा।
‘‘कतमो च, भिक्खवे, सम्माकम्मन्तो? या खो, भिक्खवे, पाणातिपाता वेरमणी, अदिन्‍नादाना वेरमणी, अब्रह्मचरिया वेरमणी अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्माकम्मन्तो।
‘‘कतमो च, भिक्खवे, सम्माआजीवो? इध, भिक्खवे, अरियसावको मिच्छा आजीवं पहाय सम्माआजीवेन जीवितं कप्पेति अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्माआजीवो।
‘‘कतमो च, भिक्खवे, सम्मावायामो? इध, भिक्खवे, भिक्खु अनुप्पन्‍नानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं अनुप्पादाय छन्दं जनेति वायमति वीरियं आरभति चित्तं पग्गण्हाति पदहति, उप्पन्‍नानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय छन्दं जनेतिपे॰अनुप्पन्‍नानं कुसलानं धम्मानं उप्पादाय छन्दं जनेतिपे॰उप्पन्‍नानं कुसलानं धम्मानं ठितिया असम्मोसाय भिय्योभावाय वेपुल्‍लाय भावनाय पारिपूरिया छन्दं जनेति वायमति वीरियं आरभति चित्तं पग्गण्हाति पदहति अयंवुच्‍चति, भिक्खवे, सम्मावायामो।
‘‘कतमा च, भिक्खवे, सम्मासति? इध, भिक्खवे, भिक्खु काये कायानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; वेदनासु वेदनानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; चित्ते चित्तानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; धम्मेसु धम्मानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्मासति।

‘‘कतमो , भिक्खवे, सम्मासमाधि? इध, भिक्खवे, भिक्खु विविच्‍चेव कामेहि विविच्‍च अकुसलेहि धम्मेहि सवितक्‍कं सविचारं विवेकजं पीतिसुखं पठमं झानं उपसम्पज्‍ज विहरति। वितक्‍कविचारानं वूपसमा अज्झत्तं सम्पसादनं चेतसो एकोदिभावं अवितक्‍कं अविचारं समाधिजं पीतिसुखं दुतियं झानं उपसम्पज्‍ज विहरति। पीतिया च विरागा उपेक्खको च विहरति सतो च सम्पजानो, सुखञ्‍च कायेन पटिसंवेदेति, यं तं अरिया आचिक्खन्ति – ‘उपेक्खको सतिमा सुखविहारीति ततियं झानं उपसम्पज्‍ज विहरति। सुखस्स च पहाना दुक्खस्स च पहाना पुब्बेव सोमनस्सदोमनस्सानं अत्थङ्गमा अदुक्खमसुखं उपेक्खासतिपारिसुद्धिं चतुत्थं झानं उपसम्पज्‍ज विहरति अयं वुच्‍चति, भिक्खवे, सम्मासमाधी’’ति। अट्ठमं।

निर्वाण अर्थात अट्ठन्गिक मार्ग(नंदिय सुत्त )

नंदियो परिवाजको भगवन्त अपुच्छि- "कति नु खो भो गोतमो, धम्मा भाविता बहुलीकता निब्बानङगमा होन्ति ?
 नंदिय परिवाजक ने भगवान से पूछा - "हे गोतम, कितने धर्म हैं जिनके अभ्यास से निर्वाण की प्राप्ति होती है ?
अट्ठिमे खो नंदिय, धम्मा भाविता बहुलीकता निब्बानङगमा होन्ति। कतमे अट्ठ ? सेय्यथिदं- सम्मा दिट्ठि ----पे--सम्मा समाधि 'ति भगवा एतद वोच्च .
नंदिय, वे आठ धर्म हैं जिनके अभ्यास से निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है। जो यह सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प,   सम्यक वाचा,  सम्यक कर्मान्त,  सम्यक आजीव, सम्यक  व्यायाम,  सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि।
भिक्खुओ! सम्यक दृष्टि क्या है ? दुक्ख का ज्ञान, दुक्ख के समुदय का ज्ञान, दुक्ख निरोध का ज्ञान और दुक्ख निरोध-गामी मार्ग का ज्ञान ही सम्यक दृष्टि है।
भिक्खुओ! सम्यक संकल्प क्या है ?  जो त्याग का संकल्प है, वैर और हिंसा से अलग रहने का संकल्प है, यही सम्यक संकल्प है।
भिक्खुओ! सम्यक वाचा क्या है ? झूठ, चुगली, कटु भाषण और गप्प हांकने से वीरत रहन ही सम्यक वाचा है।
भिक्खुओ ! सम्यक कर्मान्त क्या है ? जीव हिंसा, चोरी और अब्रह्मचर्य से विरत रहना ही सम्यक कर्मान्त है।
भिक्खुओ ! सम्यक आजीव क्या है ? मिथ्या आजीव को छोड़ सम्यक आजीव से अपनी जीविका चलाना ही सम्यक आजीव है।
भिक्खुओ! सम्यक व्यायाम क्या है ? अनुत्पन्न अकुशल कर्मों के अनुत्पाद के लिए, उत्पन्न अकुशल कर्मों के प्रहाण के लिए, उत्पन्न कुशल धर्मों की वृद्धि के लिए व्यायाम करना ही सम्यक व्यायाम है।
भिक्खुओ! सम्यक स्मृति क्या है ?  काया, वेदना और चित के प्रति स्मृतिमान(सजग) होना ही सम्यक स्मृति है।
भिक्खुओ! सम्यक समाधि क्या है ?  सतत चिंतन शील रहना ही सम्यक समाधि है।
अभिक्ककन्तंं भो गोतम, अभिक्ककन्तंं। उपासकं मं भवं गोतमो धारेतु अज्ज्तग्गे पाणुपेतं सरणं गतं'ति (नंदिय सुत्त :संयुक्त निकाय :43-1-10 )।

ब्रह्मचरियं(भिक्खु सुत्त : SN 43.1.6).

ब्रह्मचरियं
"ब्रह्मचरियं, ब्रह्मचरियं 'ति वुच्चति. कतम नु खो भंते, ब्रह्मचरियं ?"
"भंते! लोग ब्रह्मचर्य, ब्रह्मचर्य कहते हैं। भंते, ये ब्रह्मचर्य क्या है ?"
"अयमेव खो भिक्खु, अरियो अट्ठङगिको मग्गो ब्रह्मचरियं।"
"भिक्खु! यह आर्य-अष्टांगिक मार्ग ही ब्रह्मचर्य है।"
(संयुक्त निकाय : 43-1-6 : भिक्खु सुत्त )।   

रमणिका गुप्ता: संजीव चन्दन

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कार्य-कारण का सिद्धांत

कार्य-कारण का सिद्धांत
कार्य-कारण के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक कार्य का कारण होता है।
ईश्वरवादी इसी सिद्धांत का सहारा लेकर कहते हैं कि संसार का कोई कारण होना चाहिए और इस तरह वे ईश्वर की सिद्ध करते हैं।

1. बुद्ध का अनित्यवाद अर्थात प्रतीत्य समुत्पाद (दूसरा ही उत्पन्न होता है, दूसरा ही नष्ट होता है) के अनुसार किसी एक मौलिक तत्व का बाहरी अपरिवर्त्तन मात्र नहीं, बल्कि एक का बिलकुल नाश और दूसरे का बिलकुल नया उत्पाद है।  बुद्ध कार्य-कारण की निरंतर या अविच्छिन्न सन्तति को नहीं मानते(दर्शन दिग्दर्शन  पृ 514 )।

2. बुद्ध ने कार्य-कारण के महान नियम को अपनी शाखाओं-प्रशाखाओं सहित प्रतीत्य-समुत्पाद के रूप में मान्य ठहराया(डॉ बी आर अम्बेडकर : बुद्ध और उनका धम्म: खंड-1:भाग-7-2)।

2- किसी भी कार्य के दो  कारण दो प्रकार के होते हैं- उपादान कारण और निमित्त कारण।  मिटटी, पानी आदि घड़े के उपादान कारण और निमित्त कारण कुम्हार हैं(मज्झिम निकाय:भूमिका)।

ति-पिटक में बुद्ध जीवनी

ति-पिटक ग्रंथों में बुद्ध जीवनी
म. नि. 2-4-5  बोधिराज कुमार सुत्त :  बुद्ध जीवनी गृह-त्याग से बुद्धत्व प्राप्ति तक। चुनार (सुंसुमारगिरी ) में वत्सराज उदय के पुत्र बोधिराज कुमार को बुद्ध के द्वारा अपने बारे में बताया जाना।

म. नि. 1-3-6  अरियपरियेसन सुत्त

विनय पिटक : महावग्ग, चुल वग्ग

Wednesday, March 27, 2019

निर्वाण

मैडिटेशन/तप/ विपस्सना से निर्वाण का कोई सम्बन्ध नहीं है. निर्वाण का अर्थ 'मोक्ष' तो कतई नहीं है । 
निर्वाण का अर्थ है- राग-द्वेषाग्नि का शांत/संयमित हो जाना. 
सन्दर्भ (1). महा वग्ग 1:3 संयुक्त निकाय 43-3-6 
(2 ) डॉ बी आर अम्बेडकर :बुद्ध और उनका धम्म:खंड- 3 : भाग- 3


इस प्रकार भिक्खुओ! निर्वाण इसी जीवन में प्राप्त है , भविष्य जीवन में नहीं . अच्छा लगाने वाला है, आकर्षक है और बुद्धिमान सावक इस प्राप्त कर सकता है(अ. नि. 3:52)। चतुक्क निपात तृतीय वग्ग 


संयुक्त निकाय : 43-1 8  : विभंग सुत्त : आर्य अष्टांगिक मार्ग(पृ 622)। 
                    : 43-1-9 : सुक सुत्त : ठीक धारणा ही निर्वाण प्राप्ति।
                    :43-1-10 : नंदिय सुत्त : निर्वाण प्राप्ति के लिए आठ धर्म (अष्टांगिक मार्ग)

सामाजिक जड़ता के विरुद्ध बुद्ध; संदर्भित सुत्त/ग्रन्थ


वर्ण-व्यवस्था का खंडन
म. नि. 2-4- 10  कण्णत्थलक : वर्ण-व्यवस्था का खंडन।  देव, ब्रह्मा
म. नि. 2-5-3 :  असलायन सुत्त : वर्ण-व्यवस्था का खंडन
म. नि. 2-5-8  वासेट्ठ सुत्त

म. नि. 2-3-1  तेविज्ज वच्छगोत सुत्त : बुद्ध स्वयं को सर्वज्ञ नहीं मानते।

संयुक्त निकाय 55-2-1  धम्म चक्क पवत्तन सुत्त
बुद्धचर्यावतार


दी. नि. 2-9  महासतिपट्ठान सुत्त : पाँचों उपादान स्कंध दुक्ख हैं।
म. नि. 1-2-3  महा दुक्खक्खन्ध सुत्त :  दुक्ख का कारण तृष्णा है।
संयुक्त निकाय 14 : दुक्ख का कारण तृष्णा है।

अंगुत्तर निकाय 5  अट्ठङगिक मार्ग।
म. नि. 1-5-4  चुलवेदल्ल सुत्त : चित्त की एकाग्रता को समाधि कहते हैं। अट्ठङगिक मार्ग।  उपादान स्कंध।
म. नि. 1-3-9  महा सारोपम सुत्त : भिक्खु जीवन का वास्तविक उद्देश्य।
संयुक्त निकाय 4-1-4  : अपनी शिक्षा का मुख्य प्रयोजन बुद्ध ने बताया।
दी. नि. 2-3  महा परिनिब्बान सुत्त : लिच्छवियों के प्रशंसा में 7 बातें।


अनित्य, दुक्ख, अनात्म।
अंगुत्तर निकाय 3-1-34 : विश्व की सारी वस्तुएं  स्कंध, आयतन, धातु तीनों में से किसी एक प्रक्रिया में बांटी जा सकती हैं , इन्हें ही नाम और रूप में विभक्त किया जाता है , जिनमें नाम विज्ञानं का पर्याय वाची है। यह सभी अनित्य हैं।

म. नि. 1-5-3 महा वेदल्ल सुत्त :वेदना, संज्ञा, संखार-  रूप के संपर्क से विज्ञानं(मन) की भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं। संज्ञा, वेदना, विज्ञानं यह तीनों धर्म (पदार्थ) मिले-जुले हैं, अलग-अलग नहीं। अलग-अलग करके इनका भेद नहीं बतलाया जा सकता।

प्रतीत्य समुत्पाद
सारे धर्म प्रतीत्य-समुत्पन्न हैं। ईश्वरवाद का खंडन। यह निरंतर प्रवाह या घटना है, जिसमें कुछ भी नित्य नहीं है। यहाँ (विश्व में) कोई चीज नित्य (स्थिर) नहीं- न नाम (विज्ञान) ही न रूप(भौतिक तत्व) ही(महावग्ग: विनय पिटक )।
दी. नि. 2-2   महानिदान सुत्त: पञ्च स्कंध प्रतीत्य समुत्पन्न व्यय(क्षय) धर्मी हैं।
म. नि. 1-3-8  महाहत्थिपदोपम सुत्त : प्रतीत्य समुत्पाद। उपादान स्कंधों से मुक्ति।

आत्मवाद का खंडन/प्रतीत्य समुत्पाद-
म. नि. 1-4-8   महातण्हासंखय सुत्तंत : अनात्मवाद। प्रतीत्य समुत्पाद। भिक्खु साति केवट्ठपुत्त के विञ्ञाण (चित्त) के आवागमन की बात करने पर बुद्ध की फटकार। धर्म बेड़े की भांति पार उतरने के लिए है, पकड़ रखने के लिए नहीं। जीवन प्रवाह, गर्भ, बाल्य, यौवन, सन्यास, शील-समाधि।
म. नि. 1-1-2 सब्बा सव सुत्त : चित्त-मल का शमन।
म. नि. 1-4-5  चुलसच्चक सुत्त : आत्मवाद का खंडन, अनात्मवाद का मंडन


सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, आत्मा, ईश्वर का खंडन
दी. नि. 3-1   पथिक सुत्त :

ब्रह्मा/ईश्वर का परिहास
दी. नि. 1-11   केवट्ठसुत्त :
दी. नि. 1-13  तेविज्ज सुत्त : ब्राह्मण अंधे के पीछे चलने वाले अंधों की भांति बिना जाने देखे
                                           ईश्वर/ब्रह्मा और उसके लोक पर विश्वास रखते हैं।
                                           बुद्ध ने वेदों को जल विहीन कान्तार कहा, पथ विहीन जंगल कहा, वास्तव
                                           में विनाश का पथ। कोई भी आदमी, जिसमें कुछ बौद्धिक तथा नैतिक प्यास है
                                           वह वेदों के पास जा कर अपनी प्यास नहीं बुझा सकता)।
म. नि. 1-5-9  ब्रह्म निमन्तनिक सुत्त :


बुद्ध अपने को सर्वज्ञ नहीं मानते-
म. नि. 2-3-1:  तेविज्ज वच्छ गोत्त सुत्त
म. नि. 2-4-10 :


अ-भौतिक वाद का खंडन
दी. नि. 1-12   लोहिच्च सुत्त: संसार में ऐसा कोई समण या ब्राह्मण नहीं है जो अच्छे धर्म को जान कर दूसरे को समझाये। भला दूसरा, दूसरे के लिए क्या करेगा ? जैसे कि एक पुराने बंधन को काट कर एक दूसरे नए बंधन को डालना। बुद्ध ने शील-समाधि-प्रज्ञा का उपदेश देकर इसे जीवन में आवश्यक बताया।

भौतिकवाद का खंडन-
अ. नि. 3

10 अव्याकृत(अव्याख्येय) बातें-
म. नि. 2-2-3  चुल मालुक्य सुत्त :


अनित्य-अनात्म-दुक्ख
उपनिषदों और ब्राह्मण के तत्व ज्ञान 'सत-चित-आनंद'  के उलट बुद्ध ने असत(अनित्य, प्रतीत्य-समुत्पन्न), अचित (अनात्म) और अन-आनंद (दुक्ख) का उपदेश दिया(दर्शन-दिग्दर्शन: पृ 530)।

विचार-स्वातंत्र्य
म. नि. 1-3-2  अलगद्दूपम सुत्त : भिक्खुओं! मैं बेड़े(कुल्लु) की भांति।  सांप पकड़ने की सावधानी उपदेश ग्रहण करने में भी अपेक्षित है। अनात्मवाद का खंडन।


 अंगुत्तर निकाय
 कालाम सुत्त  (तिक निपात ) - बुद्धि की स्वतंत्रता की देशना।
सिंहनाद सुत्त (चतुक्क निपात )  पेज 77
वस्सकार सुत्त (चतुक्क निपात )  पेज 79
उदायि सुत्त (चतुक्क निपात ) पेज  85 :यज्ञों के नाम पर की जाने वाली हिंसा का विरोध।

अट्ठङग उपोसथ-सीलं

आओ पालि सीखें-
अट्ठङग उपोसथ-सीलं
1. पाणातिपाता वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि ।। 1।।
मैं पाणा-इति-पाता(प्राणी-हिंसा) से विरति(विरत रहने) की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
2. अदिन्नादाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 2।।
मैं जो दिया गया न हो(अदिन्न) को न लेने (अ-दाना) की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
3. असाधुचरिया* वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 3।।
मैं असाधु चरिया(असाधु आचरण) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ।
4. मुसावादा वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 4।।
मैं झूठ(मूसा) वचन(वादा) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
5. सुरा मेरय मज्जप्पमादट्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 5।।
मैं सुरा, मेरय, मज्ज(मद्य) और प्रमाद उत्पन्न होने के स्थान (प्रमाद-ट्ठाना) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
6. विकाल-भोजना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 6।।
मैं विकाल(दोपहर 12 बजे से के बाद) भोजन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
7. नच्च-गीत वादित-विसूकदस्सन माला-गंध-विलेपन-धारण-मण्डन-विभूसनट्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 7।।
नाच-गाना, बजाना, विसूकदस्सन(अशोभनीय खेल-तमाशे देखना), माला, सुगंध, विलेपन, मण्डन-विभूसनट्ठाना(सिंगार आदि स्थान) से विरत रहने की मैं शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ।
8. उच्चासयन-महासयना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 8।।
मैं ऊंचे, महासयना(विलासिता-पूर्ण सयन) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ।
भन्ते- तिसरणेन सह अट्ठङग समन्नागतं उपोसथ-सीलं धम्मं साधुकं सुरक्खितं कत्वा अप्पमादेन सम्पादेहि।
ति-सरण के साथ (ति-सरणेन सह) आठ अंगों से(अट्ठङग) युक्त (समन्नागतं) उपोसथ सील-धम्म को साधुकं(भलि-भांति) सुरक्खितं कत्वा(सुरक्षित कर) अ-पमादेन(अ-प्रमाद के साथ) सम्पादेहि(सम्पादन करो)।
उपासक/उपासिका- आम, भंते!
..................................
*. मूलपाट- अब्रह्मचरिया। देवी, देवता, स्वर्ग, नरक, ईस्वर, ब्रह्मा, श्री, ओंकार आदि अबौद्ध संस्कृति के शब्द हैं। यथा प्रयास इनका स्थानापन्न आवश्यक है।
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com

Monday, March 25, 2019

पालि और संस्कृत

पालि और संस्कृत
पालि लोक भाषा है, गाँव-देहातों की भाषा है. संस्कृत, वैदिक भाषा से उत्पन्न परवर्ती परिष्कृत और अभि-संस्कृत भाषा है। संस्कृत, वैदिक और लोक भाषाओं को संस्कृत कर निर्मित की गई है. दूसरे शब्दों में, संस्कृत क्लिष्ट सूत्र-आबद्ध  भाषा है, जबकि पालि पाकृत है, जन-भाषा है.
पालि, अशोक काल में यह राष्ट्र भाषा थी और यही कारण है की अशोक के तमाम शिलालेख, स्तम्भ और भित्तियों पर पालि भाषा में अभिलेख हैं. एक शासक अपना सन्देश उसी भाषा  में प्रसारित करता है, जिसे जन-साधारण बोलते हैं, समझते हैं. ऐसे जन-भाषा  कैसे इस धरा से लुप्त हो गई, यह शोध का विषय है.
अशोक  के स्तम्भ में ही अंकित है कि यह 'धम्मलिपि' में लिखा गया है. किन्तु स्कूल-कालेजों में इसे  'ब्राम्हीलिपि'  अर्थात 'ब्रह्मा के मुख से निस्रत लिपि' के नाम से पढाया जाता है ? 
कुछ भाषाविदों के अनुसार अशोक के 'धम्मलिपि' का आशय 'धम्म्लेख' है न की लिपि। जबकि उसी अभिलेख में आगे 'लेखापिता' शब्द आता है।  स्पष्ट है, 'लिपि' ('लिप' धातु से व्युत्पन्न ) और 'लेख' ('लिख' धातु व्युत्पन्न) से तत्कालीन समाज परिचित था. सवाल है, ये कलम के ठेकेदार क्यों नहीं समझना चाहते ?

शहीद भगत सिंह बनाम शहीद ऊधम सिंह


शहीद भगत सिंह वेर्सुस/बनाम शहीद ऊधम सिंह >
 शहीदी का पैमाना >>भेदभावी अफ़साना !!!!!!
शहीद भगत सिंह जन्म 1907 , बंगा , पंजाब भारत ?
शहीद ऊधम सिंह जन्म 1899 , सुनाम , पंजाब भारत ??
शहीद भगत सिंह ने 'पुलिस ऑफिसर 'सौंडर्स' को मारा ?
शहीद ऊधम सिंह "लेफ्टिनेंट गवर्नर "माइकल ओ डायर" को मारा ??
शहीद भगत सिंह ने साथी की सहायता से मारा ?
शहीद ऊधम सिंह ने अकेले मारा ??
शहीद भगत सिंह ने सौंडर्स को लाहौर, भारत में मारा ?
शहीद ऊधम सिंह ने माइकल ओ डायर को लंदन, इंग्लैंड में मारा ??
शहीद भगत सिंह ने जेम्स स्कॉट के भुलावे में 'सौंडर्स' को मारा ?
शहीद ऊधम सिंह ने बिना किसी भुलावे के "माइकल ओ डायर" को मारा ??
शहीद भगत सिंह ने एक व्यक्ति लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज का बदला लिया, जो साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे ?
शहीद ऊधम सिंह ने हज़ारो व्यक्तियों, महिलाओ, बच्चे , बूढ़े पर गोलीचार्ज का बदला लिया, जो सभी एक सभा के लिए एकत्रित हुए थे ??
शहीद भगत सिंह जेम्स स्कॉट और सौंडर्स को सिख जथेदारो ने कोई इनाम नहीं दिया ?
शहीद ऊधम सिंह जलिआंवाला बाग़ हत्याकाण्ड के बाद माइकल ओ डायर को सिख जथेदारो ने सरोपा भेंट किया ??
शहीद भगत सिंह का आदर्श लाजपत राय एक राजनैतिक दल (कांग्रेस) सदस्य था ?
शहीद ऊधम सिंह का आदर्श हज़ारो भारतीय, महिलाओ, बच्चे , बूढ़े किसी राजनैतिक दल के सदस्य नहीं थे ??
शहीद भगत सिंह का आदर्श लाजपत राय लाठीचार्ज के लगभग 19 दिन बाद ह्रदय गति रुकने से मरा ?
शहीद ऊधम सिंह के आदर्श हज़ारो भारतीय, महिलाओ, बच्चे , बूढ़े ऑन द स्पॉट/तुरन्त गोलीकांड में मरे ??
शहीद भगत सिंह ने 1928 में सौंडर्स को आखिरी सात गोली मरी, जबकि पहली गोली राजगुरु ने मारी ?
शहीद ऊधम सिंह ने 1940 में माइकल ओ डायर को दो गोली दिल और फेफड़े पर मारी ,जो तुरंत मर गया ??
शहीद भगत सिंह गोली मार कर गिरफ़्तारी से बच कर भाग गया ?
शहीद ऊधम सिंह ने हंस कर गिरफ़्तारी दी ??
शहीद भगत सिंह ने 1929 में एक साथी के साथ संसद में तात्कालिक बम/इम्प्रोवाइज्ड बॉम्ब फेंका, जिस में कई भारतीय भी बैठे थे ?
शहीद ऊधम सिंह ने 1940 में केवल माइकल ओ डायर (जलिआंवाला अभियुक्त) को गोली मारी, अन्य किसी को ठेस नहीं पहुंचाई ??
शहीद भगत सिंह के माँ-पिता-अभिभावक जीवित थे ?
शहीद ऊधम सिंह के माँ-पिता-अभिभावक जीवित नहीं थे, अनाथ था ??
शहीद भगत सिंह ने गिरफ़्तारी से भाग कर लाजपत राय लाठीचार्ज के बदले के पोस्टर लगाए/पब्लिसिटी करि ?
शहीद ऊधम सिंह ने जलिआंवाला बाग गोलीकांड के बदले में कोई पोस्टर नहीं लगाया/ कोई पब्लिसिटी नहीं करि ??
शहीद भगत सिंह की पब्लिसिटी आज भी भारत सरकार और अन्य संगठन कर रहे हैं, सरकार अभिभावक हैं ?
शहीद ऊधम सिंह की पब्लिसिटी न ही भारत सरकार और न ही अन्य संगठन कर रहे हैं, सरकार ने भी अनाथ बना/मान लिया ??
शहीद भगत सिंह, आज पंजाब में शहीद भगत सिंह नगर हैं ?
शहीद ऊधम सिंह, आज पंजाब में शहीद ऊधम सिंह नगर नहीं हैं ??
शहीद भगत सिंह के शब्द My life has been dedicated to the noblest cause, that of the freedom of the country. Therefore, there is no rest or worldly desire that can lure me now ?.
शहीद ऊधम सिंह के शब्द I did it because I had a grudge against him. He deserved it. I don't belong to society or anything else. I don't care. I don't mind dying. What is the use of waiting until you get old ??
शहीद भगत सिंह ने अपने नाम में कोई फेरबदल नहीं किया, बल्कि हुलिया में फेरबदल किया बाल कटवाए, हैट लगाया ?
शहीद ऊधम सिंह गिरफ़्तारी पर अपना नाम राम मोहमद सिंह आज़ाद बताया (धर्म निरपेक्षता को लंदन में बताया ) ??
शहीद भगत सिंह ने जेल में हंगर स्ट्राइक करि ?
शहीद ऊधम सिंह ने जेल में हंगर स्ट्राइक नहीं करि ??
शहीद भगत सिंह को जेल में मिलने, नेहरू और कई नेता गए ?
शहीद ऊधम सिंह ने जेल में मिलने, कोई भारतीय नेता नहीं गए ??
शहीद भगत सिंह के लिए मोहन दस करमचंद गाँधी In his notes dated 19 March 1931, the Viceroy recorded:
While returning Gandhiji asked me if he could talk about the case of Bhagat Singh because newspapers had come out with the news of his slated hanging on March 24th. It would be a very unfortunate day because on that day the new president of the Congress had to reach Karachi and there would be a lot of hot discussion. I explained to him that I had given a very careful thought to it but I did not find any basis to convince myself to commute the sentence. It appeared he found my reasoning weighty] ?
शहीद ऊधम सिंह के लिए मोहन दस करमचंद गाँधी Although many Indians regarded Singh's actions as a response to some brutal aspects of British colonial rule, officially, his actions were deplored and condemned in India, with Mahatma Gandhi referring to Singh's actions as "an act of insanity"] stating: "The outrage has caused me deep pain. I regard it as an act of insanity ... I hope this will not be allowed to affect political judgement.??
 The Punjab unit/section of Congress in the Punjab Assembly led by Dewan Chaman Lal refused to vote for the Premier's motion to condemn the assassination. In April 1940, at the Annual Session of the All India Congress Committee held in commemoration of 21st anniversary of the Jallianwala Bagh Massacre, However the youth wing of the Indian National Congress Party displayed revolutionary slogans in support of Udham Singh

In March 1940, Indian National Congress leader Jawahar Lal Nehru, condemned the action of Singh as senseless,

 कांग्रेस 15 अगस्त 1947 से शहीद भगत सिंह के गीत गाने लगी थी ? कांग्रेस ने 1974 तक भारतीयों से शहीद ऊधम सिंह को और उनके योगदान को छिपाए रखा, कभी रेडियो, टीवी अखबारों में नहीं बताया ?? 1974 में शहीद ऊधम सिंह की अस्थिया ब्रिटिश सरकार ने भारत को सौंपी तो लोगो को पता चला ???