Sunday, March 3, 2019

‘पालि’ अर्थात बुद्धवचन

क्या आप जानते हैं ?
कि सारा ति-पिटक पालि-भाषा में है।
-कि बुद्ध-पूजा और ति-रत्न वन्दना, जो पालि में है, प्रत्येक बुद्धिस्ट प्रतिदिन अनिवार्य तौर पर करता है।
-कि धर्मान्तरण के बाद भारत में बुद्धिस्टों की संख्या करोड़ों तक पहुंच गई है।
-कि बुद्ध-विहार, जो गांव और शहर में करोड़ों की संख्या में हैं, बुद्ध-पूजा पालि में ही होती है।
-कि लद्दाख आदि क्षेत्रों में बसने वाले पारम्परिक बौद्धों की दैनिक बुद्ध वन्दना पालि में ही होती है।
-कि भारत के बाहर बुद्धिस्ट देशों में प्रतिदिन बुद्ध वन्दना पालि में ही होती है, भले ही लिपि अलग हो।
-कि भारत के बाहर गैर-बुद्धिस्ट देशों में बसे करोड़ों बुद्धिस्ट प्रतिदिन बुद्ध वन्दना पालि-भाषा में करते हैं, लिपि जो भी हो।
-एक समय चीनी-तुर्किस्तान के क्रोरेना राज्य की शासन भाषा प्राकृत(पालि) का ही एक विशिष्ट रूप थी (अम्बेडकरवाद और संस्कृत अर्थात व्याकरण बनाम बाह्मणवादः पृ. 41ः डा. सुरेन्द्र अज्ञात)।
-कि भाषा, समाज की पहचान होती है, उसकी अस्मिता होती है।
-कि भाषा, समाज को एक खास दर्जा देती है, उसे एक मुकाम हासिल कराती है।
-कि लोगों को, अपनी भाषा पर गर्व होता है।
-कि पालि, बुद्ध की भाषा है। सारे बुद्ध वचन पालि में है। पालि बुद्धवाणी है। बाबासाहेब के अनुसार, बुद्ध हमारे आदर्श है। चूंकि बुद्धवचन पालि में है, इसलिए पालि हमारी भाषा है। पालि हमारी अस्मिता का प्रतीक है।
मगर, अजीब बात है कि पालि, हम बोल नहीं सकते?
-कि प्रतिदिन बुद्ध वन्दना हम पालि में करते हैं। धम्म वन्दना पालि में करते हैं। संघ वन्दना पालि में करते हैं। परित्राण-पाठ और अन्य सुत्तों का पठन-पाठन हम पालि में करते हैं। किन्तु, पालि हम बोल नहीं सकते!
-सम्राट अशोक के जितने भी शिला-लेख मिले हैं, सभी पालि में हैं। चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी, कलकत्ता या मुम्बई। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि तब सारे भारत में, और इसके आस-पास के क्षेत्रा में, जहां तक सम्राट अशोक का साम्राज्य था, पालि जन-भाषा थी? लोक-भाषा थी। तभी तो अशोक अपने शिला-लेखों में धम्म-प्रचार का काम पालि में करते हैं?
-बुद्ध के समय भले ही पालि, मगध और इसके आस-पास के क्षेत्रा में बोली जाती रही हो, किन्तु सम्राट अशोक के काल में यह सारे वृहत्त भारत में बोली जाती थी।
इतिहास खंगालते हुए बाबासाहेब ने बतलाया है कि, हम पुराने बौद्ध ही हैं। धर्मान्तरण से हम कोई नया धर्म नहीं अपना रहे हैं।
निस्संदेह, तब पालि, हमारी भाषा थी। हम पालि में बात करते थे। ऐसी सरल और सुबोध भाषा का लोप भारत से क्यो हुआ? किसने किया? क्यों किया?
क्या आपको पता है-
-कि केन्द्र सरकार के अनुसार, पालि ‘मृत-भाषा’ है?
-कि केन्द्र शासन ने पालि को यूपीएससी से हटा दिया है?
-कि इसका कारण सरकार ने पालि के बोलने वालों का नगण्य होना बताया है?
-कि ‘भारतीय संस्कृति के संरक्षण’ के नाम पर भी सरकार पालि को संरक्षण देने तैयार नहीं है।
-कि बीते 2013 में हमारे कुछ लोगों द्वारा फेसबुक पर चलायी गई एक मुहीम धीरे-धीरे शांत होकर अब विस्मृत हो गई।

'पालि' हमें क्यों सीखना चाहिए (1)
हमें पालि क्यों सीखना चाहिए?
क्योंकि, पालि बुद्ध की भाषा है।
क्योंकि, सारा ति-पिटक पालि-भाषा में है।
क्योंकि, अशोक-काल में पालि जन-भाषा थी, लोक-भाषा थी।
क्योंकि, अशोक के सारे शिला-लेख पालि भाषा में हैं।
क्योंकि, हमारे घरों में, बुद्ध विहारों में बुद्ध-वन्दना पालि में होती है,
किन्तु, पालि हम बोल नहीं सकते!
अगर हिन्दी, मराठी अथवा अंग्रेजी की तरह पालि भी हम पढ़ना-लिखना सीख लें तो-
1. पालि जानने वालों की संख्या में इजाफा होगा।
लोकतंत्र में सारी योजनाएं संख्या के आधार पर होती है।
सरकार, पालि के विकास पर ध्यान देगी।
पालि, तीसरी भाषा के रूप में स्कूल-कालेजों में पढ़ायी जा सकेगी।
पालि में रोजगार के अवसर खुलेंगे।
2. बुद्ध-वन्दना की गाथाएं और सुत्त हम ठीक से समझ पाएंगे।
हमारी विरासत, ति-पिटक ग्रंथों की ओर लोगों का ध्यान जाएगा।
इन के अनुवाद और पठन-पाठन की ओर लोगों का ध्यान जाएगा,जो अभी बुरी तरह उपेक्षित है। लोग अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषाओं में इनका अनुवाद करेंगे।
3. भारत को बौद्धमय बनाने में मदद मिलेगी।
पालि सीखने के लिए क्या करना चाहिए?
अपने-अपने घर की दीवारों पर लिख लेना चाहिए कि ‘पालि हमें सीखना है’। 

पालि अर्थात बुद्ध्वचन 
‘पालि’ अर्थात बुद्धवचन। ‘पालि’ अर्थात मूल-ति-पिटक। ‘पालि’ अर्थात बुद्ध वाणी।
आखिर, ‘पालि’ का अर्थ ‘बुद्धवचन’ कैसे हो गया? और ‘पालि’ शब्द के मायने क्या है? क्यों बुद्धवचन के लिए ‘पालि’ शब्द का प्रयोग हुआ? और सबसे अहम प्रश्न कि ‘बुद्ध वचन’ के लिए ‘पालि’ शब्द का प्रयोग  किसने किया, और कब किया?

बुद्धवचन के अर्थ में ‘पालि’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बुद्धघोस ने किया।  चौथी-पांचवीं सदी में आचार्य बुद्धघोस(लगभग 380-440 ईस्वी) ने अपनी कालजयी कृति ‘विसुद्धिमग्ग‘ व तिपिटक-ग्रंथों की ‘अट्ठकथाओं’ में किया। आपने ‘पालि’ शब्द का प्रयोग ‘मूल ति-पिटक’ अथवा ‘बुद्धवचन’ के अर्थ में किया है।
प्रश्न है, बुद्धवचन के अर्थ में ‘पालि’ शब्द का प्रयोग करने की क्या आवश्यकता थी? दरअसल, बौद्ध-वांगमय में, मूल ति-पिटक-ग्रंथों के अलावा बड़ी मात्रा में अट्ठकथाएं, अट्ठकथाओं की अट्ठकथाएं, टीकाएं, व मिलिन्द पन्ह जैसे कई ख्यातनाम धम्म-ग्रंथ भी हैं। मूल ति-पिटक-ग्रंथों को इन से अलग दिखाने आचार्य बुद्धघोस ने ‘पालि’ शब्द का प्रयोग ‘मूल ति-पिटक-ग्रंथों’ के लिए किया।
अगला प्रश्न है, अट्ठकथाकार ने ‘पालि’ शब्द का ही प्रयोग क्यों किया? इसका स्पष्टिकरण पालि भाषा का शब्द ‘पेय्याल’ शब्द से किया जाता है, जिसका अर्थ ‘परियाय’ अर्थात ‘पर्याय’ है। ‘पेय्याल’ का संक्षिप्त रूपान्तरण ही ‘पालि’ है(पालि परिचयः डॉ. प्रियसेन सिंह)।
सिंहलदीप के ऐतिहासिक पालि महाकाव्य ‘महावंस’ के पूर्ववर्ती ग्रंथ ‘दीपवंस’ में भी बुद्धवचन के अर्थ में ‘पालि’ शब्द आया है। इसके आगे, तेरहवीं सदी में लिखे ‘चूळवंस’ नामक सिंहलद्वीप के ऐतिहासिक ग्रंथ में भी ‘पालि’ शब्द का उपयोग ‘बुद्धवचन’ के अर्थ में आया है(चला पालि सिकू याः शूकाचार्य गायकवाड़)। स्मरण रहे, चूळवंस, ‘महावंस’ का ही क्षेपक है जिसे बाद के लेखकों ने इसमें जोड़ा है।

अपनी भाषा अर्थात 'पालि भासा'
विनयपिटक के चुल्लवग्ग में एक कथा आती है जिसमें बुद्ध, भिक्खुओं का सम्बोधित करते हुए कहते हैं- अनुजानामि भिक्खवे, सकाय निरुत्तिया बुद्धवचनं परियापुणितं। जिसका अर्थ है- भिक्खुओं, अनुमति देता हूॅं अपनी भाषा में बुद्धवचन सीखने की(5.6.1)।
दरअसल, ब्राह्मण जाति के दो भिक्खुओं ने बुद्ध से, उनके कहे हुए वचनों को, वैदिक छंद में संग्रह किए जाने का आग्रह किया था। बुद्ध ने उन्हें फटकारते हुए उक्त गाथा कही।
लेख है कि सम्राट अशोक(राज्यकाल  272-232 ई. पू.) पुत्रा महिन्द, जो धम्म प्रचारार्थ भिक्खु प्रतिनिधि-मंडल के साथ सिंहलदीप गए थे, मूल ति-पिटक ग्रंथों के साथ उन पर लिखी अट्ठकथाएं भी ले गए थे।
महिन्द के लगभग 650 वर्ष बाद, सिंहलदीप जाकर मूल ति-पिटक ग्रंथों पर बड़े पैमाने पर अट्ठकथाएं लिखने का काम बुद्धघोष(380-440 ईस्वी) ने किया था।
बुद्धघोष ने अपनी अट्ठकथा में ‘सकाय निरुत्तिया’ का अर्थ ‘मागधी भाषा’ किया है। चूंकि बुद्धघोष, ति-पिटक ग्रंथों पर अट्ठकथाएं लिखने वालों में एक हस्ताक्षर है, अतः इसके बाद के सभी लोगों ने बुद्धवचन का अर्थ मागधी-भाषा ही किया। मागधी-भाषा अर्थात बुद्धवचन। प्रश्न है कि इस मागधी भाषा का नाम ‘पालि’ कैसे पड़ा?
पूर्व में हम देख चुके हैं कि ‘मूल ति-पिटक’ के लिए ‘पालि’ शब्द प्रयुक्त किया जाता था। यथा-
1. ‘‘पालिमतं इध आनीतं नत्थी अट्ठकथा इध।’’
2. ‘‘न इव पालियं न अट्ठकथायं दिस्सति।’’
3. ‘‘इमिस्सा पन पालिया एवमत्थो वेदितब्बो’’ आदि।
ऐसा प्रतीत होता है, धीरे-धीरे उस भाषा का नाम ही, जिस में बुद्धवचन सुरक्षित था, ‘पालि’ हो गया।(भूमिकाः पालि परिचयः डॉ. प्रियसेन सिंह)

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