Monday, March 11, 2019

फैसले की परिपक्वता

"मेरे ख्याल से उम्र ठीक है." - वर की माँ ने हामी भरी। 
"वर-वधु में 4 -5 साल का अंतर होना चाहिए। " वर के पिता ने कहा। 
" हां,  डैडी की बात सही है. वर-वधु में 3 -4 साल का अंतर होना चाहिए. क्योंकि, एक ही ऐज-ग्रुप की लडकी बाय-नेचर लडके से ज्यादा मेच्योर होती है।  दूसरे, 30 -31 वर्ष की उम्र के बाद लडकियों में फर्टिलिटी रेट धीमी पड़ जाती है। इसलिए, च्वाईश अगर आपके पास हो तो शादी के लिए लडकी की उम्र 27 -28 वर्ष रखा जाना चाहिए, ताकि आफ्टर मेरिज वे 1 -2 वर्ष का गेप मेंटेन कर सके। "- वर के बड़े भाई ने अपनी बात रखी। 
"हां, यह एक अलग टेक्निकल पाईंट है। मगर, अगर हम यहाँ सिर्फ उम्र की ही बात करे तो क्या दोनों की उम्र में 4 -5 वर्ष का अंतर नहीं होना चाहिए ? - वर के पिता ने फिर अपनी बात दोहरायी। 
" अंकल, मेरे ख्याल से लड़का और लडकी की उम्र बराबर है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। " - पास खड़े भतीजे ने डिस्कशन में खुद को जोड़ते हुए कहा। 
"अरे भाई, अभी हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। घर के फैसलों के लिए पुरुष से अपेक्षा की जाती है। पत्नी की उम्र अगर बराबर है, तो जाहिर है फैसला लेते वक्त उसकी सलाह दरकिनार नहीं की जा सकती और ऐसे में कई बार विवाद की स्थिति आ सकती है। " - वर के पिता ने अपना अनुभव बतलाया.
"अंकल, विवाद की स्थिति आ सकती है। मगर, यह तय है कि विवाद के बाद जिस फैसले पर पहुंचा जायेगा, वह अधिक परिपक्व होगा। मेरे विचार में, फैसले की परिपक्वता की तुलना विवाद या इसमें हुई देरी से नहीं की जा सकती"(लेखक की फेसबुक  पोस्ट: 11 मार्च 2012).

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