कार्य-कारण का सिद्धांत
कार्य-कारण के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक कार्य का कारण होता है।
ईश्वरवादी इसी सिद्धांत का सहारा लेकर कहते हैं कि संसार का कोई कारण होना चाहिए और इस तरह वे ईश्वर की सिद्ध करते हैं।
1. बुद्ध का अनित्यवाद अर्थात प्रतीत्य समुत्पाद (दूसरा ही उत्पन्न होता है, दूसरा ही नष्ट होता है) के अनुसार किसी एक मौलिक तत्व का बाहरी अपरिवर्त्तन मात्र नहीं, बल्कि एक का बिलकुल नाश और दूसरे का बिलकुल नया उत्पाद है। बुद्ध कार्य-कारण की निरंतर या अविच्छिन्न सन्तति को नहीं मानते(दर्शन दिग्दर्शन पृ 514 )।
2. बुद्ध ने कार्य-कारण के महान नियम को अपनी शाखाओं-प्रशाखाओं सहित प्रतीत्य-समुत्पाद के रूप में मान्य ठहराया(डॉ बी आर अम्बेडकर : बुद्ध और उनका धम्म: खंड-1:भाग-7-2)।
2- किसी भी कार्य के दो कारण दो प्रकार के होते हैं- उपादान कारण और निमित्त कारण। मिटटी, पानी आदि घड़े के उपादान कारण और निमित्त कारण कुम्हार हैं(मज्झिम निकाय:भूमिका)।
कार्य-कारण के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक कार्य का कारण होता है।
ईश्वरवादी इसी सिद्धांत का सहारा लेकर कहते हैं कि संसार का कोई कारण होना चाहिए और इस तरह वे ईश्वर की सिद्ध करते हैं।
1. बुद्ध का अनित्यवाद अर्थात प्रतीत्य समुत्पाद (दूसरा ही उत्पन्न होता है, दूसरा ही नष्ट होता है) के अनुसार किसी एक मौलिक तत्व का बाहरी अपरिवर्त्तन मात्र नहीं, बल्कि एक का बिलकुल नाश और दूसरे का बिलकुल नया उत्पाद है। बुद्ध कार्य-कारण की निरंतर या अविच्छिन्न सन्तति को नहीं मानते(दर्शन दिग्दर्शन पृ 514 )।
2. बुद्ध ने कार्य-कारण के महान नियम को अपनी शाखाओं-प्रशाखाओं सहित प्रतीत्य-समुत्पाद के रूप में मान्य ठहराया(डॉ बी आर अम्बेडकर : बुद्ध और उनका धम्म: खंड-1:भाग-7-2)।
2- किसी भी कार्य के दो कारण दो प्रकार के होते हैं- उपादान कारण और निमित्त कारण। मिटटी, पानी आदि घड़े के उपादान कारण और निमित्त कारण कुम्हार हैं(मज्झिम निकाय:भूमिका)।
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