सर एडविन आर्नोल्ड लिखित काव्य-ग्रन्थ 'लाईट ऑफ़ एशिया'-
धर्मानंद कोसंबी के 'भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन' की प्रस्तावना में काकासाहब कालेलकर लिखते हैं- आजकल भगवान बुद्ध के बारे में हम जो कुछ भी पढ़ पाते हैं, वह अंग्रेजी लेखकों के लिखे हुए चरित्रों का कमोबेश सार-संकलन ही होता है .सर एडविन आर्नोल्ड ने 'लाईट ऑफ़ एशिया' नामक काव्य लिखा और उसमे भगवान बुद्ध की पौराणिक कथा दुनिया के सामने पेश की. यह काव्य-कृति बहुत प्रसिद्द हुई. पॉल करस ने भी ऐसा ही एक रोचक चित्र अंग्रेजी गद्य दिया(भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन)।
सर एडविन आर्नोल्ड के 'लाईट ऑफ़ एशिया' का हिंदी अनुवाद हिंदी जगत के लेखक रामचंद्र शुक्ल ने 'बुद्ध चरित' नाम से किया। बाद में इसका अनुवाद प्रसिद्द आलोचक डॉ सुरेन्द अज्ञात ने भी किया।
धर्मानंद कोसंबी द्वारा लिखित यह चरित्र शायद पहला ही चरित्र ग्रन्थ है, जो किसी भारतीय व्यक्ति ने मूल पाली बौद्ध ग्रन्थ ति-पिटक तथा अन्य आधार ग्रंथों का चिकित्सापूर्ण दोहन करके, उसी के आधार पर लिखा है। इस प्राची मसाले में भी जितना हिस्सा बुद्धि ग्राह्य था उतना ही उन्होंने लिया। पौराणिक, चमत्कार, असम्भाव्य वस्तु सब छोड़ दी; और जो कुछ भी लिखा उसके लिए जगह-जगह मूल प्रमाण भी दिए(वही).
बुद्धघोष की अट्ठकथाएँ-
बुद्धचरित के बारे में वर्तमान में जो बातें प्रचलित है, यह बुद्धघोष द्वारा दीघनिकाय पर लिखी अट्ठकथा 'सुमंगलविलासिनी' और उन्ही की विनयपिटक पर लिखी 'समन्तपासादिका' की निदान कथाओं में मिलती हैं । परन्तु ति-पिटक ग्रंथों में इनका आधार कहीं नहीं पाया जाता(वही, पृ 18 )।
धर्मानंद कोसंबी के 'भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन' की प्रस्तावना में काकासाहब कालेलकर लिखते हैं- आजकल भगवान बुद्ध के बारे में हम जो कुछ भी पढ़ पाते हैं, वह अंग्रेजी लेखकों के लिखे हुए चरित्रों का कमोबेश सार-संकलन ही होता है .सर एडविन आर्नोल्ड ने 'लाईट ऑफ़ एशिया' नामक काव्य लिखा और उसमे भगवान बुद्ध की पौराणिक कथा दुनिया के सामने पेश की. यह काव्य-कृति बहुत प्रसिद्द हुई. पॉल करस ने भी ऐसा ही एक रोचक चित्र अंग्रेजी गद्य दिया(भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन)।
सर एडविन आर्नोल्ड के 'लाईट ऑफ़ एशिया' का हिंदी अनुवाद हिंदी जगत के लेखक रामचंद्र शुक्ल ने 'बुद्ध चरित' नाम से किया। बाद में इसका अनुवाद प्रसिद्द आलोचक डॉ सुरेन्द अज्ञात ने भी किया।
धर्मानंद कोसंबी द्वारा लिखित यह चरित्र शायद पहला ही चरित्र ग्रन्थ है, जो किसी भारतीय व्यक्ति ने मूल पाली बौद्ध ग्रन्थ ति-पिटक तथा अन्य आधार ग्रंथों का चिकित्सापूर्ण दोहन करके, उसी के आधार पर लिखा है। इस प्राची मसाले में भी जितना हिस्सा बुद्धि ग्राह्य था उतना ही उन्होंने लिया। पौराणिक, चमत्कार, असम्भाव्य वस्तु सब छोड़ दी; और जो कुछ भी लिखा उसके लिए जगह-जगह मूल प्रमाण भी दिए(वही).
बुद्धघोष की अट्ठकथाएँ-
बुद्धचरित के बारे में वर्तमान में जो बातें प्रचलित है, यह बुद्धघोष द्वारा दीघनिकाय पर लिखी अट्ठकथा 'सुमंगलविलासिनी' और उन्ही की विनयपिटक पर लिखी 'समन्तपासादिका' की निदान कथाओं में मिलती हैं । परन्तु ति-पिटक ग्रंथों में इनका आधार कहीं नहीं पाया जाता(वही, पृ 18 )।
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