Thursday, March 7, 2019

पालि भाषा: दशा और दिशा

पालि भाषा: दशा और दिशा
भारत में अब पालि भाषा और बौद्ध साहित्य अपरिचित और पराया नहीं है। तेरहवीं/चौदहवीं सदी से लेकर अट्ठारहवीं सदी के मध्य तक का काल भारत में पालि भाषा और बौद्ध धम्म के लिए बहुत ही प्रतिकूल रहा है, जबकि पालि भाषा और बौद्ध धम्म भारत की धरोहर है। बाह्मणवाद ने, हिन्दूवाद ने भारत की भूमि से पालि भाषा  और बौद्ध धम्म को मटियामेट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। भारत की भूमि से पालि भाषा  और बौद्ध धम्म अपने आप समाप्त हुआ बल्कि इसको नष्ट करने का पूरा प्रयास किया गया था। भारत में बाह्मणवाद कभी भी पालि भाषा  और बौद्ध धम्म के लिए अनुकूल नहीं रहा है।

प्राचीन भारत में, मध्यकालीन भारत में जब पालि भाषा और बौद्ध धम्म का महत्व बढ़ा तो बहुजन समाज में संस्कृत भाषा, वैदिक धर्म(बाह्मण धर्म/हिन्दू धर्म) का महत्व काफी हद तक घट गया था। बहुजनों का धम्म बौद्ध धम्म हो गया था। तब बहुजन समाज ने बाह्मणों के/वैदिकों के वर्चस्व को, श्रेष्ठत्व को नकार कर अपने में से राजनैतिक शासकों को पैदा किया। सम्राट अशोक जैसे बहुजन शासक राजसत्ता में आए। इस काल में बौद्ध धम्म का महत्व बढ़ा, पालि भाषा का महत्व बढ़ा। बौद्ध धम्म भारत के बहुसंख्यक समाज का धम्म बना, पालि प्रभावित बौद्ध संस्कृत का विकास हुआ और पालि भाषा के व्याकरण पालि में लिखे गए। बौद्ध संस्कृत के स्वतंत्र व्याकरण लिखे गए। बौद्ध आचार्यों ने पाणिनी के व्याकरण को स्वीकार नहीं किया, पालि व्याकरणकारों ने पाणिनी के संस्कृत व्याकरण 'अष्टाध्यायी' को स्वीकार नहीं किया। अर्थात प्रारम्भ से ही भगवान बुद्ध, बौद्ध भिक्खू, बौद्ध आचार्य और बौद्ध विद्वान पालि भाषा और बौद्ध धम्म की स्वतंत्र धारा को विकसित करने के प्रबल समर्थक रहे हैं जो धारा बौद्ध धम्म के जन्मकाल से आजतक सम्पूर्ण बौद्ध विश्व में विद्यमान है और विकसित हो रही है।

कुछ तथाकथित विद्वान पालि भाषा के अध्ययन, अध्यापन के लिए संस्कृत भाषा के ज्ञान को जरूरी मानते है जो पूरी तरह बेबुनियाद और गलत है। पालि भाषा एक स्वतंत्र भाषा है और जो वैदिक पूर्व काल से भारत के सामान्य जनों की भाषा, भारतीय जनता की भाषा, लोकभाषा रही है। वास्तव में वैदिक संस्कृत/लौकिक संस्कृत लोक-भाषा पालि(मागधी) पर संस्कार करके संस्कृत अर्थात निर्मित भाषा हुई है। वैदिक संस्कृत/लौकिक संस्कृत कभी भारत की जन-भाषा, लोेक-भाषा नहीं रही है। इसीलिए भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों के लिए जन भाषा को स्वीकार किया, अपनाया; नकली संस्कृत भाषा को नहीं। मूल बौद्ध धम्म इसी पालि भासा में अर्थात पालि-तिपिटक में सुरक्षित है।

आधुनिक भारत में सामाजिक क्रांति के लिए, सामाजिक बदलाव के लिए, नये भारत के निर्माण के लिए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने मूल बुद्ध धम्म को, पालि तिपिटक में सुरक्षित बौद्ध धम्म को अपनाया और उन्हीं के प्रयासों से आधुनिक भारत में पालि भाषा और बौद्ध धम्म के अध्ययन और अध्यापन के लिए गति प्राप्त हुई। डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने सन् 1950 से पहले ही अपने बौद्ध धम्म के अध्ययन के लिए, पालि भाषा के अध्ययन के लिए ‘पालि व्याकरण’ और ‘पालि शब्दकोष’ को तैयार किया था जो बहुत बाद में प्रकाशित हुए। इससे पता चलता है कि डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को पालि भाषा के प्रति गहरी रुचि और बड़ा आकर्षण था। डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर पालि भाषा के अध्ययन, अध्यापन के लिए, बौद्ध धम्म के अध्ययन, अध्यापन के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे, लेकिन उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिला और महापरिनिर्वाण को प्राप्त हो गये। लेकिन उन्होंने आधुनिक भारत में पालि भाषा और बौद्ध धम्म के अध्ययन के लिए जो मशाल जलाई है, वह कभी बूझनेवाली नहीं है। आज, पालि भाषा और बौद्ध धम्म के अध्ययन को, अध्यापन को रोकने का सरकार और ब्राह्मणवादियों की ओर से बहुत प्रयास किया जा रहा है लेकिन वे सफल नहीं होंगे('धम्म परित्तंं': प्रो. डॉ. विमलकीर्ति: निदेशक डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन पालि एवं बौद्ध अध्ययन शोध केंद नागपुर )।
- अ ला ऊके  @amritlalukey.blogspot.com
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