Wednesday, March 27, 2019

सामाजिक जड़ता के विरुद्ध बुद्ध; संदर्भित सुत्त/ग्रन्थ


वर्ण-व्यवस्था का खंडन
म. नि. 2-4- 10  कण्णत्थलक : वर्ण-व्यवस्था का खंडन।  देव, ब्रह्मा
म. नि. 2-5-3 :  असलायन सुत्त : वर्ण-व्यवस्था का खंडन
म. नि. 2-5-8  वासेट्ठ सुत्त

म. नि. 2-3-1  तेविज्ज वच्छगोत सुत्त : बुद्ध स्वयं को सर्वज्ञ नहीं मानते।

संयुक्त निकाय 55-2-1  धम्म चक्क पवत्तन सुत्त
बुद्धचर्यावतार


दी. नि. 2-9  महासतिपट्ठान सुत्त : पाँचों उपादान स्कंध दुक्ख हैं।
म. नि. 1-2-3  महा दुक्खक्खन्ध सुत्त :  दुक्ख का कारण तृष्णा है।
संयुक्त निकाय 14 : दुक्ख का कारण तृष्णा है।

अंगुत्तर निकाय 5  अट्ठङगिक मार्ग।
म. नि. 1-5-4  चुलवेदल्ल सुत्त : चित्त की एकाग्रता को समाधि कहते हैं। अट्ठङगिक मार्ग।  उपादान स्कंध।
म. नि. 1-3-9  महा सारोपम सुत्त : भिक्खु जीवन का वास्तविक उद्देश्य।
संयुक्त निकाय 4-1-4  : अपनी शिक्षा का मुख्य प्रयोजन बुद्ध ने बताया।
दी. नि. 2-3  महा परिनिब्बान सुत्त : लिच्छवियों के प्रशंसा में 7 बातें।


अनित्य, दुक्ख, अनात्म।
अंगुत्तर निकाय 3-1-34 : विश्व की सारी वस्तुएं  स्कंध, आयतन, धातु तीनों में से किसी एक प्रक्रिया में बांटी जा सकती हैं , इन्हें ही नाम और रूप में विभक्त किया जाता है , जिनमें नाम विज्ञानं का पर्याय वाची है। यह सभी अनित्य हैं।

म. नि. 1-5-3 महा वेदल्ल सुत्त :वेदना, संज्ञा, संखार-  रूप के संपर्क से विज्ञानं(मन) की भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं। संज्ञा, वेदना, विज्ञानं यह तीनों धर्म (पदार्थ) मिले-जुले हैं, अलग-अलग नहीं। अलग-अलग करके इनका भेद नहीं बतलाया जा सकता।

प्रतीत्य समुत्पाद
सारे धर्म प्रतीत्य-समुत्पन्न हैं। ईश्वरवाद का खंडन। यह निरंतर प्रवाह या घटना है, जिसमें कुछ भी नित्य नहीं है। यहाँ (विश्व में) कोई चीज नित्य (स्थिर) नहीं- न नाम (विज्ञान) ही न रूप(भौतिक तत्व) ही(महावग्ग: विनय पिटक )।
दी. नि. 2-2   महानिदान सुत्त: पञ्च स्कंध प्रतीत्य समुत्पन्न व्यय(क्षय) धर्मी हैं।
म. नि. 1-3-8  महाहत्थिपदोपम सुत्त : प्रतीत्य समुत्पाद। उपादान स्कंधों से मुक्ति।

आत्मवाद का खंडन/प्रतीत्य समुत्पाद-
म. नि. 1-4-8   महातण्हासंखय सुत्तंत : अनात्मवाद। प्रतीत्य समुत्पाद। भिक्खु साति केवट्ठपुत्त के विञ्ञाण (चित्त) के आवागमन की बात करने पर बुद्ध की फटकार। धर्म बेड़े की भांति पार उतरने के लिए है, पकड़ रखने के लिए नहीं। जीवन प्रवाह, गर्भ, बाल्य, यौवन, सन्यास, शील-समाधि।
म. नि. 1-1-2 सब्बा सव सुत्त : चित्त-मल का शमन।
म. नि. 1-4-5  चुलसच्चक सुत्त : आत्मवाद का खंडन, अनात्मवाद का मंडन


सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, आत्मा, ईश्वर का खंडन
दी. नि. 3-1   पथिक सुत्त :

ब्रह्मा/ईश्वर का परिहास
दी. नि. 1-11   केवट्ठसुत्त :
दी. नि. 1-13  तेविज्ज सुत्त : ब्राह्मण अंधे के पीछे चलने वाले अंधों की भांति बिना जाने देखे
                                           ईश्वर/ब्रह्मा और उसके लोक पर विश्वास रखते हैं।
                                           बुद्ध ने वेदों को जल विहीन कान्तार कहा, पथ विहीन जंगल कहा, वास्तव
                                           में विनाश का पथ। कोई भी आदमी, जिसमें कुछ बौद्धिक तथा नैतिक प्यास है
                                           वह वेदों के पास जा कर अपनी प्यास नहीं बुझा सकता)।
म. नि. 1-5-9  ब्रह्म निमन्तनिक सुत्त :


बुद्ध अपने को सर्वज्ञ नहीं मानते-
म. नि. 2-3-1:  तेविज्ज वच्छ गोत्त सुत्त
म. नि. 2-4-10 :


अ-भौतिक वाद का खंडन
दी. नि. 1-12   लोहिच्च सुत्त: संसार में ऐसा कोई समण या ब्राह्मण नहीं है जो अच्छे धर्म को जान कर दूसरे को समझाये। भला दूसरा, दूसरे के लिए क्या करेगा ? जैसे कि एक पुराने बंधन को काट कर एक दूसरे नए बंधन को डालना। बुद्ध ने शील-समाधि-प्रज्ञा का उपदेश देकर इसे जीवन में आवश्यक बताया।

भौतिकवाद का खंडन-
अ. नि. 3

10 अव्याकृत(अव्याख्येय) बातें-
म. नि. 2-2-3  चुल मालुक्य सुत्त :


अनित्य-अनात्म-दुक्ख
उपनिषदों और ब्राह्मण के तत्व ज्ञान 'सत-चित-आनंद'  के उलट बुद्ध ने असत(अनित्य, प्रतीत्य-समुत्पन्न), अचित (अनात्म) और अन-आनंद (दुक्ख) का उपदेश दिया(दर्शन-दिग्दर्शन: पृ 530)।

विचार-स्वातंत्र्य
म. नि. 1-3-2  अलगद्दूपम सुत्त : भिक्खुओं! मैं बेड़े(कुल्लु) की भांति।  सांप पकड़ने की सावधानी उपदेश ग्रहण करने में भी अपेक्षित है। अनात्मवाद का खंडन।


 अंगुत्तर निकाय
 कालाम सुत्त  (तिक निपात ) - बुद्धि की स्वतंत्रता की देशना।
सिंहनाद सुत्त (चतुक्क निपात )  पेज 77
वस्सकार सुत्त (चतुक्क निपात )  पेज 79
उदायि सुत्त (चतुक्क निपात ) पेज  85 :यज्ञों के नाम पर की जाने वाली हिंसा का विरोध।

No comments:

Post a Comment