Wednesday, March 27, 2019

अट्ठङग उपोसथ-सीलं

आओ पालि सीखें-
अट्ठङग उपोसथ-सीलं
1. पाणातिपाता वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि ।। 1।।
मैं पाणा-इति-पाता(प्राणी-हिंसा) से विरति(विरत रहने) की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
2. अदिन्नादाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 2।।
मैं जो दिया गया न हो(अदिन्न) को न लेने (अ-दाना) की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
3. असाधुचरिया* वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 3।।
मैं असाधु चरिया(असाधु आचरण) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ।
4. मुसावादा वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 4।।
मैं झूठ(मूसा) वचन(वादा) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
5. सुरा मेरय मज्जप्पमादट्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 5।।
मैं सुरा, मेरय, मज्ज(मद्य) और प्रमाद उत्पन्न होने के स्थान (प्रमाद-ट्ठाना) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ .
6. विकाल-भोजना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 6।।
मैं विकाल(दोपहर 12 बजे से के बाद) भोजन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
7. नच्च-गीत वादित-विसूकदस्सन माला-गंध-विलेपन-धारण-मण्डन-विभूसनट्ठाना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 7।।
नाच-गाना, बजाना, विसूकदस्सन(अशोभनीय खेल-तमाशे देखना), माला, सुगंध, विलेपन, मण्डन-विभूसनट्ठाना(सिंगार आदि स्थान) से विरत रहने की मैं शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ।
8. उच्चासयन-महासयना वेरमणी, सिक्खापदं समादियामि।। 8।।
मैं ऊंचे, महासयना(विलासिता-पूर्ण सयन) से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ।
भन्ते- तिसरणेन सह अट्ठङग समन्नागतं उपोसथ-सीलं धम्मं साधुकं सुरक्खितं कत्वा अप्पमादेन सम्पादेहि।
ति-सरण के साथ (ति-सरणेन सह) आठ अंगों से(अट्ठङग) युक्त (समन्नागतं) उपोसथ सील-धम्म को साधुकं(भलि-भांति) सुरक्खितं कत्वा(सुरक्षित कर) अ-पमादेन(अ-प्रमाद के साथ) सम्पादेहि(सम्पादन करो)।
उपासक/उपासिका- आम, भंते!
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*. मूलपाट- अब्रह्मचरिया। देवी, देवता, स्वर्ग, नरक, ईस्वर, ब्रह्मा, श्री, ओंकार आदि अबौद्ध संस्कृति के शब्द हैं। यथा प्रयास इनका स्थानापन्न आवश्यक है।
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com

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