पालि और संस्कृत
पालि लोक भाषा है, गाँव-देहातों की भाषा है. संस्कृत, वैदिक भाषा से उत्पन्न परवर्ती परिष्कृत और अभि-संस्कृत भाषा है। संस्कृत, वैदिक और लोक भाषाओं को संस्कृत कर निर्मित की गई है. दूसरे शब्दों में, संस्कृत क्लिष्ट सूत्र-आबद्ध भाषा है, जबकि पालि पाकृत है, जन-भाषा है.
पालि, अशोक काल में यह राष्ट्र भाषा थी और यही कारण है की अशोक के तमाम शिलालेख, स्तम्भ और भित्तियों पर पालि भाषा में अभिलेख हैं. एक शासक अपना सन्देश उसी भाषा में प्रसारित करता है, जिसे जन-साधारण बोलते हैं, समझते हैं. ऐसे जन-भाषा कैसे इस धरा से लुप्त हो गई, यह शोध का विषय है.
अशोक के स्तम्भ में ही अंकित है कि यह 'धम्मलिपि' में लिखा गया है. किन्तु स्कूल-कालेजों में इसे 'ब्राम्हीलिपि' अर्थात 'ब्रह्मा के मुख से निस्रत लिपि' के नाम से पढाया जाता है ?
कुछ भाषाविदों के अनुसार अशोक के 'धम्मलिपि' का आशय 'धम्म्लेख' है न की लिपि। जबकि उसी अभिलेख में आगे 'लेखापिता' शब्द आता है। स्पष्ट है, 'लिपि' ('लिप' धातु से व्युत्पन्न ) और 'लेख' ('लिख' धातु व्युत्पन्न) से तत्कालीन समाज परिचित था. सवाल है, ये कलम के ठेकेदार क्यों नहीं समझना चाहते ?
पालि लोक भाषा है, गाँव-देहातों की भाषा है. संस्कृत, वैदिक भाषा से उत्पन्न परवर्ती परिष्कृत और अभि-संस्कृत भाषा है। संस्कृत, वैदिक और लोक भाषाओं को संस्कृत कर निर्मित की गई है. दूसरे शब्दों में, संस्कृत क्लिष्ट सूत्र-आबद्ध भाषा है, जबकि पालि पाकृत है, जन-भाषा है.
पालि, अशोक काल में यह राष्ट्र भाषा थी और यही कारण है की अशोक के तमाम शिलालेख, स्तम्भ और भित्तियों पर पालि भाषा में अभिलेख हैं. एक शासक अपना सन्देश उसी भाषा में प्रसारित करता है, जिसे जन-साधारण बोलते हैं, समझते हैं. ऐसे जन-भाषा कैसे इस धरा से लुप्त हो गई, यह शोध का विषय है.
अशोक के स्तम्भ में ही अंकित है कि यह 'धम्मलिपि' में लिखा गया है. किन्तु स्कूल-कालेजों में इसे 'ब्राम्हीलिपि' अर्थात 'ब्रह्मा के मुख से निस्रत लिपि' के नाम से पढाया जाता है ?
कुछ भाषाविदों के अनुसार अशोक के 'धम्मलिपि' का आशय 'धम्म्लेख' है न की लिपि। जबकि उसी अभिलेख में आगे 'लेखापिता' शब्द आता है। स्पष्ट है, 'लिपि' ('लिप' धातु से व्युत्पन्न ) और 'लेख' ('लिख' धातु व्युत्पन्न) से तत्कालीन समाज परिचित था. सवाल है, ये कलम के ठेकेदार क्यों नहीं समझना चाहते ?
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