विभंग सुत्त: अरिय अट्ठङगिक मग्गो
"अरियं वो भिक्खवे, अट्ठङगिक मग्गं देसेस्सामि विभजिस्सामि। तं सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ, भासिस्सामि"ति। भिक्खुओं, आर्य अष्टांगिक मार्ग का उपदेश करूँगा, विभाजन करूँगा। उसे सुनो।
"एवं भंते"ति खो ते भिक्खु भगवतो पच्चस्सोसुं।
हाँ भंते, कह कर भिक्खुओं ने भगवान को प्रतित्युत्तर दिया।
भगवा एतद वोच- "कतमो च भिक्खवे, अट्ठङगिक मग्गो ? सेय्यथिदं - सम्मा दिट्ठि---पे---सम्मा समाधि।
भिक्खुओं, आर्य अशंगिक मार्ग क्या है ? यही जो सम्यक दृष्टि ------सम्यक समाधि।
कतमा च भिक्खवे सम्मा दिट्ठि ? यं खो भिक्खवे, दुक्खे जाणं, दुक्ख समुदये जाणं, दुक्ख निरोधे जाणं, दुक्ख निरोध गामिनिया पटिपदाय जाणं- अयं वुच्चति भिक्खवे, सम्मा दिट्ठि।
भिक्खुओ, सम्यक दृष्टि क्या है ? भिक्खुओ, दुक्ख का ज्ञान, दुक्ख के समुदाय का ज्ञान, दुक्ख के निरोध का ज्ञान , दुक्ख के निरोध-गामी मार्ग का ज्ञान, यही सम्यक दृष्टि है।
कतमो च भिक्खवे, सम्मा संकप्पो ? यो खो भिक्खवे, नेक्खम्म संकप्पो, अव्यापाद संकप्पो, अविहिंसा संकप्पो- अयं वुच्चति भिक्खवे सम्मा संकप्पो।
भिक्खुओ, सम्यक संकल्प क्या है ? भिक्खुओ, जो त्याग का संकल्प है, वैर से अलग रहने का संकल्प है, हिंसा से अलग रहने का संकल्प है, यही सम्यक संकल्प है।
कतमा च भिक्खवे सम्मा वाचा ? या खो भिक्खवे, मुसावादा वेरमणि, पिसुणाय वाचाय वेरमणि, फरुसाय वाचाय वेरमणि, सम्फप्पलापा वेरमणि, अयं वुच्चति भिक्खवे सम्मा वाचा.
"अरियं वो भिक्खवे, अट्ठङगिक मग्गं देसेस्सामि विभजिस्सामि। तं सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ, भासिस्सामि"ति। भिक्खुओं, आर्य अष्टांगिक मार्ग का उपदेश करूँगा, विभाजन करूँगा। उसे सुनो।
"एवं भंते"ति खो ते भिक्खु भगवतो पच्चस्सोसुं।
हाँ भंते, कह कर भिक्खुओं ने भगवान को प्रतित्युत्तर दिया।
भगवा एतद वोच- "कतमो च भिक्खवे, अट्ठङगिक मग्गो ? सेय्यथिदं - सम्मा दिट्ठि---पे---सम्मा समाधि।
भिक्खुओं, आर्य अशंगिक मार्ग क्या है ? यही जो सम्यक दृष्टि ------सम्यक समाधि।
कतमा च भिक्खवे सम्मा दिट्ठि ? यं खो भिक्खवे, दुक्खे जाणं, दुक्ख समुदये जाणं, दुक्ख निरोधे जाणं, दुक्ख निरोध गामिनिया पटिपदाय जाणं- अयं वुच्चति भिक्खवे, सम्मा दिट्ठि।
भिक्खुओ, सम्यक दृष्टि क्या है ? भिक्खुओ, दुक्ख का ज्ञान, दुक्ख के समुदाय का ज्ञान, दुक्ख के निरोध का ज्ञान , दुक्ख के निरोध-गामी मार्ग का ज्ञान, यही सम्यक दृष्टि है।
कतमो च भिक्खवे, सम्मा संकप्पो ? यो खो भिक्खवे, नेक्खम्म संकप्पो, अव्यापाद संकप्पो, अविहिंसा संकप्पो- अयं वुच्चति भिक्खवे सम्मा संकप्पो।
भिक्खुओ, सम्यक संकल्प क्या है ? भिक्खुओ, जो त्याग का संकल्प है, वैर से अलग रहने का संकल्प है, हिंसा से अलग रहने का संकल्प है, यही सम्यक संकल्प है।
कतमा च भिक्खवे सम्मा वाचा ? या खो भिक्खवे, मुसावादा वेरमणि, पिसुणाय वाचाय वेरमणि, फरुसाय वाचाय वेरमणि, सम्फप्पलापा वेरमणि, अयं वुच्चति भिक्खवे सम्मा वाचा.
विभङ्गसुत्तं
८. सावत्थिनिदानं। ‘‘अरियं
वो, भिक्खवे, अट्ठङ्गिकं
मग्गं देसेस्सामि विभजिस्सामि। तं सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ; भासिस्सामी’’ति।
‘‘एवं, भन्ते’’ति
खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं। भगवा एतदवोच –
‘‘कतमो
च, भिक्खवे, अरियो
अट्ठङ्गिको मग्गो? सेय्यथिदं – सम्मादिट्ठि…पे॰… सम्मासमाधि।
‘‘कतमा
च, भिक्खवे, सम्मादिट्ठि? यं
खो, भिक्खवे, दुक्खे ञाणं, दुक्खसमुदये
ञाणं , दुक्खनिरोधे ञाणं, दुक्खनिरोधगामिनिया
पटिपदाय ञाणं – अयं वुच्चति, भिक्खवे, सम्मादिट्ठि।
‘‘कतमो
च, भिक्खवे, सम्मासङ्कप्पो? यो
खो, भिक्खवे, नेक्खम्मसङ्कप्पो , अब्यापादसङ्कप्पो, अविहिंसासङ्कप्पो
– अयं
वुच्चति, भिक्खवे, सम्मासङ्कप्पो।
‘‘कतमा
च, भिक्खवे, सम्मावाचा? या
खो, भिक्खवे, मुसावादा
वेरमणी, पिसुणाय वाचाय वेरमणी, फरुसाय
वाचाय वेरमणी, सम्फप्पलापा वेरमणी – अयं
वुच्चति, भिक्खवे, सम्मावाचा।
‘‘कतमो
च, भिक्खवे, सम्माकम्मन्तो? या
खो, भिक्खवे, पाणातिपाता
वेरमणी, अदिन्नादाना वेरमणी, अब्रह्मचरिया
वेरमणी – अयं वुच्चति, भिक्खवे, सम्माकम्मन्तो।
‘‘कतमो
च, भिक्खवे, सम्माआजीवो? इध, भिक्खवे, अरियसावको
मिच्छा आजीवं पहाय सम्माआजीवेन जीवितं कप्पेति – अयं वुच्चति, भिक्खवे, सम्माआजीवो।
‘‘कतमो
च, भिक्खवे, सम्मावायामो? इध, भिक्खवे, भिक्खु
अनुप्पन्नानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं अनुप्पादाय छन्दं जनेति वायमति वीरियं
आरभति चित्तं पग्गण्हाति पदहति, उप्पन्नानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय
छन्दं जनेति…पे॰… अनुप्पन्नानं कुसलानं धम्मानं उप्पादाय
छन्दं जनेति…पे॰… उप्पन्नानं कुसलानं धम्मानं ठितिया
असम्मोसाय भिय्योभावाय वेपुल्लाय भावनाय पारिपूरिया छन्दं जनेति वायमति वीरियं
आरभति चित्तं पग्गण्हाति पदहति – अयंवुच्चति, भिक्खवे, सम्मावायामो।
‘‘कतमा
च, भिक्खवे, सम्मासति? इध, भिक्खवे, भिक्खु
काये कायानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; वेदनासु
वेदनानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; चित्ते
चित्तानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं; धम्मेसु
धम्मानुपस्सी विहरति आतापी सम्पजानो सतिमा, विनेय्य लोके अभिज्झादोमनस्सं – अयं
वुच्चति, भिक्खवे, सम्मासति।
‘‘कतमो च, भिक्खवे, सम्मासमाधि? इध, भिक्खवे, भिक्खु
विविच्चेव कामेहि विविच्च अकुसलेहि धम्मेहि सवितक्कं सविचारं विवेकजं पीतिसुखं
पठमं झानं उपसम्पज्ज विहरति। वितक्कविचारानं वूपसमा अज्झत्तं सम्पसादनं चेतसो
एकोदिभावं अवितक्कं अविचारं समाधिजं पीतिसुखं दुतियं झानं उपसम्पज्ज विहरति।
पीतिया च विरागा उपेक्खको च विहरति सतो च सम्पजानो, सुखञ्च कायेन पटिसंवेदेति, यं
तं अरिया आचिक्खन्ति – ‘उपेक्खको सतिमा सुखविहारी’ति
ततियं झानं उपसम्पज्ज विहरति। सुखस्स च पहाना दुक्खस्स च पहाना पुब्बेव
सोमनस्सदोमनस्सानं अत्थङ्गमा अदुक्खमसुखं उपेक्खासतिपारिसुद्धिं चतुत्थं झानं
उपसम्पज्ज विहरति – अयं वुच्चति, भिक्खवे, सम्मासमाधी’’ति।
अट्ठमं।
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