Saturday, August 24, 2019

सोचेय्य सुत्त

शुचिता सुत्त
भिक्खुओ! तीन शुचिताएं होती हैं।
तीणिमानि भिक्खवे! सोचेय्यानि।
कौन-से तीन?
कतमानि तीणि?
काया की शुचिता, वाणी की शुचिता और मन की शुचिता।
कायं सोचेय्यं, वची सोचेय्यं, मनो सोचेय्यं।
भिक्खुओ! काया की शुचिता किसे कहते हैं?
कतमं च भिक्खवे, काय सोचेय्यं?
आदमी प्राणी हिंसा से विरत रहता है, चोरी से विरत रहता है, कामाचार से विरत रहता है, भिक्खुओ, यह काया की शुचिता है।
इध भिक्खवे, भिक्खु पाणातिपाता पटिविरतो होति, अदिन्नदाना पटिविरतो होति, कामाचारा पटिविरतो होति; इदं वुच्चति भिक्खवे, कायं सोचेय्यं।
भिक्खुओ! वाणी की शुचिता क्या है?
कतमं च भिक्खवे, वची सोचेय्यं?
आदमी झूठ बोलने से विरत रहता है, चुगली करने से विरत रहता है, कठोर बोलने से विरत रहता है तथा व्यर्थ बोलने से विरत रहता है, भिक्खुओ, इसे वाणी की शुचिता कहतेे हैं।
इदं भिक्खवे, भिक्खु मुसावादा पटिविरतो होति, पिसुणाय वाचाय पटिविरतो होति, फरुसाय वाचाय पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति। इदं वुच्चति भिक्खवे, वची सोचेय्यं।
भिक्खुओ! मन की शुचिता क्या है?
कतमं च भिक्खवे, मनो सोचेय्यं?
आदमी निर्लोभी होता है, अक्रोधी होता है तथा सम्यक दृष्टि वाला होता है, भिक्खुओ, यह मन की शुचिता है।
इध भिक्खवे, भिक्खु एकच्चो अन-अभिज्झालु होति, अ-व्यापन्न चितो होति, सम्मा दिट्ठीको होति, इध वुच्चति भिक्खवे, मनो सोचेय्यं(अ. नि. तिक निपात पृ. 259 )।
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अभिज्झालु- अत्यंत लोभी।  व्यापन्न- मार्ग-भ्रष्ट। 

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