बेईमानी
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर ने सन 1956 में बुद्ध धम्म स्वीकार किया और लाखों लोगों को धम्म की दीक्षा दी। उन्होंने इस देश में भर्ष्टाचार मुक्त, शोषण मुक्त और प्रगतिशील समाज क्रांति का बिगुल बजा दिया। इस क्रांति को सफल बनाने के लिए उन्होंने 22 प्रतिज्ञाओं का अनमोल नजराना दिया। भारतीय संविधान की उद्देशिका का जो स्थान भारतीय संविधान के लिए है, वही बौद्ध धम्म में 22 प्रतिज्ञाओं का है। इसे अपने जीवन में कार्यान्वित करने में भ्रष्टाचार मुक्त, शोषण मुक्त और प्रगतिशील समाज का निर्माण हो सकेगा।
यह 22 प्रतिज्ञाएँ बुद्ध धम्म का मेनिफेस्टो है। इनकी अनदेखी करके खुद को बौद्ध कहलाना केवल और केवल बेईमानी होगी। धम्म क्रांति को आगे ले जाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। क्योंकि केवल इसी से ही बाबासाहेब अम्बेडकर को अभिप्रेत धम्म क्रांति सफल हो सकती है जिसे मानव समाज की प्रगति और शान्ति का सपना साकार हो सकता है(प्रकाशकीय : भगवान बुद्ध और उनका धम्म : संपादक - प्रो. डॉ विमलकीर्ति )।
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर ने सन 1956 में बुद्ध धम्म स्वीकार किया और लाखों लोगों को धम्म की दीक्षा दी। उन्होंने इस देश में भर्ष्टाचार मुक्त, शोषण मुक्त और प्रगतिशील समाज क्रांति का बिगुल बजा दिया। इस क्रांति को सफल बनाने के लिए उन्होंने 22 प्रतिज्ञाओं का अनमोल नजराना दिया। भारतीय संविधान की उद्देशिका का जो स्थान भारतीय संविधान के लिए है, वही बौद्ध धम्म में 22 प्रतिज्ञाओं का है। इसे अपने जीवन में कार्यान्वित करने में भ्रष्टाचार मुक्त, शोषण मुक्त और प्रगतिशील समाज का निर्माण हो सकेगा।
यह 22 प्रतिज्ञाएँ बुद्ध धम्म का मेनिफेस्टो है। इनकी अनदेखी करके खुद को बौद्ध कहलाना केवल और केवल बेईमानी होगी। धम्म क्रांति को आगे ले जाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। क्योंकि केवल इसी से ही बाबासाहेब अम्बेडकर को अभिप्रेत धम्म क्रांति सफल हो सकती है जिसे मानव समाज की प्रगति और शान्ति का सपना साकार हो सकता है(प्रकाशकीय : भगवान बुद्ध और उनका धम्म : संपादक - प्रो. डॉ विमलकीर्ति )।
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