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ये बौद्ध चैत्यों में सर्वाधिक विशाल तथा निर्माण की दृष्टि से भव्य और सुन्दर है। यह पहली सदी के आस-पास निर्मित है।
चैत्य शाला के अन्दर दोनों ओर 15-15 खम्बों की खड़ी दो पंक्तियाँ हाल को अनुपम भव्यता और खूबसूरती प्रदान करती है। चैत्य प्रवेश द्वार के बाहर दोनों ओर, हाथी और घोड़ों पर सवार घुटनों पर झुकें नर-नारी बुद्ध के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा प्रदर्शित करते हैं। कमानिदार दरवाजे और उन पर की गई अद्भुत कलाकारी घंटों एकटक निहारने को विवश करती है।
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अभिलेखानुसार ये गुफाएं आंध्र के सातवाहन राजाओं के शासन काल में बनी थी।
यह चैत्य गृह, जैसे कि चित्र में दिखाई देता है, दोनों तरफ सीधी रेखा में बने स्तंभों के लिए प्रसिद्द है। इसकी लम्बाई 38.25 मी. चौडाई 15. 10 मी. और ऊंचाई 14.50 मी. है। गुफा के बाहर दो सुन्दर प्रस्तर स्तम्भ हैं ।
अजंता की तरह पत्थर को काटकर बनायी गयीं दो हजार साल पुरानी बुद्धिस्ट गुफाएं देश के लिए गौरव का सबब तो है लेकिन विशाल और भव्य इस चैत्य के सामने ही व्यवधान पैदा करता हुआ सीमेंट का बना पचासक साल पुराना एकवीरा देवी का मंदिर भी है। यह गोरखधंधा आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की जानकारी में चल रहा है जबकि सौ मीटर की दूरी तक कोई भी निर्माण कार्य गैर-कानूनी है।
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