1. आओ पालि सीखें-(कुछ क्रियाओं के रूप)-
वर्तमानकाल भूतकाल अनागत(भविष्य)काल
करोति(करना) करि करिस्सति
चलति(चलना)- चलि चलिस्सति
धावति(दौड़ना) धावि धाविस्सति
खादति(खाना)- खादि खादिस्सति
वदति(कहना)- वदि वदिस्सति
पूजति(पूजा करना) पूजि पूजिस्सति
पठति(पढ़ना)- पठि पठिस्सति
लिखति(लिखना)- लिखि लिखिस्सति
याचति(याचना करना)- याचि याचिस्सति
पिबति(पीना)- पिबि पबिस्सति
नच्चति(नाचना)- नचि नच्चिस्सति
गायति(गाना)- गायि गायिस्सति
वादेति(बजाना)- वादि वादिस्सति
सुणोति(सुनना)- सुणि सुणिस्सति
धोवति(धोना)- धोवि धोविस्सति
वसति(निवास करना)- वसि वसिस्सति
रुदति(रोना)- रुदि रुदिस्सति
होति(होना) अहोसि हेस्सति
भवति(होना) भवि भविस्सति
सयति(सोना)- सयि सयिस्सति
पतति(गिरना) पति पतिस्सति
पुच्छति(पूच्छना) पुच्छि पुच्छिस्सति
गण्हाति(ग्रहण करना) गण्हि गण्हिस्सति
लभति(प्राप्त करना) लभि लभिस्सति
चजति(त्याग करना) चजि चजिस्सति
वदति(बोलना) वदि वदिस्सति
भासति(बोलना) भासि भसिस्सति
हसति(हंसना) हसि हसिस्सति
रक्खति(रक्षा करना) रक्खि रक्खिस्सति
खिप्पति(फैंकना) खिप्पि खिप्पिस्सति
निसीदति(बैठना)- निसीदि निसीदिस्सति
उट्ठहति(उठना) उट्ठहि उट्ठहिस्सति
सेवति(सेवा करना)- सेवि सेविस्सति
कम्पति(काम्पना) कम्पि कम्पिस्सति
इच्छति(इच्छा करना) इच्छि इच्छिस्सति
देति/ददाति(देना) ददि ददिस्सति
भु×जति(खाना) भुि×ज भुि×जस्सति
जलति(जलना)- जलि जलिस्सति
पापुणोति(प्राप्त करना) पापुणि पापुणिस्सति
पप्पोति(पाना) पप्पोसि पप्पोस्सति
अधिगच्छति(प्राप्त करना) अधिगच्छि अधिगच्छिस्सति
अवगच्छति(समझना) अवगच्छि अवगच्छिस्सति
कत्तेति(कातना) कत्तेसि कत्तेस्सति
लज्जति(लज्जाना)- लज्जि लज्जिस्सति
सोभति(सोभा देना) सोभि सोभिस्सति
रुच्चति(रुचिकर लगना) रोचि रोचिस्सति
निन्दति(निन्दा करना) निन्दि निन्दिस्सति
जीवति(जीना) जीवि जीविस्सति
पालेति(पालना) पालेसि पालेस्सति
पवहति(प्रवाहित होना) पवहि पवहिस्सति
नहायति(नहाना) नहायि नहायिस्सति
पाठेति(पढ़ाना) पाठेसि पाठेस्सति
आचरति(आचरण करना) आचरि आचरिस्सति
सरति(स्मरण करना) सरि सरिस्सति
पेसेति(प्रेषित करना) पेसेसि पेसेस्सति
पसंसति(प्रसंशा करना) पसंसि पसंसिस्सति
सिब्बति(सिलाई करना) सिब्बि सिब्बिस्सति
तिट्ठति(खड़ा होना) तिट्ठि तिट्ठिस्सति
जानाति(जानना) जानि जानिस्सति
सक्कोति(सकना) सक्कि सक्किस्सति
गच्छति(जाना) गच्छि गच्छिस्सति
आगच्छति(आना) आगच्छि आगच्छिस्सति
नेति(ले जाना) नेसि नेस्सति
आनेति(लाना) आनेसि आनेस्सति
आरोहति(नीचे उतरना) आरोहि आरोहिस्सति
ओतरति(उतरना) ओतरि ओतरिस्सति
भमति(घूमना) भमि भमिस्सति
फलति(फलना) फलि फलिस्सति
पविसति(प्रवेश करना) पविसि पविसिस्सति
वर्तमानकाल भूतकाल अनागत(भविष्य)काल
करोति(करना) करि करिस्सति
चलति(चलना)- चलि चलिस्सति
धावति(दौड़ना) धावि धाविस्सति
खादति(खाना)- खादि खादिस्सति
वदति(कहना)- वदि वदिस्सति
पूजति(पूजा करना) पूजि पूजिस्सति
पठति(पढ़ना)- पठि पठिस्सति
लिखति(लिखना)- लिखि लिखिस्सति
याचति(याचना करना)- याचि याचिस्सति
पिबति(पीना)- पिबि पबिस्सति
नच्चति(नाचना)- नचि नच्चिस्सति
गायति(गाना)- गायि गायिस्सति
वादेति(बजाना)- वादि वादिस्सति
सुणोति(सुनना)- सुणि सुणिस्सति
धोवति(धोना)- धोवि धोविस्सति
वसति(निवास करना)- वसि वसिस्सति
रुदति(रोना)- रुदि रुदिस्सति
होति(होना) अहोसि हेस्सति
भवति(होना) भवि भविस्सति
सयति(सोना)- सयि सयिस्सति
पतति(गिरना) पति पतिस्सति
पुच्छति(पूच्छना) पुच्छि पुच्छिस्सति
गण्हाति(ग्रहण करना) गण्हि गण्हिस्सति
लभति(प्राप्त करना) लभि लभिस्सति
चजति(त्याग करना) चजि चजिस्सति
वदति(बोलना) वदि वदिस्सति
भासति(बोलना) भासि भसिस्सति
हसति(हंसना) हसि हसिस्सति
रक्खति(रक्षा करना) रक्खि रक्खिस्सति
खिप्पति(फैंकना) खिप्पि खिप्पिस्सति
निसीदति(बैठना)- निसीदि निसीदिस्सति
उट्ठहति(उठना) उट्ठहि उट्ठहिस्सति
सेवति(सेवा करना)- सेवि सेविस्सति
कम्पति(काम्पना) कम्पि कम्पिस्सति
इच्छति(इच्छा करना) इच्छि इच्छिस्सति
देति/ददाति(देना) ददि ददिस्सति
भु×जति(खाना) भुि×ज भुि×जस्सति
जलति(जलना)- जलि जलिस्सति
पापुणोति(प्राप्त करना) पापुणि पापुणिस्सति
पप्पोति(पाना) पप्पोसि पप्पोस्सति
अधिगच्छति(प्राप्त करना) अधिगच्छि अधिगच्छिस्सति
अवगच्छति(समझना) अवगच्छि अवगच्छिस्सति
कत्तेति(कातना) कत्तेसि कत्तेस्सति
लज्जति(लज्जाना)- लज्जि लज्जिस्सति
सोभति(सोभा देना) सोभि सोभिस्सति
रुच्चति(रुचिकर लगना) रोचि रोचिस्सति
निन्दति(निन्दा करना) निन्दि निन्दिस्सति
जीवति(जीना) जीवि जीविस्सति
पालेति(पालना) पालेसि पालेस्सति
पवहति(प्रवाहित होना) पवहि पवहिस्सति
नहायति(नहाना) नहायि नहायिस्सति
पाठेति(पढ़ाना) पाठेसि पाठेस्सति
आचरति(आचरण करना) आचरि आचरिस्सति
सरति(स्मरण करना) सरि सरिस्सति
पेसेति(प्रेषित करना) पेसेसि पेसेस्सति
पसंसति(प्रसंशा करना) पसंसि पसंसिस्सति
सिब्बति(सिलाई करना) सिब्बि सिब्बिस्सति
तिट्ठति(खड़ा होना) तिट्ठि तिट्ठिस्सति
जानाति(जानना) जानि जानिस्सति
सक्कोति(सकना) सक्कि सक्किस्सति
गच्छति(जाना) गच्छि गच्छिस्सति
आगच्छति(आना) आगच्छि आगच्छिस्सति
नेति(ले जाना) नेसि नेस्सति
आनेति(लाना) आनेसि आनेस्सति
आरोहति(नीचे उतरना) आरोहि आरोहिस्सति
ओतरति(उतरना) ओतरि ओतरिस्सति
भमति(घूमना) भमि भमिस्सति
फलति(फलना) फलि फलिस्सति
पविसति(प्रवेश करना) पविसि पविसिस्सति
विभक्ति
(2)
संस्कृत की तरह पालि में भी 8 विभक्तियां होती हैं- पठमा, दुतिया, ततिया, चतुत्थी, पंचमी, छट्ठी, सत्तमी, आलपण। अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारन्त आदि शब्दों के रूप थोड़े अलग- अलग होते हैं।
बुद्ध(अकारान्त पुल्लिंग)
कारक- विभक्ति - एकवचन - अनेकवचन
पठमा(कर्ता)- ने - बुद्धो - बुद्धा
दुतिया(कर्म) - को- बुद्धं - बुद्धे-
ततिया(करण) - से,द्वारा- बुद्धेन - बुद्धेहि,बुद्धेभि
चतुत्थी(सम्प्रदान) - को,के,लिए - बुद्धाय, बुद्धस्स - बुद्धानं
पञ्चमी(अपादान) - से - बुद्धा,बुद्धम्हा,बुद्धस्मा - बुद्धेहि,बुद्धेभि
छट्ठी(सम्बन्ध) -का,के,की - बुद्धस्स -बुद्धानं
सत्तमी(अधिकरण) -में,पर,पास -बुद्धे,बुद्धेम्हि,बुद्धिेस्मिं -बुद्धेसु
आलपण (सम्बोधन) -हे, अरे! - बुद्ध! बुद्धा! - बुद्धा!
अभ्यास-
1. पालि में केवल दो वचन होते हैं- एकवचन, अनेकवचन(बहुवचन)।
2. विभक्तियों को आप ऐसे याद कर सकते हैं- कर्तरि, कम्मत्थे, साधने, दानत्थे, विच्छेदे, सम्बन्धे, आधारे, सम्बोधने।
3. चतुत्थी और छट्ठी के विभक्ति रुप बहुधा समान होते हैं। इसी प्रकार ततिया और पञ्चमी के अनेकवचन में कारक रूप बहुधा समान होते हैं। पञ्चमी की विभक्ति ‘से’ दूरी को दर्शाती है।
4.अन्य अकारान्त (पु.) शब्द- धम्म, संघ, नर, मनुस्स, जनक, पुत्त, सहोदर, मातुल(मामा), किंकर(नौकर), धनिक, सिंह, सावक, गज, अज(बकरा), अस्स(घोड़ा), गदभ(गदहा), कुक्कुर/सोण(कुत्ता), वानर, महिस(भैंस), सकुण(चिड़िया), काक(कौआ), सुक(तोता), बक(बगुला), मोर, सप्प(सांप), नकुल, निगम, गोप(ग्वाला), पब्बत, तड़ाग(तालाब), लोहकार, सुवण्णकार, कुम्भकार, आचरिय(आचार्य), सिस्स(सिस्य), समुद्द(समुद्र), रुक्ख, अनल(आग), अनिल(हवा), आकास, सुरिय, चन्द, लोक, संसार, पोत, रथ, गाम, देस, भूप, पासाद, मज्जार(बिल्ली), बिडाल(बिल्ला), पमाद(प्रमाद), खय(क्षय), सारम्भ(झगड़ा) आदि।
संस्कृत की तरह पालि में भी 8 विभक्तियां होती हैं- पठमा, दुतिया, ततिया, चतुत्थी, पंचमी, छट्ठी, सत्तमी, आलपण। अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारन्त आदि शब्दों के रूप थोड़े अलग- अलग होते हैं।
बुद्ध(अकारान्त पुल्लिंग)
कारक- विभक्ति - एकवचन - अनेकवचन
पठमा(कर्ता)- ने - बुद्धो - बुद्धा
दुतिया(कर्म) - को- बुद्धं - बुद्धे-
ततिया(करण) - से,द्वारा- बुद्धेन - बुद्धेहि,बुद्धेभि
चतुत्थी(सम्प्रदान) - को,के,लिए - बुद्धाय, बुद्धस्स - बुद्धानं
पञ्चमी(अपादान) - से - बुद्धा,बुद्धम्हा,बुद्धस्मा - बुद्धेहि,बुद्धेभि
छट्ठी(सम्बन्ध) -का,के,की - बुद्धस्स -बुद्धानं
सत्तमी(अधिकरण) -में,पर,पास -बुद्धे,बुद्धेम्हि,बुद्धिेस्मिं -बुद्धेसु
आलपण (सम्बोधन) -हे, अरे! - बुद्ध! बुद्धा! - बुद्धा!
अभ्यास-
1. पालि में केवल दो वचन होते हैं- एकवचन, अनेकवचन(बहुवचन)।
2. विभक्तियों को आप ऐसे याद कर सकते हैं- कर्तरि, कम्मत्थे, साधने, दानत्थे, विच्छेदे, सम्बन्धे, आधारे, सम्बोधने।
3. चतुत्थी और छट्ठी के विभक्ति रुप बहुधा समान होते हैं। इसी प्रकार ततिया और पञ्चमी के अनेकवचन में कारक रूप बहुधा समान होते हैं। पञ्चमी की विभक्ति ‘से’ दूरी को दर्शाती है।
4.अन्य अकारान्त (पु.) शब्द- धम्म, संघ, नर, मनुस्स, जनक, पुत्त, सहोदर, मातुल(मामा), किंकर(नौकर), धनिक, सिंह, सावक, गज, अज(बकरा), अस्स(घोड़ा), गदभ(गदहा), कुक्कुर/सोण(कुत्ता), वानर, महिस(भैंस), सकुण(चिड़िया), काक(कौआ), सुक(तोता), बक(बगुला), मोर, सप्प(सांप), नकुल, निगम, गोप(ग्वाला), पब्बत, तड़ाग(तालाब), लोहकार, सुवण्णकार, कुम्भकार, आचरिय(आचार्य), सिस्स(सिस्य), समुद्द(समुद्र), रुक्ख, अनल(आग), अनिल(हवा), आकास, सुरिय, चन्द, लोक, संसार, पोत, रथ, गाम, देस, भूप, पासाद, मज्जार(बिल्ली), बिडाल(बिल्ला), पमाद(प्रमाद), खय(क्षय), सारम्भ(झगड़ा) आदि।
5. अकारान्त (नपुं) शब्द- नगर, रट्ठ(राष्ट्र), पण्ण(पत्ता), मूल, तीर, खेत, जल, खीर, मंस(मांस), फल, पुप्फ, धञ्ञ(धान), सुवण्ण(सुवर्ण), पाप, कुल, नेत्त(नेत्र), मत्थक(मस्तक), सोत, मुख, पीठ, हदय, मञ्च, भत्त, धन, सुख, दुक्ख, कारण, बिम्ब, पोत्थक, चित्त, पुञ्ञ, हिरञ्ञ(सोना), आयुध, चीवर, ओदन(भात), ञाण(ज्ञान), वन, अरञ्ञ (जंगल) आदि।
‘फल’(अकारान्त नपुंसकलिंग )
पठमा - फलं- फला,फलानि
दुतिया- फलं- फले,फलानि
-शेष रूप ‘बुध्द’ शब्द के समान।
पठमा - फलं- फला,फलानि
दुतिया- फलं- फले,फलानि
-शेष रूप ‘बुध्द’ शब्द के समान।
वर्ण
परिचय(3)
बुद्धकाल में हुए भदन्त कच्चायन ने पालि भाषा का व्याकरण तैयार किया था। उन्होंने उसमें 8 स्वर और 33 व्यंजन, इस तरह 41 वर्ण माने थे। स्मरण रहे, वैदिक भाषा में 64 और संस्कृत भाषा में 50 अक्षर होते हैं। भदन्त कच्चायन के अनन्तर भदन्त मोग्गलायन ने अपने व्याकरण में 10 स्वर और 33 व्यंजन माने जिसमें स्वरों में ‘ऐ’ और ‘औ’ को और मिलाया गया था। किन्तु वर्तमान में कच्चायन व्याकरण ही मान्य है जिस में 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं-
स्वर : अ आ इ ई उ उ ए ओ
व्यंजनः क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स ह ळ अं
बुद्धकाल में हुए भदन्त कच्चायन ने पालि भाषा का व्याकरण तैयार किया था। उन्होंने उसमें 8 स्वर और 33 व्यंजन, इस तरह 41 वर्ण माने थे। स्मरण रहे, वैदिक भाषा में 64 और संस्कृत भाषा में 50 अक्षर होते हैं। भदन्त कच्चायन के अनन्तर भदन्त मोग्गलायन ने अपने व्याकरण में 10 स्वर और 33 व्यंजन माने जिसमें स्वरों में ‘ऐ’ और ‘औ’ को और मिलाया गया था। किन्तु वर्तमान में कच्चायन व्याकरण ही मान्य है जिस में 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं-
स्वर : अ आ इ ई उ उ ए ओ
व्यंजनः क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स ह ळ अं
1. पांच-पांच वर्ण के पांच
वर्ग होते हैं, जैसे क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग। क वर्ग में क ख ग घ
ड ये पांच वर्ण आते हैं, इस प्रकार 33 वर्ण हैं। प्रत्येक वर्ग का पांचवां वर्ण ‘अनुनासिक’ होता है।
2. पालि में अं( ं ) को निग्गहित(अनुस्वार) कहते है। इसे व्यंजन माना जाता है। इसका उच्चारण ‘अं ’ और ग को मिलाकर किया जाता है। जैसे, बुद्धं = बुद्ध-अं।
3. ङ और अं के उच्चारण में कोई अन्तर नहीं होता। ‘ङ’ कभी भी शब्द के अन्त में नहीं आता है, बल्कि उसके साथ सदैव उसी वर्ग का कोई व्यंजन रहता है।
4. ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के साथ किया जाता है।
5. पालि भाषा में विसर्ग( : ) और हलन्त( ् ) का प्रयोग नहीं होता है। सभी शब्द स्वरान्त होते हैं।
6. पालि में ‘ऋ’ वर्ण नहीं होता। इसके स्थान पर अ, इ, उ वर्ण प्रयोग होते हैं।
यथा- गृह - गहं। नृत्यं- नच्चं। यहां अ का उच्चारण हुआ।
ऋण- इणं। ऋषि - इसि। यहां ‘ऋ’ का इ और ‘षि’ का सि हुआ।
ऋतु- उतु। ऋषभ- उसभ। यहां ‘ऋ’ का उ हुआ।
7. पालि में मूर्धन्य ‘ष’ तथा तालव्य ‘श’ नहीं होते हैं। इन दोनों के स्थान पर दन्त्य स का प्रयोग होता है।
यथा- यश- यस। शिष्य- सिस्स आदि।
8. हिन्दी का क्ष पालि में ‘क्ख’ हो जाता है। यथा- शिक्षा- सिक्खा आदि।
9. इसी प्रकार ‘ऐ’ और ‘औ’ पालि में ए और ओ हो जाता है। यथा-
ऐरावण- एरावण। वैमानिक- वेमानिक। वैयाकरण- वेयाकरण।
कभी.कभी ‘ऐ’ का इ अथवा ई हो जाता है। यथा-
गैवेयं- गीवेय्यं। सैन्धव- सिन्धवं। औदरिक- ओदरिक। दौवारिक- दोवारिक।
कभी.कभी ‘औ’ का उ हो जाता है। यथा-
मौत्त्किक- मुत्तिक। औद्धत्य- उद्धच्च।
10. पालि में आधा 'र ’ नहीं होता। उसके स्थान पर निम्नानुसार शब्द-रूप बनते हैं-
कर्म- कम्म। सर्व- सब्ब। तर्हि- तरहि। महार्ह- महारहो। आर्य- अरिय। सूर्य- सूरिय। भार्या- भरिया। पर्यादान- परियादान। कृत- कित। प्रेत- पेत. समग्र- समग्ग। इन्द्र- इन्दो, आदि।
2. पालि में अं( ं ) को निग्गहित(अनुस्वार) कहते है। इसे व्यंजन माना जाता है। इसका उच्चारण ‘अं ’ और ग को मिलाकर किया जाता है। जैसे, बुद्धं = बुद्ध-अं।
3. ङ और अं के उच्चारण में कोई अन्तर नहीं होता। ‘ङ’ कभी भी शब्द के अन्त में नहीं आता है, बल्कि उसके साथ सदैव उसी वर्ग का कोई व्यंजन रहता है।
4. ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के साथ किया जाता है।
5. पालि भाषा में विसर्ग( : ) और हलन्त( ् ) का प्रयोग नहीं होता है। सभी शब्द स्वरान्त होते हैं।
6. पालि में ‘ऋ’ वर्ण नहीं होता। इसके स्थान पर अ, इ, उ वर्ण प्रयोग होते हैं।
यथा- गृह - गहं। नृत्यं- नच्चं। यहां अ का उच्चारण हुआ।
ऋण- इणं। ऋषि - इसि। यहां ‘ऋ’ का इ और ‘षि’ का सि हुआ।
ऋतु- उतु। ऋषभ- उसभ। यहां ‘ऋ’ का उ हुआ।
7. पालि में मूर्धन्य ‘ष’ तथा तालव्य ‘श’ नहीं होते हैं। इन दोनों के स्थान पर दन्त्य स का प्रयोग होता है।
यथा- यश- यस। शिष्य- सिस्स आदि।
8. हिन्दी का क्ष पालि में ‘क्ख’ हो जाता है। यथा- शिक्षा- सिक्खा आदि।
9. इसी प्रकार ‘ऐ’ और ‘औ’ पालि में ए और ओ हो जाता है। यथा-
ऐरावण- एरावण। वैमानिक- वेमानिक। वैयाकरण- वेयाकरण।
कभी.कभी ‘ऐ’ का इ अथवा ई हो जाता है। यथा-
गैवेयं- गीवेय्यं। सैन्धव- सिन्धवं। औदरिक- ओदरिक। दौवारिक- दोवारिक।
कभी.कभी ‘औ’ का उ हो जाता है। यथा-
मौत्त्किक- मुत्तिक। औद्धत्य- उद्धच्च।
10. पालि में आधा 'र ’ नहीं होता। उसके स्थान पर निम्नानुसार शब्द-रूप बनते हैं-
कर्म- कम्म। सर्व- सब्ब। तर्हि- तरहि। महार्ह- महारहो। आर्य- अरिय। सूर्य- सूरिय। भार्या- भरिया। पर्यादान- परियादान। कृत- कित। प्रेत- पेत. समग्र- समग्ग। इन्द्र- इन्दो, आदि।
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