टाईम्स आँफ इंडिया के 31 अगस्त 1950 कै अंक में निम्नलिखित समाचार छपा-
ग्रामीण क्षेत्रों मे निचली जातियों की सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था कैसी है,
इस बारे में पर्याप्त प्रकाश उन तथ्यों पर पड़ता है,
जो इलाहबाद उच्च न्यायालय में एक अपील की सुनवाई के दौरान बयान किए गए,
जो निम्नलिखित है-
इस बारे में पर्याप्त प्रकाश उन तथ्यों पर पड़ता है,
जो इलाहबाद उच्च न्यायालय में एक अपील की सुनवाई के दौरान बयान किए गए,
जो निम्नलिखित है-
एटा जिले के सारस गांव में चिरोंजी नाम का एक धोबी पिछले विश्व युद्ध में फौज में भर्ती हो गया और चार-पाँच साल तक अपने गांव से बाहर रहा.
जब वह लड़ाई से अपने घर लौटा तो उसने लोगों के कपड़े धोना बन्द कर दिया और गांव मे फौजी की वर्दी पहन कर घूमा करता था.
उसने सारस के राजा, जो उस समय गांव का एकछत्र जमींदार था, के अहलकारों (अधिकारी-कर्मचारियों) तक के कपड़े धोने बन्द कर दिए,
गांव वालों को बड़ा क्रोध आया.
गांव वालों को बड़ा क्रोध आया.
जब 31 दिसम्बर 1947 को वह धोबी (फौजी) अपने खुद के कपड़े धो रहा था,
राजा के अहलकार समेत गांव के चार आदमी उसके पास आए और उससे अपने कपड़े धोने के लिए कहा.
राजा के अहलकार समेत गांव के चार आदमी उसके पास आए और उससे अपने कपड़े धोने के लिए कहा.
ऐसा करने के लिए उसने इंकार कर दिया.
गांव वाले चिरोंजी को राजा के पास ले गए और वहां उसे पीटने लगे.
उसकी माँ और मौसी उसे बचाने के लिए वहां आए.
लेकिन उन्हें भी मारा-पीटा गया.
ये लोग चिरोंजी को रामसिंह की देखरेख में छोड़कर चले आए.
कहा जाता है कि चिरोंजी ने रामसिंह को अकेला पाकर तमाचा मारा और वहां से भाग आया.
तब रामसिंह राजा के दूसरे और अहलकारों के साथ चिरोंजी का उसके घर तक पीछा किया.
जहां वह जाकर छिप गया था.
गांव वालों ने उससे दरवाजा खोलने के लिए कहा.
जब कोई जवाब नही मिला,
तब उसका घर जला दिया गया.
तब उसका घर जला दिया गया.
इससे बहुत-सी और झोपड़ियां जलकर राख हो गई.
धोबी (फौजी) ने पुलिस से शिकायत की,
लेकिन पुलिस ने इस पर कोई यकीन नही किया,
और कहा कि झूठी रिपोर्ट लिखवाने के लिए उस पर मुकदमा चलाया जाएगा.
लेकिन पुलिस ने इस पर कोई यकीन नही किया,
और कहा कि झूठी रिपोर्ट लिखवाने के लिए उस पर मुकदमा चलाया जाएगा.
तब उसने मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी,
अभियुक्तों को दोषी पाया गया और उन्हें तीन-तीन साल की कैद की सजा सुनाई गई.
अभियुक्तों को दोषी पाया गया और उन्हें तीन-तीन साल की कैद की सजा सुनाई गई.
मजिस्ट्रेट ने जो सजा दी,
उच्च न्यायालय ने उसे बहाल (दोषमुक्त) कर दिया.
-डाॅ० बाबासाहब अम्बेडकर- खण्ड-9 पृ० 97 & 98
उच्च न्यायालय ने उसे बहाल (दोषमुक्त) कर दिया.
-डाॅ० बाबासाहब अम्बेडकर- खण्ड-9 पृ० 97 & 98
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