जहाँ हम रहते हैं, जिस संसार में हम रहते हैं, वह एक नियम-बद्ध संरचना है। यहाँ सभी कुछ नियमानुसार होता है ? रात होती है, दिन होता है। ऋतुएं पुन: पुन: आती हैं, जाती हैं । वनस्पतियाँ निश्चित समय पर पल्लवित-पुष्पित होती हैं। सृजन और विनाश का क्रम अनवरत चलता है। प्रश्न है कि अगर संसार नियम-बद्ध है, तो उसका नियंता भी होना चाहिए ?
वस्तुत: कोई प्राकृतिक नियम ऐसा नहीं है, जो किसी प्राकृतिक नियम-बद्धता का कारण हो। हर प्राकृतिक नियम केवल उन अवस्थाओं या परिस्थितियों का वर्णन करता है, जिन पर परिवर्तन-विशेष निर्भर करता है। एक वस्तु जमीन पर गिरती है, वह पृथ्वी के आकर्षण के नियम के कारण नहीं गिरती, बल्कि पृथ्वी के आकर्षण का नियम केवल इस घटना का नपा-तुला वर्णन है कि जब किसी भी वस्तु को आकाश से बेसहारा छोड़ दिया जाए तो वह पृथ्वी पर गिर पड़ती है।
कोई भी प्राकृतिक नियम यह आज्ञा नहीं देता कि वह ऐसा घटित होगा। वह केवल यही वर्णित करता है कि ऐसा होता है। वास्तव में प्राकृतिक नियम बार-बार घटने वाली घटनाओं का वर्णन मात्र होता है। सच तो यह है कि प्रकृति मनुष्य को नियम प्रदान नहीं करती बल्कि मनुष्य, प्रकृति को नियम प्रदान करता है।
वस्तुत: कोई प्राकृतिक नियम ऐसा नहीं है, जो किसी प्राकृतिक नियम-बद्धता का कारण हो। हर प्राकृतिक नियम केवल उन अवस्थाओं या परिस्थितियों का वर्णन करता है, जिन पर परिवर्तन-विशेष निर्भर करता है। एक वस्तु जमीन पर गिरती है, वह पृथ्वी के आकर्षण के नियम के कारण नहीं गिरती, बल्कि पृथ्वी के आकर्षण का नियम केवल इस घटना का नपा-तुला वर्णन है कि जब किसी भी वस्तु को आकाश से बेसहारा छोड़ दिया जाए तो वह पृथ्वी पर गिर पड़ती है।
कोई भी प्राकृतिक नियम यह आज्ञा नहीं देता कि वह ऐसा घटित होगा। वह केवल यही वर्णित करता है कि ऐसा होता है। वास्तव में प्राकृतिक नियम बार-बार घटने वाली घटनाओं का वर्णन मात्र होता है। सच तो यह है कि प्रकृति मनुष्य को नियम प्रदान नहीं करती बल्कि मनुष्य, प्रकृति को नियम प्रदान करता है।
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