Wednesday, August 14, 2019

व्यक्तित्व; प्रतीत्य-समुत्पन्न

जब एक बीज पौधा बन जाता है तो उस बीज में जो कुछ होता है और जो पौधे की शक्ल में परिवर्तित हो जाता है, 'कारण' कहलाता है। मिटटी, पानी, प्रकाश , हवा, आकाश आदि कारण-सामग्री जिससे वह पौधा अस्तित्व में आता है, वह उसका 'हेतु' कहलाती है।
इसी प्रकार चेतना, विज्ञान, बीज, व्यक्ति का विकास 'नाम-रूप' के अस्तित्व में आने का कारण है और माता-पिता का सामीप्य, माँ का गर्भ, माता-पिता से प्राप्त संभावनाएं , शारीरिक हलचल तथा हालात वह हेतु है जो किसी खास व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाते हैं।
अपने से कोई परिवर्तन नहीं होता।  हर परिवर्तन किसी दूसरे परिवर्तन के कारण से सम्बंधित रहता है और एक तीसरे परिवर्तन से कार्य के रूप में। संसार में प्राय: सभी परिवर्तन परस्पर एक-दूसरे पर आश्रित हैं।  यही प्रतीत्य समुत्पाद है।  इस प्रतीत्य-समुत्पाद की सभी चीजें प्रतीत्य-समुत्पन्न हैं। 

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