अज्ञान सुत्त
तब वत्सगोत्र परिव्राजक जहाँ भगवान थे, वहां आया, और कुशल-क्षेम पूछ कर एक और बैठ गया। एक और बैठे वत्सगोत्र परिव्राजक ने भगवान से कहा-
"गौतम! क्या हेतु है कि संसार में इतनी अनेक प्रकार की मिथ्या दृष्टियाँ उत्पन्न होती हैं- लोक शाश्वत है, या लोक अशाश्वत है। लोक शांत है, या लोक अनंत है। जो जीव है, वही शरीर है, या जीव दूसरा और शरीर दूसरा है। मरने के बाद तथागत होते हैं, या मरने के बाद तथागत नहीं होते हैं ?"
"वत्स ! ये सारी मिथ्या-दृष्टियाँ अज्ञानता से होती है। अज्ञानता-वश ही लोग इन अपरिणामी और अर्थ हीन बातों में पड़ते हैं। आप यह सब जानने में समय नष्ट न कर भी अच्छा जीवन जी सकते हैं( वत्सगोत्र संयुत्त / संयुत्त निकाय )। "
तब वत्सगोत्र परिव्राजक जहाँ भगवान थे, वहां आया, और कुशल-क्षेम पूछ कर एक और बैठ गया। एक और बैठे वत्सगोत्र परिव्राजक ने भगवान से कहा-
"गौतम! क्या हेतु है कि संसार में इतनी अनेक प्रकार की मिथ्या दृष्टियाँ उत्पन्न होती हैं- लोक शाश्वत है, या लोक अशाश्वत है। लोक शांत है, या लोक अनंत है। जो जीव है, वही शरीर है, या जीव दूसरा और शरीर दूसरा है। मरने के बाद तथागत होते हैं, या मरने के बाद तथागत नहीं होते हैं ?"
"वत्स ! ये सारी मिथ्या-दृष्टियाँ अज्ञानता से होती है। अज्ञानता-वश ही लोग इन अपरिणामी और अर्थ हीन बातों में पड़ते हैं। आप यह सब जानने में समय नष्ट न कर भी अच्छा जीवन जी सकते हैं( वत्सगोत्र संयुत्त / संयुत्त निकाय )। "
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