पिंगियानी सुतं
लिच्छवियो! दुनिया में पांच रत्नों का प्रादुर्भाव कठिन है।
पंचन्नं लिच्छवी! रतनानं पातुभावो दुल्लभो लोकस्मिं।
कौन-से पांच रत्नों का?
कतमेसं पंचन्नं?
दुनिया में तथागत अरहत सम्यक सम्बुद्ध का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागतस्स अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स पातुभावो दुल्लभो लोकस्मिं।
दुनिया में तथागत द्वारा उपदिष्ट धर्म का उपदेश करने वाले का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागत उपवेदितस्स धम्मविनयस्स देसेता पुग्गलो दुल्लभो लाेेकस्मिं।
दुनिया में तथागत द्वारा उपदिष्ट धर्म-विनय का उपदेश होने पर उसके समझने वाले का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागत उपवेदितस्स धम्मविनयस्स देसितस्स विञ्ञाता पुग्गलो दुल्लभो लोकस्मिं।
दुनिया में तथागत द्वारा उपदिष्ट धर्म-विनय का उपदेश होने पर उस समझ कर तदनुसार आचरण करने वाले का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागत उपवेदितस्स धम्मविनयस्स देसितस्स विञ्ञाता धम्मानुधम्मपटिपन्नो पुग्गलो दुल्लभो लोकस्मिं।
दुनिया में कृतज्ञ, कृत-उपकार को जानने वाले आदमी का प्रादुर्भाव कठिन है।
कतञ्ञू कतवेदी पुग्गलो दुल्लभो लोकस्मिं।
लिच्छवियो! दुनिया में पांच रत्नों का प्रादुर्भाव कठिन है।
इमेसं खो लिच्छवी, पंचन्नं रतनानं पातुभावो दुल्लभो लोकस्मिं।
स्रोत- अ. नि.- भाग-2ः पंचक निपात पृ. 434
लिच्छवियो! दुनिया में पांच रत्नों का प्रादुर्भाव कठिन है।
पंचन्नं लिच्छवी! रतनानं पातुभावो दुल्लभो लोकस्मिं।
कौन-से पांच रत्नों का?
कतमेसं पंचन्नं?
दुनिया में तथागत अरहत सम्यक सम्बुद्ध का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागतस्स अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स पातुभावो दुल्लभो लोकस्मिं।
दुनिया में तथागत द्वारा उपदिष्ट धर्म का उपदेश करने वाले का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागत उपवेदितस्स धम्मविनयस्स देसेता पुग्गलो दुल्लभो लाेेकस्मिं।
दुनिया में तथागत द्वारा उपदिष्ट धर्म-विनय का उपदेश होने पर उसके समझने वाले का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागत उपवेदितस्स धम्मविनयस्स देसितस्स विञ्ञाता पुग्गलो दुल्लभो लोकस्मिं।
दुनिया में तथागत द्वारा उपदिष्ट धर्म-विनय का उपदेश होने पर उस समझ कर तदनुसार आचरण करने वाले का प्रादुर्भाव कठिन है।
तथागत उपवेदितस्स धम्मविनयस्स देसितस्स विञ्ञाता धम्मानुधम्मपटिपन्नो पुग्गलो दुल्लभो लोकस्मिं।
दुनिया में कृतज्ञ, कृत-उपकार को जानने वाले आदमी का प्रादुर्भाव कठिन है।
कतञ्ञू कतवेदी पुग्गलो दुल्लभो लोकस्मिं।
लिच्छवियो! दुनिया में पांच रत्नों का प्रादुर्भाव कठिन है।
इमेसं खो लिच्छवी, पंचन्नं रतनानं पातुभावो दुल्लभो लोकस्मिं।
स्रोत- अ. नि.- भाग-2ः पंचक निपात पृ. 434
No comments:
Post a Comment