Saturday, August 3, 2019

अट्ठ कथाएं

अट्ठ कथाएं
सिंहल द्वीप में पहले यह परिपाठी थी कि पहले ति-पिटक के वाक्यों का अर्थ बताया जाता था और जहाँ आवश्यकता होती थी वहां कथा दे दी जाती थी। आगे चलाकर ये अट्ठ कथाएं लिख ली गई।  बुद्ध घोष ने उन में प्रमुख अट्ठ कथाओं का संक्षिप्त रूपान्तर ति-पिटक की भाषा में किया(भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन: धर्मानंद कोसंबी  पृ 18 )।

जातक कथाएं
जातक कथाएं भी काफी प्राचीन है।  कुछ जातक कथाओं के दृश्य साँची और भरहुत के स्तूपों के आस-पास उत्कीर्ण पाएं जाते हैं। इससे अनुमान लगता है कि अशोक के समय जातक कथाओं का प्रवेश बौद्ध साहित्य में हो चूका था(वही, पृ 19 )।

बुद्ध चरित
ति-पिटक में दीघनिकाय के महापदान सुत्त में विपस्सी बुद्ध की जीवनी कथा बहुत विस्तार के साथ दी गई है। शायद इसी से  प्रेरित होकर ईसा की प्रथम शताब्दी में या उससे कुछ वर्ष बाद ललितविस्तर की रचना की है। और यहीं कारण है कि बुद्ध के जीवन चरित्र में बहुत-सी असंगत बातें प्रवेश कर गई।

 महापदान सुत्त के कुछ भाग अलग कर सुत्त पिटक में ही गौतम बुद्ध के चरित के साथ जोड़ दिया गया है। उदहारण के लिए तीन प्रासाद वली बात।  महापदान सुत्त में विपस्सी राजकुमार के लिए तीन प्रासाद होते हैं। यह तीन प्रासाद वाली बात अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध के मुख से कहलाई गई है. ध्यान रहे, अंगुत्तर निकाय में अशोक के भाबरू शिलालेख वाले शिलालेख के 2 सुत्त आते हैं, अर्थात अंगुत्तर निकाय एतिहासिक है. किन्तु इससे इनकार नहीं किया जा सकता  कि इस में बहुत से भाग पीछे से जोड़ दिए गए हैं(पृ 22)।      

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