न्याय-व्यवस्था-
सुप्रीम कोर्ट के फैसले 'सुप्रीम' हो सकते हैं, जरुरी नहीं न्याय-संगत भी हो. दरअसल, कोर्ट फैसला वादी-प्रतिवादी दोनों के द्वारा कोर्ट के सामने 'उपलब्ध कराए गए तथ्यों' के आधार पर करता है. आवश्यक नहीं कि 'उपलब्ध कराए गए तथ्य' पर्याप्त और पूर्ण हों. इसलिए कई बार और तथ्य मिलने के बाद 'रिविजन पिटीशन' डाली जाती है. दूसरे, जज का 'माइंड सेट' भी फैसले में अहम भूमिका निभाता है. ऐसे कई उदाहरण है कि फैसलों की आलोचना हुई है. तीसरे, जज के फैसले पर शासन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. शासन क्या चाहता है, फैसला इससे अछूता नहीं होता. कहाँ अपील करना है, नहीं करना है, शासन तय करता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले 'सुप्रीम' हो सकते हैं, जरुरी नहीं न्याय-संगत भी हो. दरअसल, कोर्ट फैसला वादी-प्रतिवादी दोनों के द्वारा कोर्ट के सामने 'उपलब्ध कराए गए तथ्यों' के आधार पर करता है. आवश्यक नहीं कि 'उपलब्ध कराए गए तथ्य' पर्याप्त और पूर्ण हों. इसलिए कई बार और तथ्य मिलने के बाद 'रिविजन पिटीशन' डाली जाती है. दूसरे, जज का 'माइंड सेट' भी फैसले में अहम भूमिका निभाता है. ऐसे कई उदाहरण है कि फैसलों की आलोचना हुई है. तीसरे, जज के फैसले पर शासन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. शासन क्या चाहता है, फैसला इससे अछूता नहीं होता. कहाँ अपील करना है, नहीं करना है, शासन तय करता है.
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