आनंद अच्छरियं सुत्त
भिक्खुओ! आनद में ये चार आश्चर्य जनक अद्भुत बातें हैं।
चत्तारो मे भिक्खवे! अच्छरिया अब्भुता धम्मा आनंदे।
कौन-सी चार ?
कतमे चत्तारो ?
यदि भिक्खु-परिषद, आनंद के दर्शन करने के लिए आती है तो वह दर्शन से प्रसन्न हो जाती है।
सचे, भिक्खवे, भिक्खु परिसा आनंदं दस्सनाय उपसंकमति, दस्सनेन सा अत्तमना(प्रसन्न) होति।
यदि आनंद धर्म का उपदेश करता है तो वह आनंद के उपदेश से भी प्रसन्न होती है।
तत्र चे आनन्दो धम्म भासति, भासितेन सा अत्तमना होति
यदि आनंद चुप हो जाता है तो भिक्खु-परिषद अतृप्त रह जाती है।
यदि आनन्दो तुण्हि भवति, भिक्खु-परिसा अत्तित्ताव होति।
यदि भिक्खुनि-परिषद, आनंद के दर्शन करने के लिए आती है तो वह दर्शन से प्रसन्न हो जाती है।
सचे, भिक्खवे, भिक्खुनि-परिसा आनंदं दस्सनाय उपसंकमति, दस्सनेन सा अत्तमना(प्रसन्न) होति।
यदि आनंद धर्म का उपदेश करता है तो वह आनंद के उपदेश से भी प्रसन्न होती है।
तत्र चे आनन्दो धम्म भासति, भासितेन सा अत्तमना होति
यदि आनंद चुप हो जाता है तो भिक्खुनि-परिषद अतृप्त रह जाती है।
यदि आनन्दो तुण्हि भवति, भिक्खुनि-परिसा अत्तित्ताव होति।
यदि उपासक-परिषद, आनंद के दर्शन करने के लिए आती है तो वह दर्शन से प्रसन्न हो जाती है।
सचे, भिक्खवे, उपासक परिसा आनंदं दस्सनाय उपसंकमति, दस्सनेन सा अत्तमना(प्रसन्न) होति।
यदि आनंद धर्म का उपदेश करता है तो वह आनंद के उपदेश से भी प्रसन्न होती है।
तत्र चे आनन्दो धम्म भासति, भासितेन सा अत्तमना होति
यदि आनंद चुप हो जाता है तो उपासक-परिषद अतृप्त रह जाती है।
यदि आनन्दो तुण्हि भवति, उपासक-परिसा अत्तित्ताव होति।
यदि उपासिका-परिषद, आनंद के दर्शन करने के लिए आती है तो वह दर्शन से प्रसन्न हो जाती है।
सचे, भिक्खवे, उपासिका परिसा आनंदं दस्सनाय उपसंकमति, दस्सनेन सा अत्तमना(प्रसन्न) होति।
यदि आनंद धर्म का उपदेश करता है तो वह आनंद के उपदेश से भी प्रसन्न होती है।
तत्र चे आनन्दो धम्म भासति, भासितेन सा अत्तमना होति
यदि आनंद चुप हो जाता है तो उपासिका-परिषद अतृप्त रह जाती है।
यदि आनन्दो तुण्हि भवति, उपासिका-परिसा अत्तित्ताव होति।
भिक्खुओ! आनंद में ये चार आश्चर्य जनक अद्भुत बातें हैं।
इमे खो भिक्खवे, चत्तारो अच्छरिया अब्भुता धम्मा आनंदे'ति ।
--------------------
अ-तित्त- (अतृप्त/असंतुष्ट, देखें धम्मपद गाथा 48)
अत्तमना(तृप्त)- अतित्ताव(अतृप्त)
--------------------
अ-तित्त- (अतृप्त/असंतुष्ट, देखें धम्मपद गाथा 48)
अत्तमना(तृप्त)- अतित्ताव(अतृप्त)
No comments:
Post a Comment