Monday, August 5, 2019

थाईलैंड (Thailand)

https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/0/02/Wat-Kukut-Lamphun-3.jpg
बौद्ध धर्मी देश-
स्याम एक बौद्ध धर्मी देश है। भारतीय संस्कृति की उस पर अमिट छाप है। 1948 ईस्वीं की जनगणना के अनुसार स्याम में करीब 20,000 विहारों में करीब 1 लाख 16 हजार भिक्खु और 68 हजार भिक्खुणियां हैं । ईसा की दूसरी शताब्दी में ही यहां हीनयान बौद्ध धम्म पहुंच गया था, ऐसा यहां पर प्राप्त पुरातत्व अवशेषों से ज्ञात होता है। ह्वेन-सांग के समय अर्थात सातवी सदी में यहां महायान बौद्ध धम्म भी पहुंच चुका था। बौद्ध धम्म के साथ यहां पालि भाषा तथा भारतीय संस्कृति भी पहुंच गई थी(भदन्त धर्मकीर्तिः भगवान बुद्ध का इतिहास और धम्म दर्शन)।

यहां सत्ताधारी लोग भी विलासी जीवन त्याग कर कुछ निश्चित समय के लिए पब्बजित होते हैं। 14वीं शताब्दी के थाई राजा सूर्यवर्मन राम ने स्वयं प्रव्रज्या ग्रहण कर धम्म प्रचार का महान कार्य किया था। 
यहां राजाओं के तथा लोगों के नाम भी भारतीय पद्यति के हैं। आठवीं-नववीं शताब्दी में यहां बौद्ध धम्म के विशेष कार्य हुए।

इस देश में बौद्ध धम्म का कार्य सम्भालने के लिए संघनायक की अध्यक्षता मे मंत्रियों की एक समिति होती है। राज्य शासन उसे मान्यता देता है और उसके लिए बजट स्वीकृत होता है(वही)।

थाई लोगों का मूल स्थान युन्नन (चीन) है। 
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में सेचुआन और यून्नन के रास्ते आसाम होता हुआ चीन का सामान विशेषकर रेशमी वस्त्र भारत पहुंचा करता था। इसी रास्ते भारतीयों ने चिन्दवीन, इरावदी, सालविन, मेकांग, सासनदी के तट पर अपने उपनिवेश बसाए थे और उस प्रदेश को उन्होंने गंधार नाम दिया था, जो 13वीं सदी तक प्रचलित था। स्थानीय परम्परा के अनुसार इसे सम्राट अशोक के पुत्र ने बसाया था(बौध्द संस्कृति, पृ. 272: राहुल सांकृत्यायन)।

चीन के इतिहास के आरम्भ से युन्नस के थाईयों का आरम्भ से ही उनके साथ संघर्ष था। थाई बराबर अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे। उनके पास भारतीय वर्णमाला के अक्षर थे।
https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/7/74/Silk_route.jpgनौवी शताब्दी के आरम्भ में मगध निवासी भिक्खु चन्द्रगुप्त का वहां बहुत प्रभाव था। इरावदी और सालविन के बीच एक थाई राज्य का नाम कौसाम्बी था(वही )।
चीनी यात्राी ई-त्चिंग के अनुसार थाई लोगों के इस पुराने देश के भीतर से 20 चीन तीर्थ यात्राी ईसा की पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी के बीच भारत आए थे। चीनी सम्राट ने 964 ईस्वी में इसी मार्ग से अपने 300 धर्मदूतों को बौद्ध धर्म-ग्रंथों की खोज के लिए भेजा था( वही)।

https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/4e/Southeast_Asian_history_-_13th_century.pngगांधार के थाई स्वतंत्रता प्रेमी और स्वभिमानी थे। आठवीं से बारवीं शताब्दी तक चीन और थाई राज्य के बीच तनातनी चलती रही। 1253 ईस्वी में कुबलेखान ने गांधार पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया। हारने के बाद मंगोलों की दासता स्वीकारने की जगह बहुतों ने देश छोड़ दिया। कुछ थाईअहोम के रूप में आसाम पहुंचे और कुछ शान के नाम से बर्मा की पूर्वी सीमा पर बस गए। यही भू-भाग स्याम कहलाया। कितनी ही शताब्दियों तक स्यामी कहे जाने के बाद अब उन्होंने अपने देश को थाई-भूमि कहना शूरू किया( वही, पृ. 274)।

Related imageस्याम(श्याम) शान शब्द का रूपान्तर है। शान जाति के लोग अब भी बर्मा के पूर्वाेत्तरी भाग में रहते हैं। शान शब्द से ही हानहाम, अहोम, अहाम, असाम, असम बना। इसी शान(अहोम) जाति ने तेरहवीं सदी में आसाम में पहुंच कर उस देश को यह नाम दिया। अहोम, शान और थाई(स्यामी) सभी लाव्(गांधार) वंश की शाखाएं हैं। मेनाम नदी की उपत्यका में थाई(मुक्त, स्वतंत्र) लोग सभ्यता में प्रविष्ट होने के पहले ही बस चुके थे। कम्बुज की विकसित संस्कृति के साथ ही उनका यहां सम्पर्क हुआ। तेरहवीं सदी के मध्य में हम लाव जाति की अहोम शाखा को आसाम जीतते देखते हैं। शान जिस समय बर्मा पर अधिकार प्राप्त करते हैं, उसी समय थाई भी आगे बढ़ते हैं(वही)।
   
स्याम में बौद्ध धर्म का प्रचार तथा ति-पिटक का अध्ययन-अध्यापन बढ़ता ही गया। 1406 ईस्वी में राजा को सूचित कर भिक्खुओं ने धम्मकीर्ति संधराज चाव को अपना संघराज बनाया(वही, पृ. 278)।
महास्थवीर मेघंकर ने 1426-27 ईस्वी में एक बड़े पत्थर पर बुद्धपाद की स्थापना की। इस बुद्धपाद पर 6 फेरों में 108 चिन्ह अंकित हैं। बुद्धपाद के नीचे 80 बुद्ध सावकों के नाम अंकित हैं जिनमें से 74 के नाम पालि ग्रंथों में  मिलते हैं।
https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/d/da/Wat_Si_Chum_in_Sukhothai.jpg1500 से 1600 ईस्वी की अवधी में स्याम और बर्मा के बीच कई युद्ध पराजय और विद्रोह हुए जो स्याम को महंगे साबित हुए(वही, पृ. 279)।
1604 ईस्वी में डच इस्ट इंडिया कम्पनी ने अयोध्या; जिसे 1350 ई. में थाई के एक राजकुमार ने बसाया था, में अपनी कोठी खोली, फिर फ्रेंच भी स्याम पहुंचे। 1656 ईस्वी में स्यामी बन्दरगाहों को स्पेन, पूर्तगाल, इंग्लैड, हालैंड और फ्रांस के लिए खोल दिया गया(वही, 280)।
अठारहवीं सदी में सिंहल ने अपने यहां भिक्खु-संघ की पुनः स्थापना के लिए स्याम से मदद मांगी। स्याम राजा महाकाल ने सिंहलक राजदूत का स्वागत किया और अपने यहां से उपाली आदि प्रमुख भिक्खु भेजे(वही, पृ. 280)।
ईस्वी 1556 की अवधि में स्याम में दो राजवंश रात कर रहे थे। बर्मा के आक्रमण से 1767 ईस्वी में अयोध्या ध्वस्त हो गई थी। इसी समय एक स्यामी नेता फाया-ताक-सिन ने बर्मी सेना को मार भगा कर बैंकाक में नई राजधानी स्थापित की किन्तु बौद्ध विनय विरोधी होने के कारण 1782 ईस्वी में इस राजा को पद से हटा दिया गया।
इसके बाद चाउ-फयाचकी ने बैंकाक में नया राजवंश स्थापित किया जो आज तक चला आ रहा है। राजा चकी ने ति-पिटक के पाठ को ठीक करने के लिए संगीति का आयोजन किया। राजा चकी का उत्तराधिकारी फ्रा बुद्ध लोतला स्यामी भाषा का बहुत बड़ा कवि था। इसके दो पुत्र हुए। बड़े पुत्रा कलाव ने राज-काज सम्भाला और छोटा पुत्र मोंगकुत भिक्खु हो गया। 26 वर्ष भिक्खु रहने के बाद मोंगकुत ने अपने बड़े भाई के साथ राज सम्भाला।  मोंगकुत ने इतिहास, व्याकरण आदि पर स्वयं ग्रन्थ लिखे। देश से दास प्रथा का उन्मूलन किया साथ ही उसने अफीम और जुए पर रोकथाम लगाई(वही, पृ. 281)।

उसके बाद मोंगकुत का पुत्र चुला लोंगकार्न(1868-1911 ईस्वी) गद्दी पर बैठा। उसने सम्पूर्ण पाणि ति-पिटक को स्यामि अक्षरों में छपवा कर प्रकाशित कराया। भिन्न-भिन्न भाषाओं के अध्ययन के लिए स्कूल खोले। अब स्याम आधुनिक युग में आ गया। 44 वर्ष राज करने के बाद उसका पुत्र वजिराउद  1911 ईस्वी में गद्दी पर बैठा। उसकी शिक्षा-दीक्षा आक्सफोर्ड में हुई थी, इसलिउ स्याम पर उसका प्रभाव पड़ाना स्वाभाविक था। 1924 ईस्वी में उसने षष्ठ राम की उपाधी धारण की। ईस्वी 1925 में भारत के बौद्ध तीर्थ-स्थलों के दर्शन करने आया था। 1926 ईस्वी में राजा राम के मृत्यु पश्चात उसका छोटा भाई प्रजाधिपोक् राजा बना(वही, पृ. 281)।

स्याम तेरहवीं सदी में अस्तित्व में आया, इसका यह अर्थ नहीं कि तभी से इसका इतिहास शुरू होता है। स्याम पहले कम्बुज का एक भाग था। 1905 की जनगणना के अनुसार करीब 62 लाख की आबादी में 80,000 कम्बुजीय थे। कम्बोज लिपि से ही थाई लिपि विकसित हुई। 
स्याम की भाषा बहुत कुछ एक वर्णिक है। उसमें अनेक वर्ण वाले शब्दों को एकवर्णिक बनाने की प्रवृति देखी जाती है। तो भी स्याम भाषा ने संस्कृत और पालि से बहुत अधिक शब्द लिए हैं(वहीं, पृ. 282 )।
थाई का अर्थ होता है स्वतंत्रता। स्याम(थाईलेंड) में बौध्द धर्म ईसा की प्रथम अथवा दूसरी शताब्दी में पहुंचा। प्रारम्भ में थाईलेंड में महायान का प्रचार था किन्तु अब वहां थेरवाद निकाय का प्रभुत्व है। 

थाई-लैंड का अर्थ है- ‘स्वतंत्र लोगों की भूमि’। थाईलेंड की राजधानी ‘बैंकाक’ है। ‘बैंकाक’ संस्कृत और पाली शब्दों से बना है। यह संक्षिप्त रूपान्तरण है, नाम बड़ा लम्बा नाम है। यहां विश्व की सबसे बड़ी सोने की बनी बुद्ध की मूर्ति है। स्याम एक ऐसा देश है, जहां चावल आवश्यकता से अधिक पैदा होता है। थाईलैंड को पहले स्याम देश कहा जाता था। 1948 ईस्वी में इसका नाम बदलकर थाईलैंड रखा गया। 
यहाँ आज भी अल्प काल के लिए राजा ही नहीं सभी बौद्ध यूवाओं को थोड़े समय के लिए भिक्खु जीवन अवश्य अपनाना होता है। तभी वह योग्य गृहस्थ होने का अधिकारी माना जाता है। शहरों में और विशेषकर गावों में विवाह करने के पहले वर-वधु को प्रव्रज्या प्रमाण-पत्र दिखाना होता है। कभी-कभी लोग विवाह के पश्चात् वर्षा-वास भर के लिए पब्बजित होकर विहार में निवास करते हैं। 

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